उत्तर प्रदेश में गन्ना और चीनी क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाली गन्ना सहकारी समितियां 2008-09 के पेराई सत्र में तेजी लाने की जुगत में हैं।
ये समितियां किसानों और चीनी मिलों के बीच मध्यस्थता का काम करती हैं। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग लंबे समय से इन समितियों को बंद करने की मांग कर रही हैं ताकि वे किसानों से सीधे तौर पर फसलों की खरीदारी कर सकें। हालांकि राज्य सरकार ने अभी तक उनकी मांगों को स्वीकार नहीं की है।
गन्ना और चीनी आयुक्त हर शरण दास ने बताया, ‘इन समितियों का उद्देश्य राज्य में गन्ना किसानों के हितों की रक्षा करना है और यह प्रणाली आगे भी काम करती रहेगी।’ उन्होंने बताया, ‘फिलहाल इस वक्त समितियां राज्य में कुल गन्ना क्षेत्रों का सर्वे करने में व्यस्त हैं।’ वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कुल 168 सहकारी समितियां है। इनमें से करीब 100 समितियां ही फायदे में चल रही हैं।
सूबे की ज्यादातर समितियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित हैं और उनकी वित्तीय हालत भी अच्छी हैं जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित समितियां बुरे दौर से गुजर रही हैं। समितियों में 10,000 से 40,000 गन्ना किसान सदस्यों के रूप में शामिल हैं। इस साल गन्ना रकबा में 25 फीसदी से अधिक की कमी आएगी वहीं दूसरी ओर समय से बारिश होने की वजह से गन्ने की उत्पादन अच्छी होने की उम्मीद है। उम्मीद की जा रही है कि इस साल पेराई सत्र अक्टूबर से शुरू हो जाएगी।
पिछले साल पेराई सत्र की शुरुआत काफी देरी से नवंबर में हुई थी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल गन्ना किसानों को बेहतर कीमत मिल सकेगी। पिछले साल जहां 85 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था वहीं इस साल चीनी का उत्पादन 73 लाख टन दर्ज किया गया है। साल 2007-08 में राज्य में गन्ना की रिकार्ड तोड़ पैदावार हुई थी जो 16 करोड़ टन से अधिक थी। उस वर्ष करीब 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती की गई थी।