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प्रतिस्पर्द्धी बाजार की तलाश में हरित पूंजी की होड़

Last Updated- December 12, 2022 | 2:32 AM IST

थाईलैंड में सूचीबद्ध कंपनी ग्लोबल पावर सिनर्जी ने 13 जुलाई को यह ऐलान किया कि उसने अपनी अनुषंगी इकाई ग्लोबल रिन्यूएबल सिनर्जी कंपनी (जीआरएससी) के माध्यम से अवाडा एनर्जी में 41.6 फीसदी हिस्सेदारी ले ली है। दिल्ली की अवाडा एनर्जी के पास 1.4 गीगावॉट सौर बिजली की उत्पादन क्षमता है और 2.4 गीगावॉट उत्पादन क्षमता की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि जीआरएससी की हिस्सेदारी खरीद का करीब 3,374 करोड़ रुपये मूल्य का यह सौदा एबिटा (ब्याज, कर भुगतान एवं मूल्यह्रास से पहले की आय) एवं उद्यम मूल्य अनुपात की नौ गुना कीमत पर हुआ है। यह गुणज जितना कम होगा, सौदा उतना ही सस्ता होगा।
अवाडा का स्वामित्व भारतीय उद्यमी विनीत मित्तल के पास है जिन्होंने वेलस्पन समूह का हिस्सा रहते समय मध्य प्रदेश के नीमच में 151 मेगावॉट उत्पादन क्षमता वाला संयंत्र स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। वर्ष 2014 में उस संयंत्र के निर्माण पर करीब 1,100 करोड़ रुपये की लागत आई थी। वहां पैदा होने वाली बिजली 8.05 रुपये प्रति किलोवॉट घंटे की दर से बेची गई जो देश में सौर ऊर्जा की मौजूदा दर के तिगुने से भी अधिक है। वहीं फरवरी में गोल्डमैन सैक्स-समर्थित कंपनी रीन्यू पावर का आरएमडी एक्विजिशन कॉर्पोरेशन-2 (आरएमजी-2) का साथ हुआ सौदा एबिटा एवं उद्यम मूल्य अनुपात के 9.7 गुना भाव पर हुआ था। वर्ष 2021-22 के लिए रीन्यू पावर के अग्रिम एबिटा के आकलन को गणना का आधार बनाया गया था।
एक निजी इक्विटी फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम सामने न आने की शर्त पर कहते हैं, ‘उद्यम मूल्य एवं एबिटा गुणज अनुपात का 10 गुना मूल्य थोड़ा ज्यादा है। ज्यादातर सौदे 8.5 से लेकर 9 गुना के स्तर पर होते हैं। लेकिन यह इस पर भी निर्भर करता है कि एबिटा को किस तरह परिभाषित किया गया है और क्या सारी परियोजनाएं परिचालन के स्तर पर हैं या फिर कुछ निर्माणाधीन हैं? अगर सभी परियोजनाओं का परिचालन हो रहा है तो फिर 8.5 से 9 गुने का भाव वास्तविक है।’
जहां तक निर्माणाधीन परियोजनाओं का सवाल है तो 10-12 फीसदी के प्रतिफल की आंतरिक दर वाली परियोजनाओं के लिए निजी बाजार में उद्यम मूल्य-एबिटा अनुपात का 8.5 से 9 गुना होना सबसे ऊंचा स्तर है। इक्विटी फर्म के अधिकारी कहते हैं, ‘सार्वजनिक बाजार में हालात अलग हो सकते हैं। जब एक निवेशक अपना पैसा लगा रहा है तो वह पूर्ण एवं निर्माणाधीन दोनों तरह की परियोजनाओं के लिए कर रहा है।’
आरएमजी-2 का विलय होने के बाद रीन्यू पावर अमेरिका में सूचीबद्ध कंपनी बन जाएगी। इसकी कुल 1.2 अरब डॉलर की इक्विटी में से 85.5 करोड़ डॉलर की पब्लिक इक्विटी है। बाकी 34.5 करोड़ डॉलर की इक्विटी नकदी के रूप में आरएमजी के पास होगी। इस लेनदेन के बाद रीन्यू पावर का रकम इक्विटी मूल्यांकन 4.4 अरब डॉलर का होगा जबकि उसका उद्यम मूल्य 7.8 अरब डॉलर का होगा।
जब रीन्यू भारतीय बाजार में एक प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने के लिए 2018 में एक प्रस्ताव लेकर आई थी तो उसने बताया था कि उसके इक्विटी निवेशकों ने कंपनी में कुल 6,697 करोड़ रुपये लगाए हुए हैं। निवेशकों में गोल्डमैन सैक्स के अलावा जेरा, एडिआ और सीपीपीआईबी भी थे। हालांकि एचडीएफसी सिक्योरिटीज के संस्थागत शोध विश्लेषक अनुज उपाध्याय कहते हैं कि इक्विटी निवेश पर 13 फीसदी का आंतरिक प्रतिफल दे रहीं अक्षय ऊर्जा कंपनियों को आम तौर पर उद्यम मूल्य-एबिटा अनुपात का 10 गुना मूल्य मिल जाता है। वह कहते हैं, ‘कर्ज का ज्यादा बोझ नहीं रखने वाली एनटीपीसी जैसी कंपनियों के लिए यह गुणज 8 गुने का है। वहीं भारी कर्ज बोझ वाली और वर्ष 2030 तक भी एनटीपीसी की आधी उत्पादन क्षमता तक ही पहुंच पाने वाली अदाणी ग्रीन के लिए यह मूल्यांकन 33-35 गुना है।’ वैसे एनटीपीसी रीन्यूएबल कंपनी अगर सूचीबद्ध हो जाती है तो उसका प्रतिफल 8 गुने से कहीं  ज्यादा हो जाएगा।
उपाध्याय के मुताबिक, घरेलू संस्थागत निवेशकों को 15-16 फीसदी प्रतिफल की आदत पड़ी हुई है, लिहाजा 10 फीसदी प्रतिफल मिलने से उनमें खास उत्साह नहीं पैदा होगा। इसकी वजह यह है कि अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का आउटपुट स्थिर नहीं होता है और इस क्षेत्र का नियामकीय स्वरूप अभी तक विकास के चरण में है। वह कहते हैं, ‘इसके उलट दूसरे बाजारों में 7-8 फीसदी प्रतिफल पाने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों, निजी इक्विटी फर्मों एवं अन्य निवेशकों को भारत में निवेश मुफीद लग रहा है। दुनिया भर में करीब 35 लाख करोड़ डॉलर मूल्य वाली कंपनियां पर्यावरण, सामाजिक एवं कॉर्पोरेट संचालन मानकों पर काफी अच्छा कर रही हैं।’
हालांकि भारत में गैर-परंपरागत परियोजनाओं के पीछे बड़े पैमाने पर पैसे लगने से निवेशकों को प्रतिफल के मामले में अपनी अपेक्षा थोड़ी कम करने की जरूरत होगी। बाजार के बेहद प्रतिस्पद्र्धी होने और कंपनियों के निर्माण संबंधी जोखिमों से दूर रहने से निवेशक प्रतिफल की अपनी उम्मीदें कम भी कर रहे हैं। एक इक्विटी फर्म के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘प्रतिस्पद्र्धी माहौल में थोड़ी कमी होने पर प्रतिफल की अपेक्षाएं दोबारा बढ़ सकती हैं। वर्ष 2018 में बाजार बेहद प्रतिस्पद्र्धी हो गया था लेकिन इक्विटी उपलब्धता कम होने से हालात सुधर गए।’
निवेश फर्म ऐक्टिस के एनर्जी पार्टनर संजीव अग्रवाल कहते हैं कि भारत में ऊर्जा क्षेत्र में पूंजी उपलब्धता एवं प्रतिस्पद्र्धा बढऩे का कारण यह है कि एनटीपीसी जैसी दिग्गज कंपनियां भी अपने जीवाश्म ईंधन व्यवसाय से इतर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में उतर रही हैं। वह कहते हैं, ‘सभी ऊर्जा कंपनियां हरित ऊर्जा में ज्यादा निवेश करने को उत्सुक हैं। चीन को छोड़कर विकासशील एशिया में भारत ही अकेला ऐसा देश है जहां 1-2 गीगावॉट क्षमता वाले सौर ऊर्जा संयंत्र बनाए जा सकते हैं। एशिया के किसी दूसरे देश में इस तरह का ऊर्जा आवंटन नहीं दिखाई देता।’
अग्रवाल के मुताबिक, भारतीय बाजार में जोखिम एवं प्रतिफल का सही मेल देखने को मिलता है और इसी वजह से उनकी कंपनी भी यहां निवेश करना चाहती है। वह कहते हैं, ‘ऐसे दौर भी आते हैं जब बाजार बेहद प्रतिस्पद्र्धी होता है और हम जोखिम एवं प्रतिफल प्रोफाइल बेहतर होने तक इंतजार करने का फैसला करते हैं। हमारे लिए तो भारत का बाजार बेहद आकर्षक है।’

First Published - July 21, 2021 | 8:40 PM IST

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