मुंबई के धारावी में गगनचुंबी इमारतें खड़ी करने के सरकारी ख्वाब से यहां लोग बेहद खौफजदा हैं। इसकी वजह भी है क्योंकि धारावी महज झोपडपट्टी बस्ती ही नहीं है बल्कि अपने आप में लघु उद्योग इंडस्ट्री भी है।
यहां मुख्यत: कालीन,जरी, लेदर, पापड़, अचार, और खिलौनों का कारोबार होता है। यहां से लगभग 2000 करोड़ रुपये का कर सरकार को मिलता है। हर झोपडा अपने आप में एक कारखाना है। इन कारोबारियों को डर है कि सरकार जिस तरह की योजना बना रही है उससे उनका कारोबार बंद हो सकता है, क्योंकि सरकार जो फ्लैट उन्हे देने की बात कर रही है उसमें उनका काम नहीं हो पाएगा।
धारावी बचाओ के राजू कोरडे का कहना है कि धारावी के अधिकांश झोपडों में महलों का प्रावधान है,जिसमें धारावी के लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। इस विशेषता को ध्यान में रखते हुए सरकार को 400 वर्ग फुट के फ्लैट देने चाहिए जिसमें तल बनाने की छूट होनी चाहिए। इस बात को सिरे से इनकार करते हुए धारावी के शिल्पकार मुकेश मेहता कहते हैं कि यह मांग निराधार है। कुछ लोग और सामाजिक संस्थाए लोगों को गुमराह कर रही हैं। इस प्रोजेक्ट में सभी के उद्योग धंधो का पूरा ध्यान दिया गया है।
वादों में धारावी
धारावी के विकास के लिए शुरु किये गये इस प्रोजेक्ट में सरकार, राजनेता और छुटभैया नेताओं ने वादों की झड़ी लगा दी है। विरोध में मुख्यत: धारावी बचाओ समिति, स्पार्क और शिवसेना-भाजपा हैं। धारावी बचाओं समिति का कहना की हम विकास का विरोध नहीं कर रहे हैं, हमारा सिर्फ इतना कहना है कि धारावी की जमीन का सिर्फ विकास मत करो,यह रह रहे लोगों का विकास होना चाहिए। इसलिए 400 बर्ग फुट का फ्लैट दिया जाना चाहिए।
समिति लोगों से वादा करती है कि वह उनका हक दिला कर रहेगी। वही धारावी पुनर्विकास प्रकल्प से जुडे अधिकारियों का कहना है कि हेराफेरी करके कुछ नहीं होगा। हम धारावी के विकास के लिए काम कर रहे है और सभी का विकास होगा। वादों के बीच में झूलता धारावी का आम इंसान समझ नहीं पा रहा है कि किसकी बात पर विश्वास किया जाए।