ओडिशा में बॉक्साइट खदानों की अगली नीलामी में एल्युमिना क्षेत्र में अदाणी समूह की रुचि और मौजूदा कारोबारियों द्वारा क्षमता बढ़ाने की कवायद के बीच गहमागहमी बढ़ सकती है।
राज्य के उद्योग विभाग के प्रधान सचिव हेमंत शर्मा ने कहा कि इस साल तीन बॉक्साइट ब्लॉकों की नीलामी होनी है।
अदाणी समूह 4 एमएमटीपीए क्षमता की एल्युमिना रिफाइनरी स्थापित करेगा और वह एल्युमीनियम उत्पादन में कदम रख सकता है। उम्मीद की जा रही है कि वह खदानों की बोली में शामिल हो सकता है, हालांकि ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन (ओएमसी) से उसे कच्चे माल का लिंकेज उपलब्ध होगा। प्रस्तावित परियोजना के बड़े आकार को देखते हुए कच्चे माल की गारंटी देखनी होगी।
इक्रा में वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत रॉय ने कहा, ‘एल्युमिना परियोजना की सफलता के लिए बॉक्साइट की आपूर्ति सुनिश्चित करना अहम है, क्योंकि हर टन एल्युमिना तैयार करने के लिए करीब तीन टन बॉक्साइट की जरूरत होती है। बेहतरीन गुणवत्ता का ज्यादातर बॉक्साइट ओडिशा में मिलता है।’
मौजूदा कारोबारी
खनन मंत्रालय की 2021-22 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 के दौरान बॉक्साइट का कुल उत्पादन 20.4 एमटी था। ओडिशा प्रमुख उत्पादक था, जहां 76.3 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन हुआ। उसके बाद गुजरात (7.3 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (3.5 प्रतिशत), झारखंड (7.3 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (3.1 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (2.3 प्रतिशत) का स्थान आता है।
एल्युमीनियम सेक्टर में हिंडाल्को और नालको ही ऐसी कंपनियां हैं, जो पूरी तरह एकीकृत हैं, जो बॉक्साइट से एल्युमिना और उससे एल्युमीनियम बनाती हैं। ओडिशा में हिंडाल्को और नालको की निजी बॉक्साइट खदानें हैं, जहां 100-110 लाख टन बॉक्साइट का उत्पादन होता है। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक शेष गैर निजी उत्पादन या मर्चेंट माइनिंग है और इसके बड़े हिस्से पर ओएमसी का कब्जा है, जो करीब 40 से 50 लाख टन उत्पादन करती है। ओडिशा की नियामगिरि पहाड़ियों से 2013 में उत्पादन की योजना छोड़ने वाली वेदांत अपनी बॉक्साइट जरूरतें पूरी करने के लिए ओएमसी पर निर्भर है और उसे लांजीगढ़ एल्युमिना रिफाइनरी के लिए 20 लाख टन बॉक्साइट की जरूरत होती है।
कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि वित्त वर्ष 2022 में कंपनी का एल्युमीनियम उत्पादन 19.7 लाख टन था, जिसके लिए 58 लाख टन बॉक्साइट का इस्तेमाल किया गया। इसका 53 प्रतिशत दीर्घावधि समझौतों से आता है और शेष 37 प्रतिशत आयात होता है। वेदांत अपनी एल्युमिना क्षमता बढ़ा रही है और उम्मीद है कि बॉक्साइट खदानों की बोली में वह हिस्सा लेगी।हिंडाल्को के प्रबंध निदेशक सतीश पई ने कहा कि उसकी अपस्ट्रीम क्षमता 13 लाख टन पर यथावत बनी रहेगी, वहीं अगले पांच साल में डाउनस्ट्रीम उत्पादन चार लाख टन से सात लाख टन हो जाएगी।
लागत की चाल
डाउनस्ट्रीम पर ध्यान केंद्रित करने की बड़ी वजह बड़े पैमाने पर लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचना है, जिससे मुनाफे पर असर पड़ता है। हालांकि घरेलू एल्युमीनियम कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में लागत प्रतिस्पर्धी होती हैं।
इक्रा के रॉय ने कहा, ‘भारत के एल्युमीनियम कारोबारी लागत के वक्र के पहले दो क्वार्टाइल के मुताबिक काम करते हैं। इसका आशय यह है कि भारत के स्मेल्टरों की लागत संरचना वैश्विक स्तर पर बेहतर है और वे समय समय पर आने वाली मंदी का सामना करने के मामले में बेहतर स्थिति में होती हैं।’