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कानपुर के छोटे उद्यमी सूदखोरों के शिकार

Last Updated- December 07, 2022 | 10:47 PM IST


हालांकि केंद्र सरकार ने लघु एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) के लिए ऋण सहायता बढ़ाने का फैसला किया है, लेकिन कानपुर में इन उद्यमों को विश्वस्त और उचित ऋण स्रोतों की तलाश करने के लिए बुरे वक्त का सामना करना पड़ रहा है। शहर में काम कर रही 5,000 से अधिक एसएमई इकाइयां लकड़ी की काठी, साबुन जैसे उत्पादों के निर्माण में लगी हुई हैं। इन लघु इकाइयों को ऋण की उपलब्धता के अभाव में साहूकारों से मोटे ब्याज पर कर्ज लेने को बाध्य होना पड़ रहा है।


लघु इकाइयां चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण पहले से ही बुरे दौर से गुजर रही थीं, लेकिन अब उधारी दर में पुनः बढ़ोतरी ने उनकी कमर ही तोड़ दी है। इनमें से अधिकांश इकाइयां परिवार द्वारा या फिर पहली पीढ़ी के उद्यमियों द्वारा चलाई जाती हैं।


आसान ऋण के अभाव के कारण उन्हें पैसे के लालची साहूकारों की शरण में जाना पड़ता है। फजलगंज में एक साबुन निर्माण इकाई चलाने वाले सत्य प्रकाश ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पूरे शहर में 50 से भी अधिक ऐसे साहूकार मौजूद हैं जो कर्ज पर अत्यधिक ब्याज वसूल रहे हैं।


यदि कर्ज की अदायगी में विलंब होता है तो उस स्थिति में ये साहूकार ताकत का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते हैं। उन्होंने बताया, ‘मैंने 10 प्रतिशत की ब्याज दर के हिसाब से 50,000 रुपये उधार लिए थे। इसके लिए हर महीने 5,000 रुपये ब्याज के तौर पर चुकाए जाने की सहमति बनी थी। लेकिन मैं 5000 रुपये की एक किस्त चुकाने में विफल रहा। साहूकार ने ये 5000 रुपये बकाया मूल राशि में जोड़ दिए। इस प्रकार से मुझ पर बकाया राशि बढ़ कर 55,000 हो गई जिस पर ब्याज भी अब बढ़ कर 5500 रुपये हो गया।’


ये साहूकार कर्ज दिए जाने के दौरान स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर के साथ एक एग्रीमेंट तैयार करवाते हैं जिसकी मूल प्रति वे अपने पास रखते हैं। इसके अलावा उधार देने से पूर्व वे सुरक्षा राशि के रूप में चल और अचल संपत्ति के दस्तावेजों की मूल प्रतियां भी मांगते हैं। शहर के जजमऊ इलाके में एक लघु आकार की सैडलरी इकाई चलाने वाली रोशनी देवी ने बताया, ‘साहूकार हमारे और हमारे उत्तराधिकारियों के फोटोग्राफ और यहां तक कि हमारे बच्चों की शैक्षिक डिग्रियां और सर्टिफिकेट भी सिक्योरिटी के तौर पर जमा करवाते हैं।’ सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले रमेश यादव ने बताया कि उसकी पासबुक और एटीएम कार्ड भी सुरक्षा गारंटी के तौर पर जमा करवाया गया है।


पूरे शहर में छोटे पैमाने पर चमड़े के व्यवसाय में लगी तकरीबन 1000 महिलाएं इन साहूकारों के चंगुल में आ चुकी हैं। ये महिलाएं रोजाना मुश्किल से 10-15 रुपये कमाती हैं। वहीं इनके द्वारा बनाए गए उत्पाद यूरोपीय देशों में हजारों रुपये में बिकते हैं। लघु उद्योगों के लिए बैंकों द्वारा कर्ज में उदासीनता के बारे में पूछे जाने पर एक बैंक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि एसएमई के लिए जिन अविश्वसनीय कारकों की वजह से उधार दिए जाने में दिक्कतें आती हैं, उनमें वित्तीय डाटा का अभाव, वित्तीय ढांचे की आंतरिक कमजोरियां और धन के संदर्भ में प्रमोटरों के कमजोर संसाधनों का होना आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। शहर में मिश्रित आकार के तकरीबन 5457 एसएसआई हैं जो प्रमुख इकाइयों के सहायक के तौर पर काम करते हैं। इनमें से 830 एसएसआई धातु उत्पादों, चमड़ा उत्पादों (819), खाद्य उत्पादों (443), रबड़ एवं प्लास्टिक (416), मशीनरी कलपुर्जों (396), होजरी एवं परिधान (387), रसायन (337), कागज उत्पादों (318) और सूती वस्त्रों (246) के निर्माण में लगे हुए हैं। इनमें से ज्यादातर उद्योग गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल एस्टेट (कल्पी रोड ऐंड फजलगंज), इंडस्ट्रियल एस्टेट, कोऑपरेटिव इंडस्ट्रियल एस्टेट (दादा नगर), पनकी इंडस्ट्रियल एरिया और जजमऊ इंडस्ट्रियल एरिया में मौजूद हैं।


लघु उद्योगों का विदेशी निर्यात में बड़ा योगदान रहता है, लेकिन बड़ी संख्या में ये उद्योग अभी भी असंगठित क्षेत्र में आते हैं। इन उद्योगों को पूंजी की लागत, ढांचागत सुविधाओं, विकसित देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और प्रतिभा की तलाश जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।



First Published - October 5, 2008 | 9:03 PM IST

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