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ग्रामीण उत्तर प्रदेश को बाकी हिस्से से जोडऩे का लक्ष्य अभी दूर

Last Updated- December 11, 2022 | 9:24 PM IST

सुशांत कुमार शर्मा दो मीटर चौड़े गंदे रास्ते पर जाने के लिए दाएं मुडऩे से पहले नए बने छह लेन के पूर्र्वांचल एक्सप्रेसवे पर जा रहे हैं। इस रास्ते से ही वह बाराबंकी जिले के अपने गांव रमीपुर तक जाएंगे जो लखनऊ से लगभग 45 किलोमीटर दूर है। शर्मा कहते हैं, ‘यह एक्सप्रेसवे मेरे घर तक की यात्रा का सबसे दर्दनाक हिस्सा रहा है। जब 2020 में मुझे कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान खाली हाथ वापस आना पड़ा था उस वक्त मुझे इस पर 30 किलोमीटर से भी अधिक चलना पड़ा ‘
वह कहते हैं, ‘लेकिन अब मैं खुश हूं क्योंकि अब कम से कम मेरा गांव राज्य की राजधानी से जुड़ा हुआ है।’ लेकिन फिर वह थोड़ी निराशा से कहते हैं, ‘नौकरी खोजने के लिए शहरों की यात्रा करने के अलावा इस राजमार्ग का मेरे लिए क्या उपयोग है? इस एक्सप्रेसवे की वजह से अभी तक इस क्षेत्र में कोई रोजगार नहीं आया है।’ महामारी से पहले दिल्ली में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने वाले शर्मा को अपने जिले में स्थायी नौकरी पाने में मुश्किल हो रही है। अब वह एक खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं और 10 घंटे की मजदूरी करके एक दिन में लगभग 100 रुपये कमाते हैं।
शर्मा अकेले नहीं हैं। 2020 में लॉकडाउन के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपने गांवों में लौटने वाले कई प्रवासी श्रमिक अपने गांवों में और उसके आसपास नौकरी पाने में विफल रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार का दावा है कि पूर्र्वांचल एक्सप्रेसवे रोजगार देने का प्रमुख जरिया रहा है और यह आगे भी रहेगा जिसका उद्घाटन पिछले साल 16 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
इसने एक्सप्रेसवे के साथ नौ जिलों में कई औद्योगिक विकास परियोजनाओं की सूची भी बनाई है। इनमें कपड़ा कारखानों, बेवरिज इकाइयों से लेकर दवा और बिजली के उपकरण के कारखानों तक शामिल हैं। सरकार बाराबंकी और अयोध्या जिलों में खाद्य, लकड़ी और दवा उद्योगों को भी लगाने की योजना बना रही है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘पूर्र्वांचल एक्सप्रेसवे से न केवल उत्तर प्रदेश को बल्कि बिहार को भी फायदा होगा। इससे दिल्ली और गोरखपुर के बीच यात्रा के समय में भी कमी आएगी।’ हालांकि आर्थिक रूप से पिछड़े इलाके बाराबंकी की जमीनी हकीकत सरकार के इस दावे से बिल्कुल अलग है कि एक्सप्रेसवे, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए रोजगार लेकर आया है।  
आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय द्वारा लोगों के प्रवास से जुड़े कार्यसमूह की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 25 प्रतिशत अंतरराज्यीय स्थानांतरण 17 जिलों से हो रहा है और इनमें से 10 जिले उत्तर प्रदेश में हैं और ज्यादातर पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं। अयोध्या जिले के गोंडवा गांव के सोमबीर सिंह कहते हैं, ‘मेरे पास दो बीघा खेत है। हम जो भी उगाते हैं वही खाते हैं। बेचने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए, मैं एक मजदूर के रूप में काम करता हूं।’ पूर्वी उत्तर प्रदेश में देश में एक हेक्टेयर से कम कृषि भूमि जोत का उच्चतम प्रतिशत (84 प्रतिशत से अधिक) है। जमीन के छोटे रकबे के अलावा सालाना स्तर पर आने वाली बाढ़ से भी किसानों की परेशानी बढ़ जाती है।
घाघरा, राप्ती, कुवानो और सरयू जैसी नदियों से बाढ़ का पानी हर साल 30,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन की फसलों को बहा ले जाता है जिसके परिणामस्वरूप सरकारी अनुमानों के अनुसार हर साल 20 करोड़ से अधिक का नुकसान होता है। कॉलेज की पढ़ाई छोड़ चुके 23 साल के समर्थ सिंह कहते हैं, ‘यहां किसी को काम नहीं मिलता है। कोई कारखाने, आवासीय सोसायटी और पत्थर खदानें नहीं हैं जहां हम काम कर सकते हैं। मुझे याद है कि प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को उत्तर प्रदेश का ‘शान’ और ‘कमाल’ कहा था और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश की ‘जीवन रेखा’ भी कहा था। लेकिन वास्तव में, यह एक्सप्रेसवे सिर्फ  एक रेखा है और यहां कोई बेहतर जीवन और गर्व का अनुभव नहीं है। हर साल बाढ़ के कारण सैकड़ों लोग मर जाते हैं और हजारों लोग अपने घरों और फसलों को गंवा देते हैं। यह गर्व की बात कैसे है?’
लेकिन यहां ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर हुआ था और इसने न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार दिया बल्कि उन लोगों को भी रोजगार दिया जो लॉकडाउन के दौरान शहरों से वापस घर लौटे थे। निर्माण कार्य से जुड़े एक मजदूर राम पाल कहते हैं, ‘मैंने इस एक्सप्रेसवे पर दो साल से अधिक समय तक काम किया है। इस सड़क की वजह से मुझे अभी तक काम की तलाश नहीं करनी पड़ी है। मुझे विश्वास है कि इसका काम पूरा होने के बाद भी मुझे काम मिलेगा क्योंकि सरकार के पास हमारे क्षेत्र में पर्याप्त परियोजनाएं चल रही हैं।’  
स्थानीय लोगों से पूछने पर कई लोग कहते हैं कि वे इस बात को लेकर खुश हैं कि राज्य में भाजपा की सरकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के बुनियादी ढांचे का विकास कर रही है लेकिन उन्हें इन योजनाओं और परियोजनाओं के पूरा होने की रफ्तार को लेकर संदेह है। एक घरेलू महिला पूनम देवी कहती हैं, ‘सरकार हमारे लिए काम कर रही है लेकिन उसे समय पर काम करना चाहिए। बहुत सारी परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं और उन पर अब भी काम होना है। उन्हें उन परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए।’

First Published - February 7, 2022 | 10:51 PM IST

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