लुधियाना में सिलाई उद्योग इन दिनों इस्पात की कीमतों में आई तेजी की मार झेल रहा है। इसके साथ ही सिलाई उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।
कारोबारी तो यहां तक कह रहे हैं कि सिलाई उद्योग धीमे धीमे खत्म होने की कगार पर पहुंच रहा था लेकिन अब इस्पात की कीमतों में तेजी उत्प्रेरक का काम कर रही है और जल्द ही लुधियाना में सिलाई उद्योग गुजरे जमाने की बात होगी।
लुधियाना में सिलाई मशीन डिलर्स एंड एसेंबलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र रखेजा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस समय भारत में सिलाई उद्योग का बाजार 800 से 1,000 करोड़ रुपये के करीब है। केवल लुधियाना में ही 400 विनिर्माण इकाइयों के जरिए प्रतिदिन सिलाई मशीन की 10,000 इकाइयां तैयार की जाती हैं।
सिलाई मशीन बाजार के एक बड़े हिस्से पर चीन का कब्जा हो गया है। औद्योगिक बाजार में चीनी मशीनों की हिस्सेदारी 30 से 35 प्रतिशत के करीब हैं। लुधियाना के अधिकतर कारोबारी घरेलू मांग को पूरा कर रहे हैं लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी और लोगों की जीवन शैली में आए बदलाव के चलते मशीनों की घरेलू मांग तेजी से घट रही है।
संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पूरन प्रकाश झाम ने कहा कि सिलाई मशीन उद्योग पहले ही कठिनाइयों का सामना कर रहा था और इस्पात की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद तो सिलाई उद्योग की रीढ़ की हड्डी टूट गई है। उन्होंने बताया कि सिलाई मशीन बनाने के लिए कॉस्ट आयरल का कच्चे माल के तौर पर उपयोग किया जाता है जिसकी कीमत बढ़कर 32,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन हो गई है। दो साल पहले यह आंकड़ा 26,000 हजार रुपये प्रति मीट्रिक टन था।
इस्पात की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी के कारण कारोबारी मशीन की कीमतों में बढ़ोतरी करने को मजबूर हुए हैं। इस कारण घरेलू सिलाई मशीन की कीमतों में 150 रुपये और औद्योगिक मशीनों की कीमत में 250 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। मशीन की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण विदेशी कपंनियां इस बाजार में पैठ बढ़ा सकती हैं। कारोबारियों ने बताया है कि औद्योगिक इस्तेमाल वाली मशीनों के मुकाबले घरेलू सिलाई मशीनों में मार्जिन काफी कम रहता है।