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मुफ्त अनाज वितरण में बढ़ेगी चावल पर निर्भरता!

Last Updated- December 11, 2022 | 7:07 PM IST

सरकार अगर मुफ्त अनाज वितरण 30 सितंबर, 2022 के बाद जारी रखने का फैसला करती है तो वह गेहूं की जगह चावल पर निर्भरता बढ़ा सकती है। व्यापार और बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि चावल का भंडारण जरूरत से बहुत ज्यादा है, वहीं गेहूं भंडारण वित्त वर्ष 23 के अंत तक भंडारण जरूरत के स्तर पर आने की संभावना है।
बहरहाल खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने इस तरह के विवाद में हाल में संवाददाताओं से कुछ भी कहने से इनकार किया था। उन्होंने कहा कि वह ऐसे मसले पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, जो हुआ नहीं है।
इसके पहले नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) को सितंबर से आगे बढ़ाया जाना महज अटकलबाजी है। उन्होंने कहा, ‘जब अप्रैल 2022 में पीएमजीकेएवाई को पिछली बार 6 महीने के लिए बढ़ाया गया था, तमाम लोगों ने आश्चर्य जताया था कि ऐसा क्यों किया गया, जबकि आसपास कोई चुनाव नहीं हैं। लेकिन सरकार ने ऐसा किया, क्योंकि यह महसूस किया गया कि अभी अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और इसकी जरूरत है। इस तरह से पीएमजीकेएवाई को लेकर कई तरह के विचार हैं और सरकार जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करेगी।’
खाद्य मंत्रालय द्वारा लगाए गए हाल के अनुमान के मुताबिक 31 मार्च, 2023 तक भारत के पास केंद्रीय पूल में करीब 3.86 करोड़ टन चावल हो सकता है। यह अनुमान मौजूदा मांग व आपूर्ति के आंकड़ों के आधार पर लगाया गया है। बफर और रणनीतिक भंडारण के लिए 1.36 करोड़ टन की जरूरत होती है, जिसकी तुलना में यह बहुत ज्यादा है।
ऐसे में अगर सितंबर 2022 के बाद पीएमजीकेएवाई के लिए इस स्टॉक में से हर महीने 40 लाख टन चावल निकाला जाता है तब भी वित्त वर्ष 2023 के अंत तक 1.36 करोड़ टन से ज्यादा चावल गोदामों में मौजूद रहेगा। चावल के पक्ष में एक और बात जाती है कि फसल खरीद का नया सत्र अक्टूबर 2022 में शुरू होगा, वह भी मौजूदा भंडार में जुड़ जाएगा।
पीएमजीकेएवाई के तहत सिर्फ चावल वितरण में एकमात्र समस्या यह है कि देश के हर हिस्से खासकर उत्तर भारत के राज्यों पंजाब और राजस्थान आदि में परंपरागत रूप से चावल नहीं खाया जाता है। पीएमजीकेएवाई के तहत चावल और गेहूं मिलाकर नए सिरे से समायोजन के हाल के दौर में केंद्र सरकार ने  गेहूं की जगह अगले 5 महीने तक 55 लाख टन चावल देने का फैसला किया है, जो मई से शुरू हो रहा है।
अधिकारियों के मुताबिक ऐसा कुछ राज्यों की मांग पूरी करने के लिए किया जा रहा है, जिनके पास चावल का बड़ा भंडार है और वे इसे गेहूं की जगह पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त वितरित करना चाहते हैं।
लेकिन एक तथ्य यह भी है कि सरकार संभवत: भविष्य के लिए कुछ गेहूं बचाना चाहती है क्योंकि 2022-23 में गेहूं का उत्पादन व खरीद कम रहने का अनुमान है।
2022-23 में गेहूं का उत्पादन 6 प्रतिशत गिरकर 1,050 लाख टन रहने की संभावना है, जबकि पहले उत्पादन 1,113 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया था। वहीं खरीद गिरकर आधे से कम 195 लाख टन रहने की संभावना है, जबकि इसके पहले 444 लाख टन खरीद हुई थी।
अधिकारियों ने कहा कि करीब 25 राज्यों ने मई सितंबर के दौरान पीएमजीकेएवाई के तहत गेहूं व चावल के मिश्रित वितरण व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया है और गेहूं व चावल के अनुपात में बदलाव करने वाले शेष राज्यों में प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु शामिल हैं। इसका मतलब है कि 25 राज्य पीडीएस के तहत चावल व गेहूं पहले के अनुपात में ही ले रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे कुछ बड़े राज्यों ने गेहूं की मात्रा कम करके उसकी जगह चावल लेना शुरू कर दिया है।
इस फैसले से केंद्र सरकार पर 4,800 करोड़ रुपये अतिरिक्त बोझ पडऩे की संभावना है, क्योंकि चावल देना गेहूं से महंगा है।

First Published - May 9, 2022 | 11:24 PM IST

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