शिवसेना में असली और सच्चे शिवसैनिक की छिड़ी जंग विधायकों के बाद अब सांसदों तक पहुंचती दिख रही है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए बुलाई गई बैठक में कई सांसद नहीं पहुंचे और जो पहुंचे भी उनमें से अधिकतर ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का सुझाव दिया। गहराते संकट के बीच उद्धव ठाकरे ने अदालत के अलावा चुनाव आयोग से भी गुहार लगाई है। हालांकि सोमवार को अदालत से ठाकरे खेमे के विधायकों को थोड़ी राहत जरूर मिली।
18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई बैठक सांसदों के गैरहाजिर रहने और बैठक की जानकारी देते हुए शिवसेना नेता गजानन कीर्तिकर ने कहा कि ज्यादातर सांसदों की राय थी कि पार्टी को द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना चाहिए। कीर्तिकर ने कहा कि बैठक में 13 सांसद भौतिक रूप से शामिल हुए, जबकि तीन अन्य – संजय जाधव, संजय मांडलिक और हेमंत पाटिल बैठक में शामिल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने नेतृत्व को अपने समर्थन की पुष्टि की। शिवसेना के दो लोकसभा सदस्य भावना गवली और श्रीकांत शिंदे बैठक में शामिल नहीं हुए। जबकि शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत ने दावा किया कि लोकसभा में पार्टी के 18 सदस्यों में से 15 ने बैठक में भाग लिया।
शिवसेना विधायकों के बाद सांसदों में भी फूट होने की खबर है। शिवसेना मुर्मू का समर्थन नहीं करती है तो एक दो दिन के अंदर ही सांसद बगावत कर सकते हैं। वर्धा इलाके से शिवसेना के सांसद रामदास तडस ने कहा, ‘आने वाले दिनों में शिवसेना के 12 सांसद भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अपना समर्थन दे सकते हैं। ये सभी सांसद उनके गुट में शामिल हो सकते हैं। हिंदुत्व की रक्षा के लिए हम ऐसा कदम उठाएंगे। हम शिंदे को अपना समर्थन देंगे।’
इस बीच उद्धव ठाकरे खेमे को अदालत से थोड़ी राहत मिली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र विधानसभा के नव-निर्वाचित अध्यक्ष राहुल नार्वेकर से कहा कि ठाकरे नीत धड़े के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिका पर कोई फैसला नहीं लिया जाए। मुख्यमंत्री शिंदे के खेमे ने विश्वास मत और विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के दौरान पार्टी व्हिप का उल्लंघन किए जाने के आधार पर यह मांग की थी। शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के बागी विधायकों के महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद, ठाकरे गुट ने शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की हैं।
शिवसेना ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया। शिवसेना के विधान परिषद सदस्य एवं महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अनिल परब ने कहा कि राज्य विधानमंडल ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामे में कहा गया था कि विधानसभा का एक नया अध्यक्ष चुन लिया गया है और उसके पास विधायकों को सदस्यता के अयोग्य ठहराने की अर्जी पर सुनवाई करने का अधिकार है। नए अध्यक्ष भाजपा से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में हमें लगा कि हमें इन्साफ मिलने की गुंजाइश बहुत कम है। हमने उच्चतम न्यायालय में कहा कि जब तक हमारी तीन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक ठाकरे गुट के विधायकों को अयोग्य घोषित करने के मुद्दे पर फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। परब के अनुसार, इसलिए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब तक अदालत में कोई निर्णय नहीं हो जाता, तब तक अध्यक्ष को कोई फैसला नहीं लेना चाहिए।