facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

शैक्षणिक संस्थानों के मुनाफे पर शिकंजा कसने की तैयारी

Last Updated- December 11, 2022 | 1:02 PM IST

शैक्षणिक संस्थान उच्चतम न्यायालय के हाल के उस फैसले से आशंकित हैं, जो आयकर छूट को उस स्थिति में खत्म सकता है अगर ये शैक्षणिक संस्थाएं मुनाफा कमा रही हैं और इसी मकसद से संचालित भी की जा रही हैं। ऐसे कई संस्थानों का मानना है कि इस फैसले से इस क्षेत्र को नुकसान होगा और देश में शैक्षणिक संस्थानों के भविष्य पर भी असर पड़ेगा।
 भारत में अधिकांश शैक्षणिक संस्थान धर्मार्थ या परोपकारी संगठन (चैरिटेबल ट्रस्ट) के रूप में गठित किए जाते हैं, भले ही कॉरपोरेट प्रक्रिया का विकल्प मौजूद क्यों न हो। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट स्कूल्स (एआईएमएस) के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत शैक्षणिक संस्थान चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत आते हैं और अन्य 40 प्रतिशत सोसाइटी अधिनियम के तहत मौजूद हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 19 अक्टूबर को कहा था कि अगर शैक्षणिक संस्थान मुनाफा कमा रहे हैं और इसी तरह के मकसद से ये संस्थान चलाए जा रहे हैं तब आयकर अधिनियम की धारा 10 (23 सी) के तहत मिलने वाले लाभ ऐसे संस्थानों को नहीं दिए जाएंगे।
इस धारा में प्रावधान है कि किसी भी विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्थान की अर्जित आमदनी जो केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है न कि मुनाफा कमाने के लिए उसे कर से छूट मिल सकती है। उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के पीठ ने कहा, ‘यह माना जाता है कि धर्मार्थ संस्थान, सोसाइटी या ट्रस्ट को शिक्षा या शैक्षणिक गतिविधियों में ‘पूरी तरह’ जुड़े रहना चाहिए और किसी मुनाफे लाभ की किसी भी गतिविधि से नहीं जुड़ना चाहिए और इसका मतलब यह है कि संस्थान में ऐसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए जो शिक्षा से जुड़ी हुई नहीं है।
दूसरे शब्दों में समाज की सभी वस्तुओं, भरोसे आदि को शिक्षा देने या शैक्षणिक गतिविधियों के जुड़ा होना चाहिए। कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि इस फैसले का मतलब है कि संस्थानों को अपनी लागत पर या उससे थोड़ा अधिक सेवाएं देनी होंगी। ध्रुव एडवाइजर के संस्थापक और मुख्य कार्या​धिकारी (सीईओ) दिनेश कनबर ने कहा, ‘शैक्षणिक संस्थानों को यह पता लगाना होगा कि वे अपनी दीर्घावधि लागत के लिए निधि कैसे तैयार करेंगे मसलन शोध से जुड़ी सुविधाओं वाले केंद्र या नई इमारत बनाना आदि।’   

एआईएमएस के अध्यक्ष रामास्वामी नंदगोपाल ने कहा, ‘इस तरह के फैसले से इस क्षेत्र और शिक्षण संस्थानों के भविष्य पर असर पड़ने वाला है। इस श्रेणी के तहत अधिकांश संस्थान बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। निश्चित तौर पर इससे उनकी वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी।’
कई लोग उच्चतम न्यायालय के फैसले को परोपकारिता से जुड़े संगठनों में बड़े संदर्भ में देख रहे हैं। अहमदाबाद के प्रमुख निजी विश्वविद्यालयों में से एक कर्णावती विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रितेश हाडा ने कहा, ‘कम से कम हमारे लिए यह आदेश निजी ट्रस्टों के लिए मौजूदा अधिनियमों के मेल के रूप में है जो गुजरात में एक निजी विश्वविद्यालय के रूप में हम पर भी लागू होता है। हालांकि मुझे मौजूदा मानदंडों से कोई विषयांतर नजर नहीं आता है।’

First Published - October 27, 2022 | 11:18 PM IST

संबंधित पोस्ट