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बिना पानी कैसी जिन्दगानी

Last Updated- December 07, 2022 | 12:03 AM IST

महाराष्ट्र देश के सबसे विकसित राज्यों में से एक है। इसके बावजूद इसकी आबादी का एक बड़ा भाग जल के स्थायी और संजीदे संकट के दौर से गुजर रहा है।


मुंबई और पुणे सरीखे शहरों में तो यह समस्या और भी गंभीर है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य के 70 फीसदी से ज्यादा गांवों में पानी या तो 500 मीटर के दायरे में उपलब्ध नहीं है या फिर जमीन से 15 मीटर की गहराई तक उतर चुका है। ज्यादातर जगहों में तो यह पानी पीने लायक भी नहीं रह गया है।

अमूमन पूरे राज्य में महिलाओं का पानी के लिए लंबी कतार में खड़ी होने का नजारा दिखने को मिलता है। वर्ष 2002 में जारी महाराष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के ग्रामीण इलाकों के करीब एक चौथाई परिवार को पीने के लिये स्वच्छ पानी तक नहीं मिल पा रहा है।

हाल में ही विश्व बैंक द्वारा कराये गये हाउसहोल्ड सर्वे बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में एक परिवार को पानी जुटाने के लिए प्रतिदिन औसतन 2 घंटे समय का समय खर्च करना पड़ता है। गर्मी के दौरान तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। महाराष्ट्र सरकार के वाटर सप्लाई और सेनीटेशन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक राज्य सरकार गंभीर जलसंकट वाले गांव में आपातस्थिति में जलापूर्ति हेतु प्रतिवर्ष तकरीबन 100 करोड़ रूपये खर्च कर रही है।

पानी जो पीने लायक हो

जलापूर्ति से हमारा तात्पर्य वैसे जल से है,जो कि परिष्कृत हो। आम बोलचाल की भाषा में पीने लायक पानी हो। विश्व बैंक के मुताबिक, कुल उपलब्ध जलसंसाधन और उपयोग के बीच असंतुलन की स्थिति ही जलसंकट है।

लिहाजा, गरीबी में कमी, पर्यावरणीय स्थायित्व, बेहतर रहन-सहन और निरंतर आर्थिक विकास के लिये समेकित जलप्रबंघन अनिवार्य है। इसी के तहत राष्ट्रीय जल नीति 2002 में जलसंसाधनों को एकीकृत तरीके से विकसित और प्रबंधित करने का प्रावधान किया गया। चूंकि जल राज्य सूची का विषय है, इसलिए इस संसाधन के प्रयोग और नियंत्रण की मौलिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है।

महाराष्ट्र में शहरी जलापूर्ति नगर निगम के जिम्मे है, जबकि ग्रामीण इलाकों में जल का आपूर्ति पंचायत करती है। सामान्यतया महाराष्ट्र में जल की आपूर्ति तालाब, डैम, नदियों पर बने चेक डैम से की जाती है, लेकिन सिकुड़ते तालाब और फैलते शहर ने मांग और आपूर्ति के समीकरण को ही बदल डाला है।

हाल-ए-मुंबई

मुंबई शहर में जल की आपूर्ति बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) केदो और नवी मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के एक डैम द्वारा की जाती है। बीएमसी के अधिकारियों के मुताबिक बीएमसी प्रतिदिन 3,350 मिलियन लीटर पानी की सप्लाई करती है जबकि शहर की जरूरत करीब 4,200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है।

मुंबई की मेयर शुभा राउल बताती हैं कि 20 से 30 प्रतिशत पानी पुरानी और खराब पाइप केचलते रिस रहे हैं। रोजना बर्बाद होनेवाले पानी की यह मात्रा पूणे सरीखे शहर की जरूरत केलिए पर्याप्त होगी।

नागपुर, नासिक, औरंगाबाद जैसे शहरों में यह पानी की आपूर्ति क्रमश: पेंच डैम, गंगासागर डैम, जायकबाड़ी डैम से होती है। ये डैम जल संसाधन विभाग के अंतर्गत आते हैं जिससे पानी की आपूर्ति स्थानीय नगर निगम को करना होता है। नतीजतन नगर निगम को जरूरत लायक पानी के लिए नाना प्रकार के कानूनी ताम-झाम से गुजरना पड़ता है।

अगर बड़े राज्यों को देखा जाय तो महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा नगरीकृत राज्य है। नगरों की बढ़ती आबादी, आर्थिक विकास और औद्योगिक गतिविधियों के लिए पानी की आपूर्ति हेतु भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है।

समीपवर्ती जिलों से जल की आपूर्ति नगरों की और होने से वह क्षेत्र भी पानी की कमी से जूझ रहा है। राज्य में पानी आपूर्ति की दर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के बल्क सप्लाई के लिए जहां 4 रुपया प्रति हजार लीटर है वहीं यह दर गैर-म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के लिए 8 रुपया प्रति हजार लीटर है। ग्राम पंचायत और जिला परिषद के बल्क सप्लाई के लिए यह दर 4 रुपये प्रति हजार लीटर है।

शहरों में घरेलू आवासीस उपभोक्ताओं के लिए यह दर 8.80 रुपये प्रति हजार है जबकि ग्रामीण इलाके में यह दर 4.50 रुपये प्रति हजार लीटर है। औद्योगिक और व्यवसायिक क्रिया कलापों के लिए यह दर तो 40 रुपये प्रति 10,000 लीटर तक है। पानी की बढ़ती कीमत भी चिंता का विषय है।

सबसे प्यासा पश्चिमी महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की लगभग 70 फीसदी भूमि शुष्क और अर्द्धमरूस्थलीय है। राज्य की लगभग 12 प्रतिशत आबादी सूखाग्रस्त क्षेत्र में रहने को मजबूर है। सबसे ज्यादा असर पश्चिमी महाराष्ट्र के अंतर्गत आने वाले जिलों पर पड़ा है जिसमें सिर्फ कोल्हापुर ही अपवाद है।

प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 130 सेंटीमीटर होती है, लेकिन बेहतर प्रबंधन साथ ही भौम जल के रिचार्जिंग तकनीक पर ढुलमुल रवैया के चलते ये पानी व्यर्थ ही समुद्र में समा जा रहे हैं। नतीजतन, पूरा का पूरा महाराष्ट्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है। अहमदनगर, औरंगाबाद, बीड, नांदेड़, नासिक, उस्मानानाबाद, पुणे, परभणी, सांगली, सतारा और सोलापुर में स्थिति तो और भी संजीदा है। भूमिगत जल की कमी और पानी केअनवरत दोहन के कारण एक्यूफर जलभित्त का स्तर बहुत नीचे चला गया है।

First Published - May 19, 2008 | 1:51 AM IST

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