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महामारी से कारोबार में वैश्विक-स्थानीय स्तर की बढ़ीं बाधाएं

Last Updated- December 11, 2022 | 10:34 PM IST

महामारी के पहले साल वैश्वीकरण का नकारात्मक पक्ष सामने आया क्योंकि अधिकांश देशों ने लॉकडाउन लगाना शुरू कर दिया और कंपनियों को हर तरह से लागत के अनुरूप मांग में भारी कमी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा। दूसरे वर्ष, 2021 में मांग में सुधार की शुरुआत होने के साथ ही दुनिया भर में आपूर्ति शृंखला बाधित होने को लेकर अप्रत्याशित रूप से अलग तरह का नजरिया देखने को मिला। वैश्विकमांग में अव्यवस्था की वजह से निर्यात, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कारोबार की तीन श्रेणियां प्रभावित हुई। भारतीय निर्यातकों के लिए वित्त वर्ष 2022 मिश्रित धारणाओं का वर्ष है। निर्यात में सीधे सात महीनों तक तेजी से वृद्धि होती रही और यह अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में 369.39 अरब डॉलर हो गई जो वाणिज्य मंत्रालय द्वारा निर्धारित 400 अरब डॉलर के लक्ष्य से थोड़ा दूर है।
हालांकि नवंबर में इसमें तेजी से कमी आती देखी गई और यह वित्त वर्ष में अपने निम्नतम स्तर पर चला गया। लेकिन अगर निर्यातक पहले सात महीनों के उछाल का जश्न नहीं मना रहे हैं तो इसकी वजह यह है कि उन्हें कंटेनर की कमी की वजह से संघर्ष करना पड़ रहा है। इस कारण माल के लदान में देरी हुई और माल ढुलाई की दरें मार्च 2020 से लेकर तीन से आठ गुना के बीच बढ़ गई और नतीजा यह हुआ कि मार्जिन में कमी आई।
माल ढुलाई का संकट, महामारी और दुनिया भर में आर्थिक सुधार की असमान गति के कारण बनी अव्यवस्था जैसी स्थिति का प्रत्यक्ष परिणाम है। सीधे शब्दों में कहें तो पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से सुधार हुआ क्योंकि आबादी के एक बड़े हिस्से को टीका लगा दिया गया इसके लिए अमेरिका और यूरोप के नेताओं द्वारा शुरू किए गए ‘टीका राष्ट्रवाद’ को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस सुधार की वजह से कई ऐसे सामानों की मांग में तेजी आई जो ज्यादातर विकासशील दुनिया से आते हैं और जहां आर्थिक सुधार की गति धीमी (हालांकि इसमें धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है क्योंकि देश का व्यापार घाटा बढ़ रहा है) रही है ।
दो कारकों के एक-दूसरे से संबद्ध होने की वजह से कंटेनर की कमी हुई और फिर इसके साथ ही माल ढुलाई दरों में बढ़ोतरी हुई जिसका फायदा शिपिंग कंपनियों में उठाया। पहला कारक यह रहा कि लॉकडाउन और लगातार क्वारंटीन नियमों के कारण पश्चिमी बंदरगाहों में श्रमिकों की कमी देखी गई। इससे कंटेनरों को उतारने और खाली करने में लगने वाला समय बढ़ गया जिससे इसकी वापसी में भी वक्त लगने लगा। दूसरा, आपूर्तिकर्ता देशों (जैसे भारत) में घरेलू मांग में कमी आई जिसका मतलब यह था कि वापसी यात्रा के लिए माल से कंटेनरों को भरने में अधिक समय लगा। अगर वैश्विक व्यापार में सुधार अधिक संतुलित होता तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होती कि भारत के निर्यात में भी और वृद्धि होती ।
कुछ प्रमुख पश्चिमी देशों की शिपिंग कंपनियों का सुझाव है कि यह कमी 2023 तक बरकरार रह सकती है। वहीं दूसरी तरफ कुछ भारतीय शिपिंग कंपनियों को लगता है कि यह भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ा मौका है क्योंकि भारत से बाहर यूरोप और अमेरिका के लिए माल ढुलाई दरें, चीन से बाहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी कम हैं जहां कंटेनर की कमी सबसे ज्यादा है। कोरोनावायरस के ओमीक्रोन रूप का प्रसार इन मुद्दों को तय करने में अहम भूमिका निभाएगा। माल ढुलाई पर्याप्त नहीं होने की वजह से वैश्विक व्यापार में काफी उथल-पुथल जैसी स्थिति बनी हुई है वहीं महामारी की वजह से आपूर्ति अव्यवस्थित होने से सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी से विश्व स्तर पर और भारत में वाहन कंपनियां और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। हालांकि इसमें थोड़ा सुधार दिखा क्योंकि कंपनियों में सुधार की उम्मीदें दिखने लगीं। इसमें से अधिकांश 5जी दूरसंचार क्रांति के लिए तैयार होने वाले उच्च लागत वाले सेमीकंडक्टर चिप को अपनाने के रुझान का परिणाम था जिस बदलाव को महामारी से पहले भी देखा गया था।
हालांकि, दुनिया भर में लॉकडाउन के दौरान स्मार्टफोन, लैपटॉप, वेबकैम, स्मार्ट टीवी, गेमिंग कंसोल, वॉशिंग मशीन और अन्य कम मेहनत में काम करने वाले होम इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग में तेजी देखी गई जिसके लिए कम लागत और कम तकनीक वाले चिप की जरूरत होती है। विनिर्माताओं ने इस समस्या का अंदाजा पहले ही लगा लिया था और जल्द ही आपूर्ति जुटानी शुरू कर दी थी। लेकिन टैक्सस में एक प्रमुख सेमीकंडक्टर फैक्टरी के बंद होने और जापान के एक संयंत्र में आग लगने से आपूर्ति में बाधा आई और फिर लॉजिस्टिक्स से जुड़ी समस्याओं की वजह से और भी मुश्किलें खड़ी हो गईं। दिलचस्प बात यह है कि वैश्विक स्तर की आधे से ज्यादा आपूर्ति केवल एक कंपनी, ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी से होती है।
वैश्विक कंपनियों के साथ भारत में वाहनों की बिक्री पर असर महसूस हुआ। नवंबर में कार की बिक्री 11 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई जो पहले से ही नवंबर 2020 के आंकड़ों से 19 फीसदी कम है। भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने अप्रैल की तुलना में नवंबर में 26,000 कम कारें बेचीं। दोपहिया वाहनों की बिक्री में सालाना आधार पर 34 फीसदी की तेज गिरावट देखी गई। क्रिसिल को उद्योग के लिए 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के नुकसान की आशंका है क्योंकि महंगे मॉडलों में चिप की कमी ज्यादा स्पष्ट रूप से देखी जा रही है।

First Published - December 28, 2021 | 11:53 PM IST

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