यह बेहद अजीब बात है कि एक ओर जहां कानपुर स्थित ऊनी कपड़े की मिल लाल इमली के गोदाम में करीब 13.6 करोड़ रुपये के कपड़े वर्षों से बेकार पड़े हैं, वहीं यह मिल बीते पांच साल से राष्ट्रीय वस्त्र निगम (एनटीसी) के रहमो-करम पर चल रही है।
लाल इमली वूलेन मिल्स का संचालन ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन (बीआईसी) करती है। करीब एक दशक से लाल इमली गंभीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है। इस इकाई को 2003 में भारतीय सेना से 14 करोड़ रुपये का आर्डर मिला था लेकिन एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने यह आरोप लगाते हुए उत्पादों को वापस कर दिया था कि कपड़े घटिया किस्म के हैं।
सेना के अधिकारियों द्वारा उत्पादों को वापस किए जाने के बाद इस बाबत जांच का जिम्मा केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा गया, जिसकी रिपोर्ट आनी है। मिल प्रबंधन इन मुद्दों पर कुछ भी कहने से बच रहा है।
गौरतलब है कि 1.5 लाख मीटर वूलेन अंगोला फैब्रिक और करीब 50,000 मीटर धारीवाल कपड़े कई साल से स्टोर में पड़े हुए हैं और प्रबंधन इसके लिए लायक उपभोक्ता को खोज पाने में नाकाम रहा है। हालांकि अब प्रबंधन ने वूलेन अंगोला और धारीवाल ब्रांड के कपड़ों को बेचने का फैसला किया है। एक जमाने में करोड़ रुपये की कीमत वाले इन कपड़ों को अब कौड़ियों के भाव बेचा जाएगा।
बहरहाल लाल इमली के गोदामों में बेकार पड़े कपड़ों की सही कीमत का आकलन करने के लिए एनटीसी की एक समिति को भेजा गया है। इस बीच मिल ने किश्तों पर कपड़े बेचने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एनटीसी की समिति के अध्यक्ष और मुख्य खाता नियंत्रक दीपक दास ने बीआईसी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद पहले टेंडर के तहत 8 करोड़ रुपये के कपड़े बेचने का फैसला किया है।