भले ही देश की घरेलू खिलौना कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षो में अपना उत्पादन और निर्यात बढ़ा लिया हो, लेकिन इस उद्योग की मुसीबतें अभी भी कम नहीं है।
एक तरफ पिछले दस सालों में ग्रेटर नोएडा में स्थित टॉय सिटी में खिलौना कंपनियों की संख्या 118 से घटकर केवल 18 रह गई है। दूसरी ओर खिलौनों में तकनीकी सुधार के लिए टॉयज डिजाइन ऐंड डेवलपमेंट इंस्टीटयूट स्थापित करने की योजना लटक जाने से भी इस उद्योग के विकास पर असर पड़ रहा है।
टॉय सिटी के कारोबारियों और टॉयज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष परेश चावला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि वर्ष 1997-98 में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और टॉयज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में खिलौना उद्योग के विकास के लिए टॉय सिटी का निर्माण किया गया था।
इसके तहत 100 एकड़ जमीन में लगभग 118 कंपनियों को जमीन आबंटित की गई थी लेकिन सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय से पर्याप्त सहयोग न मिलने और अन्य कारणों से अब यहां केवल 18 कंपनियां ही बची हैं। खिलौना कंपनियों के चले जाने से 100 एकड़ जमीन का काफी हिस्सा दूसरे लघु उद्योगों के लिए आरक्षित कर दिया गया है।
चावला ने बताया कि खिलौना उद्योग की हालत सुधारने के लिए 2005 से ग्रेटर नोएडा में एक टॉय डिजाइन ऐंड डेवलपमेंट इंस्टीटयूट शुरू किया जाना था। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी यह योजना हवा में लटकी नजर आ रही है।
संस्थान की स्थापना न होने से खिलौना उद्योग के विकास में बुरा असर पड़ रहा है। संस्थान की स्थापना का जिम्मा सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय के जिम्मे था। यह संस्थान ग्रेटर नोएडा में 5 एकड़ जमीन में बनाया जाना था। संस्थान शुरू होने से देश के खिलौना कारोबार का उत्पादन लगभग 100 गुना बढ़ सकता है और डिजाइन के मामले में बड़े पैमाने पर श्रमिकों को प्रशिक्षित किया जा सकेगा।
विकास का समय
टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों का मानना है कि नोएडा में खिलौना कारोबार अच्छी स्थिति में पहुंच गया है। टॉय सिटी की ही 18 कंपनियों का सालाना कारोबार 50 करोड़ रुपये का हो गया है। जो प्रतिवर्ष 20 फीसदी की दर से बढ़ोतरी कर रहा है।