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मंदी के ब्रेक ने थामा ट्रकों का पहिया

Last Updated- December 08, 2022 | 10:00 AM IST

वैश्विक मंदी का असर केवल उद्योगों पर नहीं, बल्कि सेवा क्षेत्र पर भी खूब पड़ी है। कानपुर के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी मनीष सिंघल भी इससे अछूते न रह सके। मनीष के पास 18 मालवाहक वाहनों का बेड़ा है।


कुछ समय पहले तक तो सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अब 11 गाड़ियां दफ्तर के सामने खड़ी रहती हैं। वजह- काम न मिलना। मनीष कहते हैं कि काम नहीं मिलने की वजह से गाड़ियां अक्सर खड़ी रहती हैं, जबकि उसके रख-रखाव पर खर्च करना पड़ रहा है।

सही मायने में तो अब ये ‘सफेद हाथी’ साबित हो रहे हैं। यह समस्या सिर्फ मनीष की ही नहीं है, बल्कि शहर के लगभग सभी ट्रांसपोर्टरों को इससे दो-चार होना पड़ रहा है। पहले शहर में रोजाना 2500 ट्रकों को माल मिलता था, लेकिन अब यह घटकर करीब 250 ट्रकों तक सीमित रह गया है।

मनीष दुनियाभर के मंदी से चितिंत नहीं हैं, लेकिन उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि ऑर्डर नहीं मिलने से ट्रांसपोर्टरों का मुनाफा घट गया है, जबकि ऋणदाता पैसे की वसूली का दबाव बना रहे हैं। दरअसल, छोटे ट्रांसपोर्टरों को सबसे ज्यादा समस्या हो रही है, क्योंकि वे बैंक या महाजनों से कर्ज लेकर ट्रक खरीदते हैं।

लेकिन घट रहे मुनाफे की वजह से वे लोन चुका नहीं पा रहे हैं। यही नहीं, ट्रकों के परिचालन की लागत रोजाना बढ़ रही है, वहीं मालभाड़ा करीब 25 फीसदी घट गया है। ऐसे में ट्रकों को चलाना बहुत मुश्किल हो गया है।

मंदी से निबटने की रणनीति पर मनीष कहते हैं कि घाटा सहने के अलावा कोई उपाय नहीं है। सरकार को ट्रांसपोर्टरों की मदद के लिए पैकेज की घोषणा करनी चाहिए।

उनका कहना है कि शहर के करीब 50 फीसदी ट्रांसपोर्टर कर्ज लेकर अपना कारोबार चला रहे हैं। ऐसे में ऑर्डर नहीं मिलने और मुनाफा घटने से ऋण चुकाना भी मुश्किल हो रहा है।

कानपुर मोटर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के सदस्य सिंघल ने बताया कि दो पहले जब ट्रकों की बहुत मांग थी, तो करीब 500 स्थानीय ट्रांसपोर्टरों ने कर्ज लेकर नए-नए वाहन खरीदे, लेकिन अब मंदी की वजह से उन्हें परेशानी हो रही है।

सिंघल को हर माह करीब 72,000 रुपये का लोन चुकाना पड़ रहा है, जबकि उनकी कमाई मुश्किल से 20,000 रुपये प्रतिमाह हो पा रही है। मनीष चाह कर भी अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हर ट्रक को चालने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूरत तो होती ही है।

वहीं हर तीन माह पर वाहनों की मरम्मत पर भी अच्छी-खासी रकम खर्च हो रही है। उन्होंने बताया कि मुंबई से मिलने वाला ऑर्डर रद्द हो रहा है। उन्होंने बताया कि लंबी दूरी का किराया नहीं मिल रहा है। ऐसे में हमें स्थानीय रूटों के लिए ट्रकों को भाड़े पर देना पड़ रहा है, जिसमें मुनाफा कम होता है।

First Published - December 18, 2008 | 8:56 PM IST

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