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एमएफ के संस्थागत ढांचे पर पुनर्विचार की दरकार

Last Updated- December 11, 2022 | 11:41 PM IST

सेबी की म्युचुअल फंड सलाहकार समिति की चेयरपर्सन उषा थोरात ने कहा कि म्युचुअल फंड (एमएफ) संगठनों के ढांचे पर दोबारा विचार करने की जरूरत है और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) को ज्यादा जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।
थोरात आरबीआई की डिप्टी गवर्नर रह चुकी हैं। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई म्युचुअल फंड समिट में अपने संबोधन में कहा कि प्रायोजकों, न्यासियों और एएमसी की भूमिका और जिम्मेदारियों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।
थोरात ने कहा, ‘ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिम्मेदारी किन्हीं दो के बीच हो। असल में व्यक्ति को यह सवाल पूछना चाहिए कि किस चीज के लिए कौन जिम्मेदार है। इसमें एएमसी साफ तौर पर सबसे बड़ी हैं। ऐसी कोई वजह नहीं है कि एएमसी को निवेशक संरक्षण और निवेशक हित की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। इस समय यह न्यासी की जिम्मेदारी है।’
मौजूदा ढांचे में म्युचुअल फंड के तीन मुख्य स्तंभ- प्रायोजक, न्यासी और एएमसी हैं। प्रायोजक एक प्रवर्तक की तरह है, जो म्युचुअल फंड स्थापित करने के लिए पूंजी लाता है।
एएमसी यूनिटधारकों के पैसे का प्रबंधन करती है और सभी निवेश फैसलों के लिए जिम्मेदार है। न्यासी एएमसी पर निगरानी रखते हैं और यूनिटधारकों के पथप्रदर्शक होते हैं। न्यासियों में स्वतंत्र निदेशक शामिल होते हैं।
थोरात ने कहा, ‘मेरा मानना है कि एएमसी और न्यासी की भूमिका और जिम्मेदारियों को समझने की जरूरत है। न्यासी निवेेशकों के हितों का ध्यान रखता है और एक तरह से निवेशक हित के लिए जिम्मेदार है। ऐसा एएमसी नहीं कर सकती, इसकी कोई वजह नहीं है।’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एएमसी ज्यों ज्यों परिपक्व होती है, वह यूनिटधारकों के हितों की रक्षा के लिए ज्यादा कुछ कर सकती है।
हाल के वर्षों में म्युचुअल फंड न्यासी की भूमिकाएं एवं कार्य जांच के घेरे में आए हैं। बाजार नियामक सेबी पहले ही उनसे सक्रियता बरतने का आग्रह कर रहा है। हालांकि उनके सीमित अधिकारों को मद्देनजर रखते हुए एएमसी पर उनके नियंत्रण को लेकर सवालिया निशान लगता रहा है।
थोरात ने कहा कि एमएफ उद्योग में ‘नियमनों में अहम बदलाव’ हुए हैं, जिनसे हरेक को फायदा मिला है। उन्होंने कहा, ‘काफी चीजें हुई हैं, जिनसे उद्योग बदल गया है। पहले उद्योग अग्रिम कमीशन और वितरण केंद्रित था मगर अब निवेशक हितों पर केंद्रित हो गया है।’ उन्होंने कहा कि यूलिप और म्युचुअल फंड योजनाओं में समानता को देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सेबी ने प्रॉडक्ट लेबलिंग, रिस्क-ओ-मीटर, प्रदर्शन की गणना एवं बताने के तरीके आदि को लेकर कई कदम उठाए हैं, जिनसे निवेशकों को जोखिम बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली है। लागत में कमी, खर्च अनुपात की सीमा और प्रत्यक्ष योजनाओं की शुरुआत जैसी पहलों से निवेशकों को फायदा हुआ है।
हालांकि थोरात ने कहा कि इन पहलों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और कदम उठाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘क्या वास्तव में निवेशक इन चीजों के बारे में सजग है? इन चीजों के बारे में निवेेशकों को बताने के लिए एम्फी को और कदम उठाने की जरूरत है।’
थोरात ने कहा कि पैसिव निवेश के मामले में लागत और घटाने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा, ‘हम वैश्विक मानकों की तुलना में ऊंचे या सबसे बेहतर स्तर पर नहीं हैं। लागत को घटाने की मुहिम चल रही है।’
उन्होंने अनुमान जताया कि कुल एयूएम में पैसिव योजनाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी। थोरात ने उद्योग से आग्रह किया कि वह डेटा निजता और साइबर सुरक्षा को लेकर ज्यादा सतर्क रहे। उन्होंने कहा, ‘म्युचुअल फंडों के पास काफी डेटा है। यह बढ़ते डिजिटलीकरण के समय अत्यधिक अहम है।’

First Published - November 9, 2021 | 11:12 PM IST

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