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तांगेवालों ने मांगी ‘नवाबी सवारी’

Last Updated- December 07, 2022 | 8:42 PM IST

विकास की बयार हर किसी के लिए अच्छी नहीं होती है। दिल्ली के तांगेवाले इस हकीकत को अच्छी तरह से समझते हैं।


कभी शान की सवारी कही जाने वाली दिल्ली की घोड़ागाड़ी अब अपने अवसान के दौर से गुजर रही है। घोड़ागाड़ी के लिए कम सवारी और मामूली मुनाफे की वजह से ही अब कमाई के नए जरिए तलाश रहे हैं।

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास 1942 में स्थापित कौड़िया पुल तांगा स्टैंड के ठेकेदार रामचंद्र तोमर ने कहा कि ‘पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार को दिल्ली के ऐतिहासिक स्थानों पर बग्घी चलाने की इजाजत देनी चाहिए।’

उन्होंने बताया कि ‘उत्तर प्रदेश में पर्यटन मंत्रालय ने ‘नवाबी सवारी’ नाम से एक योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत पर्यटकों से 300 रुपये लेकर रेजीडेंसी, इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा और चौक की सैर कराई जाती है। दिल्ली सरकार को भी पुरानी दिल्ली इलाके में ऐसी ही योजना की शुरुआत करनी चाहिए।’

उन्होंने बताया कि कि आज से करीब 35 साल पहले दिल्ली में 9000 तांगे थे लेकिन अब मुश्किल से 500 तांगे बचे होंगे।’ तोमर ने बताया कि पहले उन्हें बाहर से आने वाले पर्यटकों या फिर शादियों के मौसम में अच्छी कमाई होती थी लेकिन वह जमाना खत्म हो गया है और अब तो जंतर-मंतर, संसद मार्ग, तीन मूर्ति, बिड़ला मंदिर, इंडिया गेट आदि इलाकों में जाने पर रोक लगा दी गई है।

दिल्ली में कौड़िया पुल, सदर बाजार, कुतुबरोड, तुर्कमान गेट, घंटाघर, कश्मीरी गेट सहित पुरानी दिल्ली के कुछ इलाकों में ही तांगा स्टैंड बने हुए हैं। इनकी भी हालत बद से बदतर हो गई है। पिछले 25 सालों से तांगा चला रहे लख्खो ने बताया, ‘यहां स्टैंड तो है लेकिन सर पर छत नहीं है। बरसात में हमें और हमारे घोड़ों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।’

आज से 30-35 साल पहले दिल्ली के नंद नगरी, आश्रम, मोतीनगर, सीलमपुर, वेलकम और कैंप चौक इलाकों में भी तांगा स्टैंड हुआ करता था लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। तांगा चालक मोहम्मद सईद ने बताया कि आम तौर पर तांगेवाले दिन भर में 250 रुपये कमाते हैं, और खर्च निकालकर सिर्फ 100 रुपये की बचत हो पाती है।

First Published - September 10, 2008 | 10:21 PM IST

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