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क्या फिर से पंजाब आएंगे बिहार के मजदूर

Last Updated- December 07, 2022 | 6:46 AM IST

पीएयू के शिक्षकों का मानना है कि प्रवासी मजदूर एक बार फिर से पंजाब का रुख करेंगे। इसके पीछे उनकी दलील है कि पिछले साल तक प्रति एकड़ बुआई के लिए मजदूरों को 600-800 रुपये दिए जाते थे।


पांच मजदूर मिलकर एक एकड़ की बुआई एक दिन में कर देते हैं। ऐसे में प्रति मजदूर को 120-160 रुपये की दिहाड़ी बनती थी। लेकिन इस साल मजदूरों के अकाल के कारण बुआई की दर 1200-1300 रुपये तो कही-कही 1500 रुपये प्रति एकड़ हो गयी है।

इस हिसाब से एक मजदूर को एक दिन में 300 रुपये तक की कमायी हो रही है। शिक्षकों का कहना है कि पारिश्रमिक बढ़ने से मजदूरों की आपूर्ति निश्चित रूप से बढ़ेगी। हालांकि मजदूरों को बुलाने के लिए पंजाब के नेताओं ने सरकार से मांग की है कि बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को मुफ्त में पंजाब भेजने की व्यवस्था की जाए। कुछ नेताओं ने यह भी मांग की है कि बिहार से मजदूरों को मंगाने के लिए पंजाब सरकार को खर्च वहन करना चाहिए।

पंजाब के नेताओं का कहना है कि मजदूरों की कमी से सिर्फ पंजाब ही नहीं पूरे देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गत वर्ष पंजाब में कुल 15.7 मिलियन टन धान का उत्पादन हुआ था जो देश के कुल धान उत्पादन का 11 फीसदी था। अर्थशास्त्र के जानकारों का कहना है कि मजदूरों के लिए मुफ्त यातायात की व्यवस्था की बातें बेतुकी लगती है। रेल का परिचालन पहले से ही प्रति यात्री मात्र 25 पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से किया जा रहा है।

अर्थशास्त्रियों का  कहना है कि पंजाब के किसान परिवार के सभी सदस्य भी काम पर लग जाए तो भी 20 दिन में 26 लाख हेक्टेयर जमीन पर बुआई नहीं कर सकते हैं। उनका मानना है कि मजदूरों का पलायन जारी रहा तो कृषि के मशीनीकरण के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। लेकिन मशीन से बुआई का काम करना काफी महंगा साबित होगा। धान की बुआई का काम करने वाली मशीन की कीमत 10 लाख रुपये है।

हालांकि पंजाब सरकार ने इस प्रकार की कुछ मशीनें खरीदी हैं लेकिन उससे सभी किसानों की जरूरत पूरी नहीं की जा सकती है। दूसरी बात है कि सरकार उस मशीन को किराए पर देती है और मध्यम स्तर के किसानो के लिए वह महंगी साबित हो सकती है। सिध्दू कहते हैं कि मशीन का चलन बढ़ने में अभी काफी वक्त लगेगा। फिलहाल अभी जो हालात बन रहे हैं उसमें  तो पंजाब के किसानों को प्रवासी मजदूरों का ही इंतजार रहेगा।
(अगले अंक में पढ़िए महाराष्ट्र में सुस्त पड़ी उद्योगों की रफ्तार) 

First Published - June 22, 2008 | 11:22 PM IST

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