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One year of Russia Ukraine war: भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

युद्ध का प्रत्यक्ष असर भारत पर ज्यादा नहीं पड़ा क्योंकि भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र को छोड़कर ज्यादा व्यापार नहीं होता

Last Updated- February 23, 2023 | 10:36 PM IST
Human rights situation in Russia 'extremely' bad since Ukraine war
PTI

वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर 8-8.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। हालांकि, पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार वृद्धि दर घटकर 7 प्रतिशत रह गई क्योंकि संसद में आर्थिक समीक्षा के पेश होने के 24 दिन बाद शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का अनुमान नहीं लगाया जा सका था।

केवल आर्थिक समीक्षा ही इस संबंध में एकमात्र अपवाद नहीं थी। पूर्वानुमान लगाने वाली कई संस्थाएं, चाहे वह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) हो, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) या विश्व बैंक (World Bank) हो, उनके अनुमान गलत हो गए क्योंकि 24 फरवरी से पहले कोई भी कल्पना नहीं कर सकता था कि रूस वास्तव में यूक्रेन पर आक्रमण करेगा।

हालांकि युद्ध का सीधा असर ज्यादा नहीं पड़ा क्योंकि भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र को छोड़कर ज्यादा व्यापार नहीं होता। इस बीच, युद्ध के बाद रूस और भारत के बीच व्यापार में वृद्धि हुई क्योंकि भारत ने रूस से कच्चे तेल सहित कुछ अन्य वस्तुएं तेजी से मंगाईं। हालांकि इसी तरह, यूक्रेन के साथ व्यापार इतना अच्छा नहीं था।

दूसरी तरफ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी या गंभीर मंदी की स्थिति के रूप में युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव देखा गया और युद्ध के शुरुआती चरण में जिंसों की कीमतों में वृद्धि ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला। हम इन प्रभावों का विभिन्न बिंदुओं के आधार पर विस्तार से विश्लेषण कर रहे हैः

महंगाई

कुछ महीनों को छोड़कर खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति पूरे वर्ष 2022-23 के लिए RBI की छह प्रतिशत की अधिकतम ऊपरी सीमा के स्तर से ऊपर रही। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से जिंसों की कीमतों में वृद्धि ने पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन को छोड़कर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति दर को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं किया। अधिकांश वस्तुओं के लिए पहला प्रभाव थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित मुद्रास्फीति दर पर पड़ा और इसके बाद इसका असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर पड़ा।

यहां तक कि भारतीय कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें जुलाई तक 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बनी हुई थीं और तब से इसमें गिरावट आई है। अक्टूबर के बाद से इसकी कीमत औसतन 90 अरब डॉलर से नीचे आ गई है क्योंकि मंदी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अब इसकी बहुत अधिक मांग नहीं है।

यही बात अन्य जिंसों पर भी लागू होती है। हालांकि, शुरुआती महीनों में वैश्विक कीमतें, विशेष रूप से यूक्रेन और रूस द्वारा आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं जैसे गेहूं, सूरजमुखी तेल और उर्वरकों कीमतों ने आसमान छू लिया, जिससे भारत को राजकोषीय और मौद्रिक उपाय करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इन उपायों में नीतिगत दरों में वृद्धि, पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर को कम करना, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध, आटा, सूजी और मैदा निर्यात पर प्रतिबंध, विभिन्न प्रकार के चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क, मसूर पर आयात शुल्क कम करना, मुक्त श्रेणी के तहत उड़द और अरहर के आयात को एक वर्ष के लिए बढ़ाकर मार्च 2023 तक करना शामिल है।

इसके अलावा कच्चे पाम तेल, कच्चे, सोयाबीन और सूरजमुखी को मूल सीमा शुल्क से छूट, रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क में कटौती जैसे कदम भी उठाए गए।

सरकार को उर्वरक सब्सिडी में संशोधन भी करना पड़ा क्योंकि युद्ध ने वैश्विक स्तर पर कीमतों में वृद्धि की। सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए सब्सिडी की इस श्रेणी को दोगुना कर 2.25 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर लाना था जो बजट अनुमान में 1.05 लाख करोड़ रुपये था। हालांकि, वैश्विक बाजारों में हाल के दिनों में जिंसों की कीमतों में गिरावट आई है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर के 5.72 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी में 6.52 प्रतिशत हो गई, जिसका संबंध घरेलू कारकों जैसे बाजारों में गेहूं के आने की दर और दूध के लिए चारे की कमी आदि से था।

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘मेरे विचार से हम यूक्रेन युद्ध को भारत में अधिक महंगाई दर से नहीं जोड़ सकते क्योंकि सभी वैश्विक कीमतें अब युद्ध से पहले के स्तर पर आ गई हैं।’

भुगतान संतुलन

युद्ध के कारण, कई मोर्चों पर स्थिति बिगड़ गई। कम मांग के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मांग में कमी आई और जिंसों की कीमतें बढ़ने से आयात में वृद्धि के कारण प्रारंभिक व्यापार घाटा अधिक था। हालांकि फरवरी से जून 2022 में वस्तुओं का निर्यात 20-30 प्रतिशत तक बढ़ा।

इसके बाद वस्तु निर्यात वृद्धि धीमी हो गई और अक्टूबर, दिसंबर और जनवरी के महीनों में निर्यात में भी कमी आई। हालांकि, अब जिंसों की कीमतों में गिरावट आई है, जिससे आयात वृद्धि कम हो गई है। इसके परिणामस्वरूप जनवरी में व्यापार घाटा एक साल के निचले स्तर 17.75 अरब डॉलर के स्तर पर रहा।

चालू खाते का घाटा अप्रैल-जून 2022-23 में बढ़कर जीडीपी का 2.8 प्रतिशत हो गया, जो जनवरी-मार्च, 2021-22 में 1.5 प्रतिशत था। चालू खाते का घाटा काफी अधिक होता क्योंकि इस अवधि में व्यापार घाटा 54.5 अरब डॉलर से बढ़कर 68.6 अरब डॉलर हो गया लेकिन अतिरिक्त सेवाओं और रकम भेजे जाने की दर ने इसका प्रभाव कम हो गया।

उच्च स्तर की महंगाई दर को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के कदमों के कारण भी डॉलर के मुकाबले रुपये पर दबाव था। जनवरी, 2022 में डॉलर के मुकाबले रुपया 74.45 पर था, जो युद्ध शुरू होने के बाद मार्च में बढ़कर 76.21 हो गया और सितंबर महीने में 80 रुपये के स्तर को पार करने के बाद 2023 के जनवरी और फरवरी महीने में 80 रुपये से अधिक रहा।

इसकी वजह से पोर्टफोलियो निवेश में कमी आनी शुरू हुई। ऊपर बताए गए कारणों से 14.6 अरब डॉलर के शुद्ध विदेशी पोर्टफोलियो की पूंजी निकासी होने के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार में 4.6 अरब डॉलर की शुद्ध बढ़ोतरी हुई क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 13.6 अरब डॉलर के स्तर के साथ मजबूत बना रहा और प्रवासी जमा और बाहरी वाणिज्यिक उधार से भी पूंजी मिली।

हालांकि, वर्ष 2022-23 में जुलाई-सितंबर में स्थिति बदल गई क्योंकि व्यापार घाटा 83.5 अरब डॉलर तक बढ़ा हुआ था। चालू खाते का घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.4 प्रतिशत हो गया। पूंजी निकासी का दायरा बढ़ने के साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार में 30.4 अरब डॉलर की कमी आई। जैसा कि बताया जा चुका है कि व्यापार घाटे में कमी आ रही है, ऐसे में सेवा निर्यात में तेजी के साथ चालू खाता घाटा ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है खासतौर पर वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में।

रुपये में व्यापार

यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद रूस के खिलाफ अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए और पुतिन शासन में विशिष्ट संस्थाओं के साथ व्यापार करना मुश्किल हो गया। इस प्रकार रूस के साथ व्यापार जारी रखने और भारत की मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में मदद करने के लिए, आरबीआई ने रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार लेनदेन को निपटाने के लिए एक प्रणाली तैयार करने की बात की थी।

इस प्रकार आरबीआई ने भारतीय बैंकों में विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते खोलने को मंजूरी दे दी। वोस्ट्रो रुपया खाता वास्तव में भारत में रुपये में एक भारतीय बैंक के साथ खुला एक विदेशी बैंक का खाता है। अब तक 20 बैंकों ने विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी है।

रूस के कई बैंकों ने भारत में एचडीएफसी बैंक, यूको बैंक, ऐक्सिस बैंक, इंडसइंड बैंक और येस बैंक जैसे अधिकृत डीलर (एडी) बैंकों से इस तरह के खाते खोलने के लिए संपर्क किया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले ही विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते खोलने की मंजूरी दे दी है और इन खातों में अधिशेष पूंजी को भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति दी है।

हालांकि रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के निपटान की प्रणाली की शुरुआत छोटे पैमाने पर हुई है। रूस के अलावा, विदेशी मुद्रा की समस्या और डॉलर तथा यूरो जुटाने में मुश्किलों का सामना कर रहे कुछ अफ्रीकी देश, रुपये की व्यापार प्रणाली में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

बांग्लादेश, श्रीलंका और मॉरिशस भी रुपये वाले वोस्ट्रो खाते में दिलचस्पी ले रहे हैं। ये खाते इजरायल और जर्मनी जैसे कुछ विकसित देशों ने भी खोले हैं। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि कुछ और देश भी इस प्रणाली को अपना सकते हैं।

आर्थिक वृद्धि

फरवरी में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद विभिन्न संस्थाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अपने वृद्धि अनुमान को संशोधित करना पड़ा और इसके साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़े अनुमानों में भी संशोधन की गुंजाइश बन गई।

हालांकि यह उस समय बढ़ती महंगाई का भी नतीजा था जिसने दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने पर मजबूर कर दिया था। उदाहरण के तौर पर आईएमएफ ने 2022 में वैश्विक वृद्धि दर के बढ़कर 4.4 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया था, जो युद्ध शुरू होने से पहले जनवरी 2022 में अनुमानित तौर पर 5.9 प्रतिशत था।

हालांकि, अद्यतन वैश्विक आर्थिक अनुमान में 2022 में वृद्धि दर के महज 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। भले ही विकसित देशों में मंदी की आशंका कम हो गई है, फिर भी ताजा भविष्यवाणी युद्ध से पहले किए गए पूर्वानुमान से एक प्रतिशत अंक कम थी। मंदी की आशंका की वजह से आईएमएफ को अक्टूबर की तुलना में अपने अनुमानों को 0.2 प्रतिशत अंक बढ़ाने के लिए प्रेरित किया था।

इसी तरह आईएमएफ का मानना था कि भारत की वृद्धि दर वर्ष 2022-23 में 9 प्रतिशत रहेगी। लेकिन अब इसके 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। आईएमएफ के अनुमान अब अग्रिम अनुमानों द्वारा गणना किए गए सात प्रतिशत से भी कम हैं।

पीडब्ल्यूसी में आर्थिक सलाहकार सेवाओं के पार्टनर रानेन बनर्जी ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर यूक्रेन संघर्ष, उच्च मुद्रास्फीति, मौद्रिक सख्ती, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव समेत कई तरह की अनिश्चितताएं देखी गई हैं। इस तरह की अनिश्चित स्थिति में जीडीपी का अनुमान लगाना किसी भी एजेंसी के लिए एक चुनौती है।

हालांकि, तथ्य यह है कि युद्ध के साथ-साथ अन्य कारकों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी कर दी है और इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था में भी कम निजी निवेश, ग्रामीण संकट जैसे अन्य कारकों की वजह से चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि, पहले की अपेक्षा कम हो रही है।

आर्थिक वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि रूस-यूक्रेन संघर्ष कितनी तेजी से कम होता है, जिंसों की कीमतों में कैसा रुझान दिखता है और दुनिया भर में सामान्य महंगाई की स्थिति कैसी है। आर्थिक समीक्षा में माना गया है कि सामान्य परिस्थितियों में आने वाले साल में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी। हालांकि, वैश्विक जोखिमों को देखते हुए वृद्धि 6-6.8 प्रतिशत रह सकती है।

First Published - February 23, 2023 | 10:30 PM IST

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