फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग लगभग पूरे देश की मांग को पूरा करता है और यहां केवल चूड़ियों का वार्षिक कारोबार ही कई करोड़ रुपये का है।
लेकिन, खूबसूरत कलाइयों पर सजने वाली चूड़ियों को सतरंगा आकार देने वाला यह उद्योग चौतरफा मुसीबत का सामना कर रहा है। चूड़ी उद्योग निर्यातक उत्पीड़न, क्रेडिट की कमी, जिंसों के बढ़ते मूल्य, कोयले को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल पर लगी रोक और नई इकाइयों में प्राकृतिक गैस की आपूर्ति नहीं होने जैसी समस्याओं से रूबरू है।
आगरा से 50 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने वाले छोटे निर्माता अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों की सख्ती के कारण ये इकाइयां कांच को पिघलाने के लिए कोयला या लकड़ी का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं। इन इकाइयों के लिए गेल की पाइपलाइन से सीएनजी कनेक्शन हासिल करना पहले ही काफी महंगा था लेकिन अब गेल ने नए कनेक्शन जारी करना पूरी तरह से बंद कर दिया है। गेल ने ऐसा ओएनजीसी से गैस आपूर्ति में कमी आने के बाद किया है।
ईंधन और कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी की मार झेल रहे उद्योग को निर्यातकों ने भी निराश किया है। उद्यमियों ने जब निर्यातकों से बढ़ी कीमतों का भार उठाने के लिए कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया। इस बीच कांच उद्योग में हड़तालों का सिलसिला भी काफी बढ़ गया है।
फिरोजाबाद के सहायक आयुक्त (श्रम) राकेश द्विवेदी के मुताबिक छोटी इकाइयों द्वारा उठाई गए ज्यादातर मांगों को निर्यातकों और इन इकाइयों के संचालकों के बीच बातचीत के जरिए आसानी से पूरा किया जा सकता है। इन इकाइयों की ज्यादातर मांग मजदूरी के मसले से जुड़ी है और कांच उद्योग में काम कर रहे मजदूरों का उत्पीड़न रोकने के लिए जिला प्रशासन के सीधे हस्तक्षेप की जरुरत है।
उन्होंने कहा कि कांच उद्योग के साथ बीती 12 मई को एक बैठक की गई है। बैठक में चूड़ी निर्माताओं ने निर्यातकों द्वारा दी जा रही कम कीमत के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि कच्चे माल की कीमत मजदूरी बढ़ने के कारण उनके मार्जिन को भी बढ़ाना चाहिए। हालांकि व्यापारियों और निर्यातकों ने कीमतों में बढ़ोतरी से इनकार किया है। इसके बाद चूड़ी बनाने वाले इकाइयां हड़ताल पर चली गई थीं।
उन्होंने बताया कि इस समय चूड़ी बनाने वाली इकाइयां पिछले एक सप्ताह से हड़ताल पर हैं और ऑर्डर में देरी के कारण उद्योग को कई लाख रुपये का नुकसान हो चुका है।उन्होंने बताया कि चूड़ी इकाई के मालिकों और कारोबारियों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है और दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े हैं। इस कारण उद्योग में मदी का रुख भी दिखाई देने लगा है।
कांच की चूड़ी पकाई भट्टी सेवा समिति के अध्यक्ष इनाम कुरैशी ने बताया कि कांच गलाई संयंत्र काफी कम मार्जिन पर काम कर रहीं हैं और यह उद्योग पूरी तरह से श्रमिकों पर आधारित है। इस कारण लागत दिन पर दिन मंहगी होती जा रही है। इन इकाइयों का आकार काफी छोटा है और इन्हें बैंकों से एसएसआई ऋण नहीं मिल पाता है। इन्हें आज भी कुटीर उद्योग माना जाता है और ऋण की सुविधा नहीं मिल पाने के कारण इन इकाइयों को कोयल ईधन प्रौद्योगिकी से सीएनजी को अपनाने में दिक्कत पेश आ रही है।