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पश्चिम बंगाल में दल-बदल की गरमा रही है चुनावी सियासत

Last Updated- December 12, 2022 | 8:07 AM IST

आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से कई नेताओं के जाने के मामले में शायद संसद सदस्य दिनेश त्रिवेदी की विदाई को सबसे ज्यादा नाटकीय माना जाएगा जिन्होंने ‘अंतरात्मा की आवाज पर’ पिछले सप्ताह शुक्रवार को सदन में राज्यसभा की अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। बजट पर चर्चा के दौरान अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे घुटन महसूस हो रही है कि हम राज्य में हिंसा के संबंध में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। मेरी आत्मा मुझसे कहती है कि अगर तुम यहां बैठकर कुछ नहीं कर सकते हो, तो तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।’
तृणमूल कांग्रेस के लिए यह इस्तीफा हैरानी की बात है, भले ही हाल के महीनों में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कई लोग इधर से उधर गए हों। कुछ दलबदल पारदर्शी ढंग से हुआ है। पिछले महीने ममता बनर्जी मंत्रिमंडल के पूर्व मंत्री राजीव बनर्जी, विधायक वैशाली डालमिया, प्रबीर घोषाल और हावड़ा के पूर्व महापौर रथिन चक्रवर्ती ने केंद्रीय नेतृत्व की उपस्थिति में भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए एक चार्टर्ड विमान से दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी।
शुभेंदु अधिकारी और लक्ष्मी रत्न शुक्ला के बाद ममता के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले राजीव तीसरे मंत्री थे। हालांकि अधिकारी तो भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन पूर्व भारतीय क्रिकेटर शुक्ला ने राजनीति से विराम लेने का फैसला किया।
कुल मिलाकर टीएमसी के लिए ऐसे कुछ ही मामले रहे हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले पलायन किया जाना उम्मीद के अनुरूप ही था, खास तौर पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रभावशाली रूप में उभरने के बाद। वर्ष 2014 में 17 प्रतिशत मत पाने वाली भाजपा ने वर्ष 2019 में इस मत प्रतिशत को बढ़ाकर 41 प्रतिशत कर दिया। सीटों की संख्या दो से बढ़कर 18 हो गई। इससे भी बड़ी बात यह रही कि टीएमसी और भाजपा के बीच मतों की हिस्सेदारी का अंतर केवल तीन प्रतिशत था।
एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि लोकसभा परिणाम की पृष्ठभूमि में इससे भी बड़े स्तर पर पलायन का अनुमान था। ऐसा लगता है, लोगों को इस बात का विश्वास नहीं है कि जहाज डूब रहा है।
बेशक पूर्व मंत्री और कोलकाता के महापौर शोभन चटर्जी, जो वर्ष 2019 में भाजपा में शामिल हो गए और टीएमसी के संस्थापक सदस्य मुकुल रॉय, जो वर्ष 2017 में शामिल हुए थे, जैसे लोग पहले ही भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या इसका असर मतदान में भी दिखेगा।
राजनीतिक टिप्पणीकार सव्यसाची बसु रे चौधरी के अनुसार शुभेंदु अधिकारी को छोड़कर अधिकांश लोगों का बड़े स्तर पर जनाधार नहीं है। अधिकारी, जिन्होंने जमीनी स्तर पर नंदीग्राम भूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था, उनका न केवल अपने गढ़ पूर्व मेदिनीपुर, बल्कि पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ा में भी काफी दबदबा है। बसु रे चौधरी ने कहा कि टीएमसी में केवल एक ही नेता है, कोई और मायने नहीं रखता है।
दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भाजपा के लिए जवाबदेही वाले साबित हो सकते हैं, जो टीएमसी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को पाटते रहे हैं। एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि भाजपा में शामिल होने वाले कुछ नेताओं को शारदा (चिट फंड घोटाला) और नारद (कथित रूप से टीएमसी सांसदों और विधायकों से संबंधित स्टिंग ऑपरेशन) के साथ जोड़ा गया है। यह एक अड़चन बन सकता है।
माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मोहम्मद सलीम ने कहा कि यह टीएमसी की टीम-2 है। उन्होंने राज्य सरकार की शरण ली थी और अब वे केंद्र के संरक्षण में हैं।
अलबत्ता भाजपा पहले ही चयन की दृष्टि से सतर्क होने का फैसला कर चुकी है। इस महीने के शुरू में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और पश्चिम बंगाल के केंद्रीय पर्यवेक्षक कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि पार्टी टीएमसी के नेताओं को बड़े स्तर पर शामिल नहीं करेगी। लेकिन इस समावेशन का अपना महत्त्व है। भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्र कुमार बोस ने बताया कि चुनाव बस आंकड़ों का खेल होता है।
उन्होंने कहा कि प्रचार करने और बूथ वगैरह के लिए लोगों की जरूरत होती है। जब नेता शामिल होते हैं, तो वे अपने अनुयायियों के साथ आते हैं। लोगों तक पहुंच बनाने के लिए यह जरूरी होता है। अगर कुछ न हो, तो भी धारणा का मसला रहता है। टीएमसी के लिए यह शर्मनाक है। एक अधिकारी ने कहा कि इससे ऐसी भावना का संकेत मिलता है कि बंगाल किसी बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। यह एक तरह से पूर्वानुभव है। वर्ष 2008-2009 में वाम मोर्चा पलायन झेल रहा था। जैसा कि सलीम ने कहा कि तक ममता और मुकुल रॉय के नेतृत्व में ऐसा हुआ था। लेकिन उस समय परिवर्तनकारी अन्य कारकों ने भी 34 साल के वाम मोर्चे के शासन से परिवर्तन की शुरुआत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बंगाल की विभिन्न सांस्कृतिक शख्सियतों-लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी, चित्रकार शुभप्रसन्ना और जोगेन चौधरी, थिएटर हस्ती ब्रत्य बसु, विभास चक्रवर्ती और एस मित्रा, अभिनेता और फिल्म निर्देशक अपर्णा सेन तथा कवि जॉय गोस्वामी ने एक विचार – परिवर्तन चाय के बीज बोए थे। और यह एक संक्रमण की तरह हो गया। लेकिन वर्ष 2011 से बंगाल बदल गया है – धर्म का विचार अब लोगों की कल्पना पर काबिज हो रहा है। सलीम ने कहा कि बेरोजगारी, औद्योगीकरण और कृषि संकट जैसे असली मसले पीछे चले गए हैं, क्योंकि जाति, संप्रदाय और मजहब मुख्य मंच पर आ गए हैं।

First Published - February 18, 2021 | 11:10 PM IST

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