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1990 के दशक के बाद, देश के पोलियो टीकाकरण अभियान में तेज गिरावट

Last Updated- December 11, 2022 | 9:46 PM IST

देश में नरेंद्र मोदी सरकार ने आखिरकार कोविड-19 से बचाव के लिए 15-18 साल के किशोरों को कोवैक्सीन टीके देने की पेशकश की है लेकिन देश में महामारी के चलते गैर-कोविड टीकाकरण अभियान की रफ्तार थम गई है। यूनिसेफ द्वारा जारी डेटा के मुताबिक 2020 में देश में टीकाकरण अभियान बुरी तरह प्रभावित हुआ क्योंकि सभी प्रमुख टीकाकरण अभियान का कवरेज काफी कम रहा। देश में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) की शुरुआत 1980 के दशक में हुई और इसके तहत नवजात शिशुओं तथा बच्चों को सात बीमारियों, डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनस, पोलियो, खसरा, बच्चों को होने वाले तपेदिक का गंभीर रूप, हेपेटाइटिस बी, हेमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप बी (एचआईबी) और डायरिया से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं।
डेटा दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में 2010 में 12-23 महीने के बच्चों को दी जाने वाली पोलियो टीके की तीसरी खुराक में पांच प्रतिशत की कमी आई और यह 1991 के बाद से खुराक में सबसे अधिक कमी है। करीब 85 प्रतिशत के कुल कवरेज के लिहाज से देश का पोलियो टीकाकरण 2014 के स्तर पर चला गया। इसी तरह डीपीटी (डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनस) के मामले में 12-23 महीने के बच्चों को दी जाने वाली पहली खुराक में 7 फीसदी की कमी आई और यह भी 1991 के बाद से सबसे अधिक गिरावट थी। आखिरी बार डीपीटी टीके में कमी (एक प्रतिशत की) 2006 में दर्ज की गई थी। पिछले साल की तुलना में तपेदिक (टीबी) के टीके भी 7 प्रतिशत कम ही लगे। आखिरी दफा 2007 में यह टीका कम लगा था। पिछले साल की तुलना में बच्चों में केवल रोटावायरस टीके और नए न्यूमोकोकल टीके के कवरेज में तेजी देखी गई। करीब 12-23 महीने के बच्चों के लिए रोटावायरस टीके के टीके के कवरेज में 29 प्रतिशत की तेजी आई और यह 53 प्रतिशत से बढ़कर 82 प्रतिशत हो गया जबकि न्यूमोकोकल टीके में बढ़ोतरी 2019 और 2020 के बीच 15 प्रतिशत से 21 प्रतिशत रही।
देश के टीकाकरण कार्यक्रम के तहतत सभी जिलों को 1989-90 तक कवर करना था। देश सभी टीकाकरण मानकों पर प्रगति कर रहा था लेकिन महामारी की वजह से इसकी रफ्तार में कमी आई। वैश्विक तुलना से यह अंदाजा मिलता है कि कुछ मामलों में देश का प्रदर्शन दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच खराब है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के बीच टीबी के टीके में गिरावट के लिहाज से भारत मेक्सिको, ब्राजील और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से पीछे था। महामारी के वर्ष के दौरान टीकाकरण कवरेज बढ़ाने के लिहाज से भी दक्षिण एशिया के देशों यहां तक कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तुलना में भी भारत का प्रदर्शन ठीक नहीं था। वर्ष 2020 में महामारी की चुनौतियों के बीच लॉकडाउन और लोगों तक पहुंचने की बाधाओं के बावजूद टीबी का टीका लगाने मेंं बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश अव्वल रहे।
हेपेटाइटिस बी टीके की बात करें तो भारत ब्राजील और इंडोनेशिया से पीछे है। दक्षिण एशिया क्षेत्र में डीपीटी टीकाकरण में भारत के बाद सबसे खराब प्रदर्शन केवल पाकिस्तान और नेपाल का ही रहा। खसरा और रूबेला टीके के लिहाज से ब्राजील और इंडोनेशिया का प्रदर्शन खराब रहा। टीकाकरण कार्यक्रम के प्रभावित होने की प्रमुख वजहों में से एक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी और ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर असर पडऩा है जिसमें सरकारी टीकाकरण अभियान भी शामिल है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में 2020 में हजारों गांवों में आयोजित होने वाले स्वास्थ्य एवं पौष्टिक आहार वाले दिन (एचएनडी) में बड़ी कमी आई। इसी वक्त देश के गांवों में सरकार द्वारा भर्ती किए गए आशाकर्मियों की संख्या में भी कमी आई। ऐसे दिन ही आशाकर्मी नवजात शिशुओं की सूची तैयार करती हैं जिन्हें टीके दिए जाने हैं या जो टीकाकरण अभियान में छूट गए हैं।

First Published - January 23, 2022 | 11:06 PM IST

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