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 कैंसर से निपटने के लिए आधारभूत ढांचे का विस्तार

Last Updated- December 10, 2022 | 11:12 AM IST

कैंसर के मरीजों के इलाज के लिए आधारभूत संरचना का विकास तेजी से हो रहा है। ऐसे मरीजों के लिए ज्यादा डे-केयर बेड की व्यवस्था की जा रही है। कैंसर के मामले बढ़ने के कारण चुनिंदा स्थानों पर क्षमता विकसित कर उसके आसपास के क्षेत्रों के मरीजों को इलाज मुहैया कराया जाएगा। 
फिक्की और अन्स् र्ट ऐंड यंग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2022 में कैंसर के सूचित मामले 19 लाख से 20 लाख के बीच होने का अनुमान है। हालांकि वास्तविक मामले इनसे 1.5 से तीन गुना अधिक हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि देश में सूचित किए गए कैंसर के सभी मामलों के मरीजों का इलाज करना है तो देश को 10,000-15,000 अतिरिक्त डे-केयर बेड और कम से कम 25,000 सर्जिकल बिस्तरों की जरूरत होगी। अभी देश में 1,000 लोगों पर 1.3 बिस्तर हैं। हालांकि अमेरिका में प्रति 1,000 पर 2.9 बिस्तर, चीन में प्रति 1,000 पर 4.3 बिस्तर और जापान में प्रति 1,000 पर 13 बिस्तर हैं। ऐसे में अस्पतालों पर बिस्तर का दबाव और बढ़ जाता है।

बताया जाता है कि विशेषज्ञता वाले स्वास्थ्य देखभाल में निजी सेक्टर की करीब 75 फीसदी हिस्सेदारी है। कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ने का कारण यह है कि बड़े कॉरपोरेट अस्पताल अपना विस्तार कर रहे हैं। इन अस्पतालों की बड़ी श्रृंखला है। ई ऐंड वाई के अनुमानों के अनुसार मेट्रो व टियर-1 शहरों में उद्योग का औसत पूंजी खर्च प्रति बिस्तर 50-80 लाख रुपये और टियर-2 शहरों में 30-35 लाख रुपये है। रिपोर्ट के अनुसार,’टियर-2 शहरों में मुख्यतौर पर बिस्तरों का विस्तार का आकलन करते हैं तो 35,000 से 40,000 बिस्तरों का अतिरिक्त इंतजाम करने पर 10,500 करोड़ से 14,000 करोड़ रुपये के बीच खर्च आ सकता है।’
टाटा मेमोरियल सेंटर अपने विस्तार तेजी से कर रहा है। इस परोपकारी संस्था को सरकार भी मदद मुहैया कराती है। मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सी. परमेश ने बताया कि संस्थान के पास 8-9 साल पहले मुंबई में 640 बिस्तर और खारघर (मुंबई के उपनगरीय इलाके) में 100 बिस्तर थे। उन्होंने कहा, ‘ साल 2023 के अंत तक देशभर में 3,000 बिस्तर होंगे। हमारे बिस्तरों की संख्या बीते कुछ सालों में चार गुना हो गई। पहले उपस्थिति केवल मुंबई में रही लेकिन अब हम देशभर में आठ केंद्रों पर विस्तार कर चुके हैं। देश भर में नैशनल कैंसर ग्रिड (एनसीजी) में शामिल 280 केंद्र के साथ भी टाटा कैंसर समन्वय कर रहा है।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नए वार्षिक दर्ज मामलों के आधार पर भारत को 2020 में कैंसर प्रभावित देशों की सूची में तीसरे स्थान पर रखा है। इस सूची में चीन और अमेरिका के बाद भारत का स्थान है। लिहाजा यह समय की जरूरत है कि कैंसर के इलाज की आधारभूत संरचना का विस्तार किया जाए। परमेश ने कहा कि देश में ‘एज एडजस्टिड’ कैंसर के मामले स्थिर हैं लेकिन कुल मिलाकर कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं।
भारत में दर्ज मामलों के मुताबिक पुरुषों में 50 फीसदी मामले सिर और गर्दन, ‘गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल’ (जठरांत्र) और फेफड़ों के होते हैं। महिलाओं में 50 फीसदी मामले स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और ‘गेस्ट्रोइन्टेस्टाइनल’ संबंधी होते हैं। देश में कैंसर के इलाज के लिए में निजी क्षेत्र के एक प्रमुख संस्थान हेल्थ केयर ग्लोबल एंटरप्राइजेज (एचसीजी) के पास 19 शहरों में 1,979 बिस्तर हैं। यह भी अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। एचसीजी के कार्यकारी चेयरमैन डॉ. बी. एस. अजय कुमार ने कहा कि उनके प्रमुख केंद्रों जैसे बेंगलूरु में आने वाले मरीजों की संख्या में 10 फीसदी बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
अजय कुमार ने कहा, ‘ओपीडी में तकरीबन 80 फीसदी कीमोथेरपी की जाती है। हमारी बेंगलूरु, मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद और प्रमुख शहरों में उपस्थिति है। हमारे प्रमुख केंद्रों कटक, चेन्नई, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम, ओंगोल और गुलबर्गा हैं। हम इन चुनिंदा क्षेत्रों के जरिए आसपास के लोगों को सुविधा मुहैया करवाने के लिए आधारभूत ढांचा स्थापित कर रहे हैं।’ हमारा विचार टियर-2 और टियर-3 शहरों में विस्तार करना है।
इस मामले में अपोलो अस्पताल, फोर्टिस हेल्थकेयर, मणिपाल अस्पताल भी पीछे नहीं हैं। अपोलो हॉस्पिटल्स एंटरप्राइजेज के ग्रुप ऑनकालजी ऐंड इंटरनैशनल के प्रेजीडेंट दिनेश माधवन ने कहा, ‘भारत में हर साल कैंसर के करीब 13 लाख मरीज होते हैं। ये मरीज औसतन इलाज के लिए 4,00,000 से 5,00,000 रुपये खर्च करते हैं। भारत में अन्य देशों की तुलना में इलाज पर पांचवें हिस्से से भी कम लागत आती है। भारत में इलाज की सबसे 

आधुनिकतम सुविधाएं जैसे प्रोटोन थेरपी, जीनोमिक ट्रीटमेंट, रोबोटिक्स, निदान व इलाज के लिए कृत्रिम मेधा (एआई) का इस्तेमाल हो रहा है।’ उन्होंने कहा कि भारत में इलाज के मॉडर्न ट्रेंड जैसे ‘कार टी सेल ट्रीटमेंट’ का भी उपयोग हो रहा है। अपोलो के देश में कैंसर के इलाज के 13 केंद्र हैं। अपोलो की योजना है कि आने वाले तीन सालों में इन केंद्रों का विस्तार 24 केंद्रों तक किया जाए। 
भारत में दूसरी सबसे बड़ी हॉस्पिटल चेन वाले मणिपाल अस्पतालों में हर साल कैंसर के इलाज के लिए 4,00,000 से अधिक मरीज आते हैं। मणिपाल अस्पताल के सीईओ व महाप्रबंधक दलीप जोस ने कैंसर के इलाज की क्षमताओं का निरंतर विकास करने की जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘हमारे अस्पतालों में ऑनकालजी से संबंधित सुविधाएं ही मुहैया नहीं करवाई जाती हैं बल्कि ज्यादातर अस्पतालों में कैंसर का इलाज भी उपलब्ध है। कैंसर के मरीजों को इलाज के दौरान कई थेरपी की जरूरत होती है। हमारा विश्वास है कि मल्टी स्पे​शियलिटी माहौल आमतौर पर बेहतर रहता है। इससे मरीज को इलाज के लिए व्यापक स्तर पर क्लिकल सुविधाएं मिलती हैं।’ 
फोर्टिस हेल्थकेयर में हर साल कैंसर के 7,000 ‘इन पेशेंट’ दाखिले होते हैं। यह संस्थान आधुनिकतम तकनीकों के जरिए कैंसर के इलाज के लिए आधारभूत संरचना पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह खून के कैंसर के इलाज के लिए देश में सबसे बड़े बोनमारो ट्रांसप्लांट सेंटरों में एक का संचालन कर रहा है।

फोर्टिस हेल्थकेयर के चीफ ग्रोथ ऐंड इनोवेशन ऑफिसर डॉ. ऋतु गर्ग ने कहा कि वे अपने नेटवर्क में अगले एक-दो सालों में 1,500 से 2,000 बिस्तरों को और जोड़ना चाहते हैं। ज्यादातर अस्पताल होम-केयर, रिमोट मॉनिटरिंग और मरीजों के लिए इलाज की लागत घटाने के लिए नए दौर के तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
डॉ. गर्ग ने कहा कि वे मरीज के अस्पताल दाखिल रहने के दौरान समय का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं ताकि अस्पताल से बाहर भी कई प्रक्रियाएं की जा सकें। इस मामले में परमेश ने कहा कि टाटा कैंसर फंड्स आमतौर पर कम लागत वाले किफायती नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करती है। ऐसी किसी भी शोध परियोजना के परिणामों में महत्वपूर्ण अंतर आ सकता है। परमेश ने कहा, ‘नए दौर की कई तकनीकें बेहद महंगी है। लेकिन इनसे होने वाले कुल लाभ कहीं ज्यादा हैं।’ 

First Published - November 21, 2022 | 10:07 PM IST

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