इस साल की शुरुआत में ढलाई उद्योग (फाउंड्री) से जुड़े नंदकुमार अग्रवाल को बढ़िया कारोबार की उम्मीद थी।
लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया उनकी उम्मीदें धूमिल पड़ती गई और अब यह उद्योग गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है।
उनकी फर्म श्री जय बाबा कास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड, सूबे की राजधानी से 40 किलोमीटर दूर भिलाई औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है।
साल के अंत तक अग्रवाल को अपनी फर्म को बंद करने के हालात बनते नजर आ रहे हैं।
अग्रवाल कहते हैं, ‘अगर हालात इसी तरह के बने रहे तो हमारे पास उत्पादन बंद करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा।’ उनके मुताबिक इस उद्योग में कच्चे माल खासकर कोयले की कमी की वजह से भी नुकसान हो रहा है।
एक तरफ तो कोयले की कीमत काफी बढ़ गई है वहीं दूसरी ओर मांग में कमी की से तैयार माल को बेचने में मुश्किलें आ रही है। इस प्रदेश में तकरीबन 40 छोटे और मंझोली ढलाई इकाइयां मौजूद हैं। अग्रवाल का दावा है कि प्रदेश की इन इकाइयों ने अपने उत्पादन में 30 से 35 फीसदी तक की कमी की है।
वह कहते हैं, ‘बस ये इकाइयां किसी तरह से चल रही हैं लेकिन यह भी लंबे समय तक नहीं चलने वाला। इस तरह की स्थिति में हमारे लिए नया साल भी जश्न मनाने का मौका नहीं लग रहा है।’
ढलाई के अलावा प्रदेश की स्पंज आयरन इकाइयां भी मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) की रायपुर में मशीनरी डिवीजन के वरिष्ठ अधिकारी सी. बी. सिंह कहते हैं, ‘ स्पंज आयरन इकाइयों में संकट के चलते ऑर्डर में भी कमी आई है।’
कंपनी अपने उत्पादन का 75 फीसदी अपनी जरुरतों के लिए करती है जबकि 25 फीसदी को बाजार में बेचती है। सिंह कहते हैं, ‘बाहरी आपूर्ति के लिए मांग में 30 फीसदी तक की कमी आई है।’
कच्चे माल की कमी की वजह से कई इकाइयां बंद तक करनी पड़ी और जो बची रह गईं उन्होंने अपने उत्पादन में कटौती कर दी। मंदी के अलावा कच्चा माल आपूर्ति, ढुलाई भाड़े में इजाफे जैसे स्थानीय कारकों ने भी इस उद्योग की हालत खराब की।