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जलवायु परिवर्तन से कई चुनौतियां

Last Updated- December 11, 2022 | 9:00 PM IST

जलवायु परिवर्तन से भारत के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) के कार्यशील समूह-2 ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इस गंभीर खतरे की वजह से भारत में समुद्र का जल स्तर बढऩे से लेकर भूजल की कमी, मौसम में गंभीर बदलाव और फसल उत्पादन में कमी से लेकर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन देशों में शामिल होगा जिन पर जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों का अधिक असर देखा जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक और समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा, वहीं शुद्ध जल की कमी की समस्या भी खड़ी हो जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार यह एक तरह से दोतरफा मार होगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे की जहां तक बात है तो भारत उन देशों में शामिल होगा जहां की आबादी समुद्री जल स्तर बढऩे से प्रभावित होगी। इस शताब्दी के अंत तक भारत में तटीय क्षेत्र में रहने वाली करीब 3.5 करोड़ आबादी को बाढ़ जैसे खतरे का सामना करना पड़ सकता है। इस शताब्दी के अंत तक 4.5 से 5.0 करोड़ लोग प्रभावित होंगे।’  
आईपीसीसी ने कु छ अध्ययनों का हवाला देकर कहा है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मांग के कारण भारत की कम से कम 40 प्रतिशत आबादी को 2050 तक जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। इस समय देश में करीब 33 प्रतिशत लोग इस संकट से जूझ रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि जलवायु संकट के कारण गंगा और ब्रह्मपुत्र दोनों नदियों के किनारे बसी आबादी को बाढ़ का अधिक सामना करना पड़ सकता है।
यह रिपोर्ट आईपीसीसी की छठी समीक्षा रिपोर्ट (एआर 6) का हिस्सा है। अगस्त में डब्ल्यूजी-1 ने कहा था कि आर्थिक वृद्धि दर किसी भी सीमा में रहने पर वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो जाएगा। डब्ल्यूजी-2 पारिस्थितिकी-तंत्र, जैव-विविधता और मानव समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के असर की समीक्षा करता है। डब्ल्यूजी-2 की रिपोर्ट तैयार करने में 270 लोगों ने योगदान दिया है।
इस ताजा रिपोर्ट में इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है कि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी के साथ दुनिया अगले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभिन्न खतरों का सामना कर सकती है।
एक तरफ समुद्र का जल स्तर बढऩे और दूसरी तरफ जल संकट पैदा होने से भारत के कृषि क्षेत्र पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इस रिपोर्ट के एक अध्याय में कहा गया है कि गेहूं, दलहन, मोटे अनाज और अनाज उत्पादन देश में 2050 तक करीब 9 प्रतिशत तक कम हो सकता है। कार्बन उत्सर्जन अधिक रहा तो दक्षिण भारत में मक्का उत्पादन में 17 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘फसल उत्पादन में कमी होने से भारत में दाम में खासा इजाफा हो सकता है जिससे खाद्य सुरक्षा और आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर होगा। जलवायु परिवर्तन लगातार होता रहा तो इससे देश में मछली उत्पादन में भी कमी आ सकती है।’
आईएसबी में भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में शोध निदेशक डॉ. अंजल प्रकाश ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर देश के लगभग सभी हिस्से में देखा जा रहा है। प्रकाश ने कहा,’उत्तर में हिमालय क्षेत्र से लेकर दक्षिण में तटीय क्षेत्रों से लेकर मध्य भारत तक सभी जगहोंं पर इस बदलाव का प्रतिकूल असर देखा जा रहा है। देश का कोई भी हिस्सा इससे सुरक्षित नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में देश का शहरी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का अधिक शिकार हो सकता है। यह बात इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि अगले 15 वर्षों में शहरी क्षेत्रों में 60 करोड़ और लोग बढ़ जाएंगे।’
वृहद आर्थिक स्तर पर भी भारत के लिए मुश्किलें कम नहीं होंगी। इस रिपोर्ट में शामिल अध्ययन में जिक्र किया गया है कि जलवायु परिवर्त की वजह से वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में प्रति टन कार्बन इजाफा होने से देश को 86 डॉलर का नुकसान होगा। पिछले साल रूस के शहर ग्लासगो में सीओपी 26 के दौरान भारत ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर से निपटने के लिए दुनिया के विकसित देशों से एक विशेष कोष तैयार करने की मांग की थी। हालांकि  दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं से अलग से नुकसान एवं क्षति से संबंधित कोई कोष तैयार करने का आश्वासन नहीं आया। इसे देखते हुए भारत ने निराशा जताई थी।
भारत ने सीओपी 26 के दौरान कहा था, ‘विकसित देशों को दीर्घ काल से चले आ रहे जलवायु परिवर्तन के खतरे की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन मुहैया करना चाहिए।’
डब्ल्यूजी-2 में विशेषज्ञों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी दुनिया में समान एवं एकजुट होकर प्रयास किया जाना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया के मैक्वारी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ऐंड एन्वायरनमेंटल फाइनैंस में अतिथि सहायक प्राध्यापक डॉ. रोशन बेगम आरा कहती हैं, ‘दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर हर जगह एक जैसा नहीं देखा जा रहा है। भारत और बांग्लादेश इस चुनौती से अधिक प्रभावित हो सकते हैं जबकि वे इस स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। यही वजह है कि इस दुनिया को इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए समानता एवं पूरी ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।’

First Published - February 28, 2022 | 11:31 PM IST

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