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भारत-पाक अदावत, पंजाब में रोजी-रोटी पर आफत

उद्योग लड़खड़ा रहे हैं, प्रवासी मजदूर पलायन कर रहे हैं और राजनीतिक दल राहत की मांग कर रहे हैं। अटारी, लुधियाना और जालंधर से सार्थक चौधरी की रिपोर्ट…

Last Updated- June 01, 2025 | 11:22 PM IST
india pak airspace

रणवीर उप्पल (बदला हुआ नाम) उन दिनों को याद करते हैं जब अटारी रेलवे स्टेशन यात्रियों से खचाखच भरा रहता था। 67 साल के उप्पल ने अपना पूरा जीवन इसी जगह बिताया है, जो अमृतसर के मुकाबले लाहौर से ज्यादा करीब है। इसी छोर से वह भारत के पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाने, दुश्मनी करने, उम्मीदें जिंदा होने और दिल टूटने के गवाह रहे हैं।

साल 2019 तक उप्पल भी उन कामगारों में शामिल थे, जो अटारी रेलवे स्टेशन पर अपना गुजारा करते थे। उस साल पुलवामा में आतंकी हमला होने और अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार ठप पड़ गया। उप्पल सहित करीब 5,000 कामगारों का रोजगार छिन गया।

तब से वह डटे हैं, एक किलोमीटर दूर इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) के रास्ते सीमा पार कारोबार करते हैं और रोजी-रोटी चलाते हैं। मगर अब इन दोनों परमाणु संपन्न पड़ोसी देशों के बीच शुरू हुई नई अदावत से यह जीवनरेखा भी धूमिल हो रही है।

अब जंग लग चुके जो गेट कभी पाकिस्तान जाने वाली ट्रेनों के लिए खुलते थे, उनके पास खड़े उप्पल कहते हैं, ‘अपनी जिंदगी में मैंने अटारी में बहुत कुछ देखा है। मगर इस बार जब लोग यहां से गए तो उनके चेहरों पर पसरी मायूसी कुछ और ही बयां कर रही थी।’ उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग सीमा पर काम करने वाले प्रवासी थे जो अब लौट गए हैं। उनके लिए यह ताबूत में आखिरी कील लग रही है।

पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने पंजाब की पहले से ही खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को और भी चरमरा दिया है, जिसका खमियाजा औपचारिक ही नहीं अनौपचारिक कामगार भी भुगत रहे हैं। राज्य के प्रमुख औद्योगिक नगर और ऊनी वस्त्रों के केंद्र लुधियाना को भारी झटका लगा है।

शिंगोरा टेक्सटाइल्स के प्रबंध निदेशक अमित जैन ने कहा, ‘शहर की होजरी का बड़ा बाजार कश्मीर में है। मगर पहलगाम झटके के बाद कश्मीर के लिए माल जाना रुक गया है।’ स्थानीय व्यापारी बता रहे हैं कि कुछ उत्पाद केवल कश्मीर के लिए बनाए जाते हैं और उन्हें दूसरी जगहों पर नहीं बेचा जा सकता। जैन के मुताबिक इससे संकट और गहरा गया है।

राज्य से लोगों के पलायन ने चुनौती और बढ़ा दी हैं। जैन कहते हैं, ‘सीमा पर टकराव से बाजार में सुस्ती आ गई है और माल की बिक्री भी कम हो गई है। फसल काटने के लिए अपने घर गए मजदूर नहीं लौटे। भुगतान अटक गया। उद्योग अब पटरी पर लौट रहा है मगर हमें 15-20 फीसदी चोट लगी है।’

देश में खेल के सामान का सबसे बड़ा ठिकाना कहलाने वाले जालंधर में भी झटके लगे। यहां खेल उपकरण बनाने वालों की जड़ें पाकिस्तान के सियालकोट में हैं। बंटवारे के बाद सियालकोट से कई परिवार जालंधर और मेरठ चले आए, जहां कच्चा माल आसानी से मिल जाता था।

खेल के सामान की कंपनी सावी इंटरनैशनल के निदेशक मुकुल वर्मा ने कहा, ‘मजदूरों के पलायन का असर हम पर भी पड़ा है। यह दिक्कत सियालकोट में भी आई थी मगर वहां जल्द ही काम दोबारा शुरू हो गया। निवेशकों का भरोसा सबसे बड़ी चिंता थी। विदेशी खरीदार आश्वासन चाहते थे कि जहां उत्पादन हो रहा है, वे इलाके एकदम सुरक्षित रहेंगे। वे आपूर्ति में रुकावट नहीं चाहते। भरोसा डगमगा गया है।’

वर्मा के हिसाब से जालंधर में ज्यादा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, ‘सियालकोट में हमसे बड़े कारखाने हैं। दुनिया भर के खरीदार पहले ही हमारे मुकाबले उन्हें ज्यादा तवज्जो देते हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा फुटबॉल यहीं से निर्यात होती हैं। इस टकराव की शायद हम पर ज्यादा तगड़ी चोट पड़ी है।’

यह आर्थिक तकलीफ अब पंजाब के सियासी गलियारों में भी गूंजने लगी है। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने पिछले दिनों केंद्र से विशेष आर्थिक पैकेज जारी करने की मांग की। जालंधर में उन्होंने कहा, ‘पंजाब पहले ही काफी कुछ झेल चुका है और इस संघर्ष से आर्थिक गतिविधियों को बड़ा झटका लगा है। पंजाब को या कम से कम सरहद के इलाकों को आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए क्योंकि उन पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है।’

पंजाब कांग्रेस के मुखिया अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने भी बाजवा की मांग दोहराई और सभी दलों से राज्य की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए विशेष पैकेज पर सहमत होने का अनुरोध किया। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष विशेष पैकेज की मांग रखने को कहा है।

उधर अटारी में उप्पल को नहीं पता कि आगे क्या होगा मगर वह अमन की दुआ मांग रहे हैं। अपने गांव-घर लौट चुके प्रवासी श्रमिकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘वे भले ही अलग-अलग जगहों से आए हों, लेकिन वे यहां काफी समय से रह रहे हैं। वे हमारे भाई-बहन हैं। जो लोग दूर से बैठे जंग का समर्थन करते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि इसकी मार झेलने वालों पर क्या असर पड़ता है।’

First Published - June 1, 2025 | 11:22 PM IST

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