लायंस रेंज आज भी कोलकाता की उन गलियों में से एक है जहां हमेशा चहल पहली बनी रहती है। यह वही सड़क है जहां कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई) की 100 साल पुरानी इमारत खड़ी है।
जिस जगह पर यह इमारत खड़ी है, वहां पहले नीम का एक पेड़ हुआ करता था, जिसके नीचे शेयर ब्रोकिंग से जुड़ा शहर का मारवाड़ी समुदाय इकट्ठा हुआ करता था।
यह बात करीब 1830 के आस पास की है और तब से लेकर अब तक इस इमारत के नीचे शहर के प्रमुख ब्रोकर इकट्ठा होते हैं। इनकी चर्चाएं यहां शेयर बाजार तक ही सीमित नहीं रहती है बल्कि ये उतनी ही दिलचस्पी के साथ राजनीति और अर्थव्यवस्था पर भी बहस करते हैं।
सीएसई को कोलकाता का ब्रोकिंग समुदाय एक मृत संस्थान के तौर पर संबोधित करता है क्योंकि 2001 में भुगतान को लेकर जो संकट पैदा हुआ था, उसके बाद से ही यहां की हालत खस्ता होती चली गयी। इन सबके बावजूद भी शहर के ब्रोकिंग समुदाय ने वित्तीय बाजारों पर अपनी छाप छोड़ी है।
कोलकाता के ब्रोकरों की बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के कारोबार में करीब 5 फीसदी और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के कारोबार में 12 फीसदी हिस्सेदारी है। करीब 1827 में मारवाड़ियों ने कोलकाता में आना शुरू किया था। शुरुआत में उनमें से काफी शेयर ब्रोकरों के कारोबार से जुड़े और धीरे धीरे कुछ उद्यमियों ने चाय और जूट का कारोबार भी शुरू किया।
शहर के ही एक मारवाड़ी कारोबारी घनश्याम शारदा बताते हैं, ‘चाहे वह सिंघानिया हों, या बागड़ी, बांगड़, पोद्दार, मूंदड़ा या फिर बिड़ला परिवार, सभी ने या तो जूट या फिर शेयर बाजार में एक ब्रोकर के तौर पर ही अपने करियर की शुरुआत की थी।’ आज की तारीख में शहर में ऐसे 1,000 से अधिक ब्रोकर काम कर रहे हैं जो मूल रूप से सीएसई से ताल्लुक रखते हैं।
जब इस 100 साल पुराने कलकत्ता शेयर बाजार की हालत खस्ता होने लगी तो कई ब्रोकर इसका साथ छोड़कर बीएसई और एनएसई में कारोबार करने लगे। साल 2007 में सीएसई को डीम्युचुअलाइज किया गया और बीएसई ने इसमें 5 फीसदी की हिस्सेदारी खरीद ली।
सीएसई ने बीएसई के कारोबारी मंच के साथ एक समझौता किया है ताकि उसके सदस्य नकदी और वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) सेगमेंट में कारोबार कर सकें। इस समझौता पत्र में यह प्रस्ताव भी रखा गया है कि केवल सीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अलग कारोबारी मंच तैयार किया जाए। समझौतों के बाद भी ब्रोकरों को सीएसई में वापस लाना मुश्किल था।
100 साल पुराना है कलकत्ता का शेयर बाजार
शहर का एक बड़ा मारवाड़ी समुदाय ब्रोकिंग से है जुड़ा
2001 के भुगतान संकट से सीएसई की हालत खस्ता हुई
2007 में सीएसई को किया गया था डीम्युचुअलाइज