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जोशी पर टिका सरकार का भविष्य

Last Updated- December 15, 2022 | 4:29 AM IST

अगर राजस्थान विधानसभा के मौजूदा अध्यक्ष सी पी जोशी 2008 के विधानसभा चुनाव में अपनी नाथद्वारा सीट महज एक वोट से नहीं हारते तो यह फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता कि राज्य के नए मुख्यमंत्री जोशी बनेंगे या फिर मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।
दोनों ही नेता एकदम अलग मिजाज के हैं। जहां जोशी गुस्सैल, मुंहफट और काम के लिए कहे जाना नापसंद करते हैं, वहीं गहलोत संयमित एवं शांत दिमाग वाले नेता हैं। दोनों नेता एक-दूसरे को बहुत पसंद नहीं करते हैं। असल में, 2008 विधानसभा चुनाव के बाद  गहलोत की मौजूदगी वाली एक बैठक में जोशी ने कहा था, ‘मैं गहलोत का अनुयायी हुआ करता था लेकिन अब मैं उनका सहयोगी हूं। हमारे बीच का शुरुआती रिश्ता नेता एवं अनुयायी का था लेकिन अब यह नाता नेता एवं सहयोगी का है।’
लेकिन अपने मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं ने साथ मिलकर एक भरोसेमंद टीम बनाई और 2008 के विधानसभा चुनाव में 200 में से 96 सीटें जीतने में सफल रहे और उसके अगले साल लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को राज्य की 25 में से 19 सीटें जितवा दीं।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के केंद्रीय मंत्री के तौर पर जोशी को ग्रामीण विकास से हटाकर 2011 में कमलनाथ की जगह भूतल परिवहन मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया था। वर्ष 2014 में संप्रग के सत्ता से बाहर होने के बाद जोशी को कांग्रेस संगठन के भीतर करीब दर्जन भर राज्यों का प्रभार दिया गया। इनमें पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल एवं अंडमान निकोबार भी शामिल थे। लेकिन इन दायित्वों के निर्वहन में शायद उनका मन नहीं लग रहा था। तभी तो उनके असम प्रभारी रहते हुए ही हिमंत विश्व शर्मा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। कहा जाता है कि हिमंत के पार्टी छोडऩे की वजह महज यह थी कि राहुल गांधी ने उन्हें वांछित अहमियत नहीं दी थी। कई लोगों का मानना है कि जोशी को असम का प्रभारी महासचिव होने के नाते इस नुकसान को रोकना चाहिए था।
बिहार में भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए अशोक चौधरी ने न सिर्फ अपना पद छोड़ दिया बल्कि कांग्रेस को भी अलविदा कहते हुए विरोधी दल जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो गए। कांग्रेस के भीतर चौधरी को संभालने का दायित्व भी जोशी का ही था। दूसरे लोगों के पास भी शिकायतों का पुलिंदा था। नगालैंड के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केवे थापे थेरी ने मार्च 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार होने की बात संवाददाताओं से कह दी थी। उन्होंने हार के लिए पार्टी प्रभारी सी पी जोशी को ही जिम्मेदार बताते हुए कहा था कि जोशी ने राहुल गांधी को नगालैंड का दौरा करने से भी रोक दिया था। थेरी का कहना था कि नगालैंड का प्रभारी महासचिव होते हुए भी जोशी ने केवल एक बार राज्य का दौरा किया था। थेरी ने कहा था, ‘मुझे लगता है कि कांग्रेस को इस चुनाव में करारी मात मिलेगी। इसका कारण यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार एक ऐसा नाव में सवार हैं जिसे लावारिस छोड़ दिया गया है। मुझे नहीं लगता है कि संसाधनों के बगैर कोई भी चुनावी समर जीत सकता है। मैं अपने उम्मीदवारों का इस्तीफा देना पसंद नहीं करता लिहाजा मैंने उन्हें चुनावी जंग में बने रहने को कहा है लेकिन कोई भी व्यक्ति संसाधनों के बगैर चुनाव नहीं जीत सकता है।’ कांग्रेस ने चुनाव के लिए पहले 23 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए थे लेकिन उनमें से पांच ने फंड के अभाव में अपने नाम वापस ले लिए और आखिर में केवल 18 सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार रह गए थे। मेघालय में भी कांग्रेस जीत की स्थिति से हार तक पहुंची। कांग्रेस की तुलना में भाजपा ने फुर्ती दिखाते हुए छोटे दलों को अपने साथ जोड़कर एक गठबंधन बना लिया और सरकार बनाने में सफल रही।
त्रिपुरा में तो हिमंत विश्व शर्मा ने उनींदी कांग्रेस का फायदा उठाते हुए उसके पुराने सहयोगियों को अपने पाले में कर लिया और एक अन्य उत्तर-पूर्वी राज्य में भाजपा की सरकार बन गई। कांग्रेस नेतृत्व ने राज्यों के स्थानीय नेताओं से मिली शिकायतों पर कार्रवाई करने में वक्त लगाया। उत्तर-पूर्वी राज्यों एवं पश्चिम बंगाल का प्रभार जोशी से 2018 में जाकर लिया गया।  फिर राजस्थान विधानसभा का चुनाव आ गया और जोशी अपने पसंदीदा काम में लग गए। राजस्थान की राजनीति हमेशा से ही उनकीपसंद रही है। अब जोशी ही वह महीन धागा रह गए हैं जो इस राज्य में कांग्रेस सरकार या फिर भाजपा सरकार बनने के बीच फर्क डाल सकते हैं।
यह संभव है कि जोशी आज के समय में गहलोत की सरकार को बचाने का प्रयास कांग्रेस पार्टी को ध्यान में रखते हुए कर रहे हों। लेकिन आखिर में इसका फायदा तो उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी अशोक गहलोत को ही होगा।

First Published - July 22, 2020 | 11:00 PM IST

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