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केवल एयर इंडिया के लिए नहीं मंत्रालय

Last Updated- December 11, 2022 | 9:32 PM IST

बीएस बातचीत

ज्योतिरादित्य सिंधिया का नागर विमानन मंत्री बनना एक तरह से घर वापसी है। 30 साल पहले उनके पिता माधवराव सिंधिया पीवी नरसिंह राव सरकार में इसी पद पर रहे थे। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों को परिचालन की कानूनी मंजूरी के लिए 1953 का एयर कॉरपोरेशन एक्ट रद्द कर जो सफर शुरू किया था, वह एयर इंडिया के निजीकरण के साथ पूरा हो गया। ज्योतिरादित्य की अरिंदम मजूमदार के साथ बातचीत के अंश :
एयर इंडिया के निजीकरण का नागर विमानन क्षेत्र पर क्या असर होगा?
एयर इंडिया को पिछले 14 साल में 80,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। अगर इक्विटी, कर्ज और गारंटी को भी शामिल करते हैं तो यह विमानन कंपनी चलाने पर करदाताओं के करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च हो गए हैं। अगर हम भारत की जरूरतें देखें तो यह रकम अन्य क्षेत्रों में कई गुना असर के लिए ज्यादा कुशलता से इस्तेमाल की जा सकती है। इसलिए प्रधानमंत्री ने यह अहम फैसला लिया कि हम सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाने वाली विमानन कंपनी नहीं चलाएंगे। इसी समर्पण और संकल्प की बदौलत यह फैसला हो पाया है।
ईमानदार करदाता के लिए यह इस लिहाज से अच्छा है कि उनका पैसा रोजाना 20 करोड़ रुपये का घाटा झेल रही विमानन कंपनी का घाटा पाटने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
मुझे लगता है कि टाटा समूह मानव संसाधन और विपणन क्षमता, वित्तीय ताकत जैसी इसकी रणनीति विकसित करने के लिए भरपूर कोशिश करेगा, इसलिए यह ग्राहकों के लिए उत्पाद और नए सेवा मानकों के लिहाज से बेहतर रहेगा। हम पहले ही समयबद्ध प्रदर्शन, उड़ानों में सुविधा और सेवा क्षमताओं में बदलाव देख रहे हैं। इस सौदे से क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा उभरेगी। इस क्षेत्र में दूसरी बड़ी कंपनी बनेगी।
यह ऐसी विमानन कंपनी है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मौजूदगी है। इसके पास 141 विमान और करीब 4,000 घरेलू और 2,700 अंतरराष्ट्रीय स्लॉट हैं। इसलिए यह न केवल टाटा बल्कि भारत को भी अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन क्षेत्र में अपनी छाप छोडऩे का मौका मुहैया करा रही है। यह सभी संबंधित पक्षों के लिए फायदेमंद सौदा है और मेरा मानना है कि इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा में सुधार आएगा।

एयर इंडिया के विनिवेेश के बाद नागर विमानन मंत्रालय क्या भूमिका निभाएगा?
पहले यह समझिए कि नागर विमानन मंत्रालय केवल एयर इंडिया को चलाने के लिए नहीं है। यह पूरे नागर विमानन तंत्र से संबंधित है, जिसकी विमानन कंपनियां महज एक हिस्सा हैं। यह मंंत्रालय विमानन कंपनियों के लिए व्यावहारिक नियामकीय माहौल तैयार करने और हवाई अड्डे, फ्लाइंग स्कूल, कार्गो, ग्राउंड हैंडलिंग, एमआरओ जैसी अन्य व्यवस्थाएं विकसित करने के लिए है। यह हवाई यातायात को कम जानी-पहचानी जगहों तक पहुंचाने के लिए है। उदाहरण के लिए उड़ान योजना से झारसुगुड़ा, रूपसी और दरभंगा जैसी जगह भी हवाई यातायात से जुड़ गई हैं। यह मंत्रालय विमान विनिर्माण और नागर एवं रक्षा के संगम को संभालने के लिए है। नागर विमानन क्षेत्र में ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की दरकार है।

इस तंत्र का एक अहम हिस्सा सुरक्षा नियामक डीजीसीए है, जो विकसित विमानन बाजारों से इतर मंत्रालय का ही हिस्सा है। आपने डीजीसीए की स्वायत्तता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए हैं?
डीजीसीए हो या बीसीएएस (नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो), दोनों ही नियामक सुरक्षित विमानन माहौल सुनिश्चित करने में अहम हैं। नागर विमानन मंत्रालय का काम नियामकों के कामकाज में दखल देना नहीं है। आपको बता दूं कि मेरी निगरानी में डीजीसीए और बीसीएएस ने पूर्ण स्वतंत्रता से काम किया है। वास्तविकता तो यह है कि मैं तंत्र के कुशल परिचालन के लिए डीजीसीए और बीसीएएस पर निर्भर हूं।

नागर विमानन बुनियादी ढांचे के एक बड़े हिस्से को निजी कंपनियां संभाल रही हैं, ऐसे में आपका निजी क्षेत्र के साथ तालमेल कैसा रहा है?
मैंने विमानन कंपनियों, हवाई अड्डों, ग्राउंड हैंडलिंग, कार्गो, उड़ान प्रशिक्षण संस्थान, एमआरओ, विमान विनिर्माण और परामर्शदाताओं एवं शिक्षाविदों के लिए अलग-अलग परामर्शदाता समूह बनाए हैं। मैं आज की तारीख तक परामर्शदाता समूहों के साथ 26 बैठकें कर चुका हूं। इनमें न केवल हमने सुझाव लिए हैं बल्कि इन समूहों से कार्रवाई की रिपोर्ट के साथ भी संपर्क किया है। कई मौकों पर परामर्शदाता समूह और मैंने वित्त या विदेेश मामलों जैसे किसी तीसरे मंत्रालय के प्रतिनिधित्व के लिए भी मिलकर काम किया है।

एटीएफ पर कर में कटौती की मांग विमानन कंपनियां लंबे समय से कर रही हैं। एटीएफ पर वैट घटाने के आपके आह्वान पर बहुत से राज्यों ने काम किया है। इसका क्या असर पड़ा है?
हमें इसमें बहुत बड़ी सफलता मिली है। एटीएफ का विमानन कंपनियों की लागत में 39 फीसदी हिस्सा है, इसलिए उनकी 40 फीसदी आमदनी सीधे ईंधन पर खर्च हो जाती है। इसलिए विमानन कंपनियों के पास अन्य खर्च उठाने के लिए केवल 60 फीसदी राजस्व बचता है, जो कारोबार के लिए एक बाधा है। जब मैंने जुलाई में पदभार ग्रहण किया था, उससे पहले 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेेशों में करीब 12 राज्यों में एटीएफ पर वैट 5 फीसदी था, जबकि 24 राज्यों में 15 से 30 फीसदी था। चार महीने की कोशिश के बाद 11 राज्यों ने अपनी वैट की दर 25 से 28 फीसदी से घटाकर 1 से 4 फीसदी कर दी है। इसका दशकों से इंतजार था। अहम हवाई अड्डों वाले बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश ने एटीएफ पर वैट की दर 21 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी, गुजरात ने 30 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी और कर्नाटक ने 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी कर दी है।

First Published - January 30, 2022 | 11:17 PM IST

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