पंजाब में धान की बुआई के दौरान मजदूरों का अकाल कुछ कम होता हुआ दिखाई दे रहा है। राज्य में मजदूरी में इजाफा होने के साथ ही उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर पंजाब वापस लौटने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार में विकास गतिविधियों के बढ़ने के बाद इन राज्यों के मजदूर वापस लौट गए थे। इससे पंजाब में मजदूरों की किल्लत हो गई है। लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के मुताबिक मजदूरों को अब लगभग दोगुनी पगार दी जा रही है और इससे अब मजदूरों के अभाव में काफी कमी आई है।
दूसरे राज्यों से मजदूरों की आवक बढ़ने से किसानों पर दबाव घटा है। इसके अलावा अधिक मजदूरी पाने के लिए राज्य की औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले मजदूरों ने भी धान की रोपाई का काम करना शुरू कर दिया है। एक दिहाड़ी मजदूर गुरदयाल सिंह ने बताया कि ‘मुझे फैक्टरी से हर रोज 100 रुपये मिलते थे जबकि यहां (धान की रोपाई के लिए) 200 रुपये मिल रहे हैं जो काफी अधिक है।’ कृषि वैज्ञानिक एस एस जोह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हालांकि अभी भी राज्य में मजदूरों की कमी है लेकिन संकट जैसी कोई बात नहीं है।
उत्पादकता को प्रभावित किए बिना रोपाई को अगले 15 दिनों तक टाला जा सकता है। इससे पहले राज्य के कई हिस्सों से धान सत्र के दौरान मजदूरों की कमी की खबरें आ रही थीं। उन्होंने आगे बताया कि इस संकट का एक दूसरा पहलू भी है। मजदूरों के अभाव में राज्य के किसान कृषि यंत्रों की मदद से खेती करने के प्रति जागरुक हुए हैं। उन्होंने माना कि औद्योगीकरण और राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के कारण अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में रोगजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। मौजूदा संकट की जड़ में भी यही वजह है।
उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे किसी संकट से बचने के लिए पंजाब के किसानों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। अब पंजाब के किसानों पर नजर डालते हैं। राज्य के किसानों की शिकायत है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के मुकाबले पंजाब के मजदूर कम मेहनती हैं। हालांकि उन्हें अब पंजाबी मजदूरों लेने पड़ रहे हैं।