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हरित हाइड्रोजन नीति की राह नहीं आसान

Last Updated- December 11, 2022 | 8:59 PM IST

भारत में तैयार किया जा रहा हाइड्रोजन बाजार आपूर्तिकर्ताओं की शृंखला स्थापित कर रहा है, जिसमें अधिकांश ऊर्जा कंपनियां आकर्षक योजनाएं तैयार कर रही हैं। लेकिन केंद्रीय विद्युत मंत्री आरके सिंह के लिए तेल, गैस और कोयले का एक और वैकल्पिक बाजार बनाने के लिए ईंधन की मांग पैदा करना मुश्किल काम होगा।
हाल में विद्युत मंत्रालय द्वारा घोषित हरित हाइड्रोजन नीति इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) आदि जैसी विनिर्माताओं के लिए उत्पादन स्तर का विस्तार करने के वास्ते दमदार माहौल तैयार करती है। अधिकांश ऊर्जा कंपनियों ने हाइड्रोजन उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े लक्ष्य की घोषणा की हुई है। इस नीति में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए जरूरी अक्षय विद्युत की खातिर अंतरराज्यीय शुल्क हटा दिया है। यह छूट वर्ष 2025 से पहले स्थापित और 25 वर्षों तक चलने वाली सभी परियोजनाओं पर लागू होगी। अन्य लाभों में निर्यात के वास्ते भंडारण के लिए बंदरगाहों के निकट बंकर स्थापित करने की खातिर हरित हाइड्रोजन की विनिर्माताओं के लिए भूमि भी शामिल है।
हरित हाइड्रोजन क्या है? हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस और कोयला उत्पादन की विभिन्न प्रतिक्रियाओं का उत्पाद होती है। चूंकि ये प्रक्रियाएं कार्बन डाइऑक्साइड का भी उत्सर्जन करती हैं, इसलिए इस उत्पादित हाइड्रोजन को ग्रे कहा जाता है। हरित हाइड्रोजन पानी के विद्युत अपघटन का परिणाम होती है, बशर्ते विद्युत का स्रोत अक्षय ऊर्जा हो। भारत ने मध्यवर्ती ब्लू हाइड्रोजन पर भी कुछ विचार किया है, जहां प्राकृतिक गैस भाप के साथ प्रतिक्रिया करती है, जिसका उद्देश्य कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन को हासिल करना होता है, लेकिन अब तक लागत का अर्थशास्त्र अनुकूल नहीं रहा है।
आईओसी में अनुसंधान एवं विकास निदेशक एसएसवी रामकुमार ने कहा कि नवीनतम नीति से हाइड्रोजन उत्पादन की लागत मे मौजूदा औसत 500 रुपये प्रति किलोग्राम में 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ईंधन के रूप में हाइड्रोजन को सौर या तेल और गैस जैसे विकल्पों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए इसे 100 प्रति किलोग्राम से कम पर उपलब्ध होना चाहिए।
इस वजह से लागत में कमी का अगला चरण इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार हाइड्रोजन के इस्तेमाल को बड़े स्तर पर अपनाने के लिए उद्योग और परिवहन क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए क्या कर सकती है। तभी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश प्रवाहित होगा। इसके लिए विद्युत मंत्रालय को मांग पैदा करने के लिए अन्य मंत्रालयों का समूह तैयार करना होगा, जिसमें इस्पात, नौवहन, भारी उद्योग, नागरिक उड्डयन और सबसे महत्त्वपूर्ण, सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र शामिल हैं।
ये सभी क्षेत्र हाइड्रोजन के संभावित उपयोगकर्ता हैं। सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य का अनुगमन तथा जीवाश्म ईंधन युग के अस्त होने के समय हाइड्रोजन के लिए जगह बनाने के बीच में भी कोई अंतर्निहित विरोधाभास नहीं है। सौर ऊर्जा की तुलना में हल्के वाहन चलाने के लिए हाइड्रोजन ऊर्जा-सक्षम नहीं होती है। हालांकि यह ट्रकों और जहाजों के लिए किफायती हो सकती है। और यह अक्षय ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तुलना में इस्पात, उर्वरक तथा सीमेंट उद्योगों के लिए काफी बेहतर ईंधन है। एसऐंडपी प्लैट्स की एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2030 तक उद्योग और बिजली उत्पादन के लिए हाइड्रोजन की मांग वार्षिक ईंधन खपत का क्रमश: 43.8 और 24.5 प्रतिशत हो जाएगी।
इन फायदों के बावजूद किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था में किसी भी सरकार के लिए इतने बड़े स्तर पर बदलाव के लिए जोश पैदा करना मुश्किल काम है। यह हाइड्रोजन नीति के दूसरे भाग का वह कार्य है, जिसे पूरा करने की जरूरत है।
कुछ साल पहले भारत सरकार किसी भी बाजार में मांग पैदा करने या आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिए बाजार निर्माता, आम तौर पर सरकार द्वारा संचालित इकाई, का सृजन कर सकती थी। सौर और पवन की अक्षय ऊर्जा के मामले में यह भूमिका भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा निभाई जा रही है।
बदलाव के स्तर को ध्यान में रखते हुए सरकार की योजनाएं उल्लेखनीय हैं। भारत वर्ष 2030 तक करीब 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन पैदा करने की योजना बना रहा है, जबकि फ्रॉस्ट ऐंड सुलिवन की रिपोर्ट में इस बात का पूर्वानुमान जताया गया है कि वैश्विकउत्पादन भी 57 लाख टन के समान स्तर पर रहेगा। बाजार निर्माता के लिए मांग या आपूर्ति के पक्ष के संबंध में किसी भूमिका की परिकल्पना नहीं है। फ्रॉस्ट ऐंड सुलिवन का अनुमान है कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इस दशक में वैश्विक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 57 प्रतिशत होनी चाहिए।
इसके बजाय केंद्र मांग बढ़ाने के लिए पुचकार और फटकार की नीति पर भरोसा कर रहा है। पिछले साल पहली बार सिंह के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों को उनकी अक्षय खरीद दायित्वों (आरपीओ) के संबंध में चूक के लिए चिह्नित किया था। प्रत्येक राज्य ने वर्ष 2022 तक आरपीओ के लिए मार्ग की घोषणा करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया हुआ है। ये प्रतिबद्धताएं जलवायु परिवर्तन पर भारत की घोषणाओं को प्रशस्त करती हैं।
जब राज्यों को अपने आरपीओ पर बने रहने की जरूरत होती है, तो वे उपयोगकर्ता उद्योगों को अपने ईंधन दायित्वों की खरीद हरित स्रोतों से करने के लिए प्रेरित करते हैं। सिंगापुर स्थित अक्षय ऊर्जा कंपनी 8.28 एनर्जी पीटीई लिमिटेड के प्रबंध निदेशक निकेश सिन्हा का कहना है कि  भारत की हाइड्रोजन नीति अब तक शुरुआती स्तर पर ही है। उन्होंने कहा ‘अगर किसी आरपीओ पूरा करना है, तो इस ईंधन का उपयोग करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।’
हाइड्रोजन नीति में इस दिशा में कदम उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है ‘आरपीओ का लाभ हाइड्रोजन/अमोनिया विनिर्माता और वितरण के लाइसेंसधारी को अक्षय ऊर्जा की खपत के लिए प्रोत्साहन (के रूप में) दिया जाएगा।’ (अमोनिया नाइट्रोजन के साथ हाइड्रोजन का एक रासायनिक यौगिक होता है। यह हाइड्रोजन के मुकाबले भंडारण और परिवहन के लिए सुरक्षित तथा आसान होता है, जो किसी भी कंटेनर से तेजी से वाष्पीकृत हो जाती है। यह बात इसे काफी खतरनाक बना देती है)।

First Published - March 1, 2022 | 10:57 PM IST

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