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नीतीश की नई राह पर सबकी निगाह

Last Updated- December 11, 2022 | 4:46 PM IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी तरह की बगावत या किसी अप्रत्याशित स्थिति के पैदा होने से पहले ही यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बिहार में महाराष्ट्र की तरह कोई कदम न उठा सके। ऐसे में सरकार में बने रहने के लिए राजनीतिक भागीदारों को बदलने की संभावना भी बन सकती है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के साथ फिर से गठबंधन करने की उम्मीद बन रही है जिसने अपने मौजूदा सहयोगी दल भाजपा से दूरी बनाने का फैसला लगभग कर लिया है।
कुछ दिन पहले ही भाजपा ने पटना में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की और इसमें घोषणा की गई कि उसने 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में जद (यू) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस घोषणा में यह भी संदेश दिया गया कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे।  सोमवार को भाजपा ने अपना मजबूत रुख दिखाने की कोशिश की लेकिन यह स्पष्ट था कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है और रिश्ते में कड़वाहट कुछ ज्यादा बढ़ गई है।
इसकी तात्कालिक वजह केंद्रीय मंत्रिमंडल में जद (यू) के प्रतिनिधि के तौर पर मंत्री बने आरसीपी सिंह द्वारा उठाए गए कदम थे। आरसीपी सिंह भाजपा के कुछ अधिक करीब आ गए जो संभवतः जद (यू) के शीर्ष नेतृत्व को नहीं भाया।

इस वक्त राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सभी 79 विधायकों को पटना आने के लिए कहा गया है। जद (यू) सांसदों और विधायकों को भी मंगलवार को बैठक के लिए बुलाया गया है। 
बिहार विधानसभा की संरचना ऐसी है कि नीतीश कुमार 2025 तक 243 सदस्यीय विधानसभा में आराम से किंगमेकर की भूमिका में रह सकते हैं। राज्य में वर्ष 2025 में अगला विधानसभा चुनाव होगा लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब उनके दल के सभी लोग उनके साथ मजबूती से बने रहें। उनके पास केवल 45 विधायक हैं, लेकिन अन्य दो राजनीतिक दलों भाजपा (77 विधायक) और राष्ट्रीय जनता दल दोनों ही नीतीश की मदद के बिना सरकार नहीं बना सकते हैं। राजद के 75 विधायक थे लेकिन बाद में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चार विधायक पार्टी से जुड़ गए।

दो सबसे बड़े दल राजद और भाजपा एक दूसरे के साथ गठबंधन नहीं कर सकते हैं। कांग्रेस के 19 और भाकपा (माले) और भाकपा के 16 विधायकों सहित कुल 115 विधायकों के बावजूद विपक्ष के पास अब भी बहुमत से सात विधायक कम हैं। भाजपा की सरकार बनने का एकमात्र तरीका जद (यू) का बंटवारा करना था। लेकिन राजनीतिक सहयोगी के रूप में भाजपा का साथ छोड़कर नीतीश, भाजपा के उस संभावित कदम को भी कमजोर कर सकते हैं। 
पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह का ताल्लुक भी उसी जाति और क्षेत्र से है जहां से नीतीश आते हैं। उन्हें नीतीश का दाहिना हाथ माना जाता था। वह लगभग 12 वर्षों से एक-साथ जुड़े हुए थे। लेकिन मंगलवार को आरसीपी सिंह ने घोषणा कर दी कि उन्होंने जद (यू) छोड़ दिया है। वह ऐसे शख्स हैं जिनके बारे में नीतीश को यह संदेह है कि उन्हें बिहार में भाजपा के एकनाथ शिंदे की भूमिका में उतारा जा सकता है।

नीतीश इस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के संपर्क में हैं और पार्टी ने पहले ही नेताओं के एक समूह को पटना भेजा है और यह संदेश दिया जा रहा है कि थोड़े एतराज के बावजूद पार्टी अपनी सहमति देने के लिए तैयार है। राजद को इस बात के बावजूद ऐसी कोई आपत्ति नहीं है कि हाल ही में पार्टी और जदयू के बीच जुबानी जंग का दौर चला है। 
भाजपा और जद (यू) के बीच कई महीनों से दूरियां बढ़ रही हैं। दो दिन पहले, नीतीश ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। उन्होंने खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया था लेकिन उस वक्त वह बिहार में कई सार्वजनिक कार्यक्रमों को संबोधित कर रहे थे और पूरी तरह से स्वस्थ भी दिख रहे थे। नीतीश 17 जुलाई को स्वतंत्रता दिवस समारोह पर अमित शाह द्वारा बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में शामिल नहीं हुए और उन्होंने बिहार के उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता तारकिशोर सिन्हा को भेजने का फैसला किया।
निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सम्मान में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आयोजित 22 जुलाई के एक कार्यक्रम और तीन दिन बाद नए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी नीतीश ने हिस्सा नहीं लिया। इससे पहले  नीतीश देश की कोविड स्थिति पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी अनुपस्थित रहे।

इससे पहले भी विधानसभा अध्यक्ष (जो भाजपा से जुड़े हैं) विजय कुमार सिन्हा की भूमिका जद (यू) को खटकती है और नीतीश के सहयोगी दल से जुड़े होने के बावजूद कई मौकों पर सिन्हा के साथ उनकी तीखी नोक-झोंक हो चुकी है। सरकार के कामकाज को लेकर भाजपा की अपनी शिकायतें हैं और जाति-आधारित जनगणना पर नीतिगत मतभेद होने के बावजूद भाजपा सरकार को अपना समर्थन देने के लिए मजबूर हुई थी। 
 

First Published - August 9, 2022 | 12:10 PM IST

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