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जैसे शुरू हुआ वैसे ही खत्म हुआ आजमाइश वाला साल

Last Updated- December 11, 2022 | 10:32 PM IST

बात इस साल 26 जनवरी की है जब देश भर की जनता यह देखकर दंग रह गई कि किस तरह लोगों का एक समूह लाल किले के केंद्रीय गुंबद पर चढ़ गया और वहां एक झंडा भी लगा दिया। इन लोगों में कथित रूप से किसान शामिल थे जिन्होंने तीन कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध के बारे में बयान दिया। करीब 12 महीने तक किसानों ने सड़कों को जाम कर रखा था और कुछ जगहों पर यातायात भी अवरुद्ध किया। किसान संसद में अपने समर्थकों के जरिये संसद के भीतर होने वाली चर्चा को बार-बार बाधित करने में कामयाब भी रहे। इसके अलावा 12 सांसदों को 2021 के पूरे शीतकालीन सत्र के लिए राज्यसभा से निलंबित भी कर दिया गया।
साल 2021 खत्म होने से पहले ही सरकार ने यह स्वीकार करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया कि दिलेरी या बहादुरी का बेहतर तरीका विवेक से काम लेना भी है। किसानों ने अब विरोध स्थलों को भी खाली कर दिया है। लेकिन सांसदों, किसानों और अन्य लोगों के खिलाफ  मामले जारी रहेंगे वहीं दूसरी ओर किसानों का कहना है कि वे संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए एक समिति का गठन किया है।
हालांकि, अधिकारियों के इन दावों के बावजूद कि सरकार किसानों को संतुष्ट करने के लिए ‘मिशन मोड’ में काम करेगी लेकिन हैरानी की बात यह है कि अभी तक किसान समिति को सरकार द्वारा अधिसूचना नहीं दी गई है। इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2021 पूरी तरह कृषि राजनीति के नाम रहा और 2022 में उस राजनीति का नतीजा उत्तर प्रदेश और पंजाब में देखने को मिलेगा जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके अलावा गोवा, उत्तराखंड, और मणिपुर में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। 2021 के जिस अनुभव की छाप जनमानस के दिमाग पर पड़ी है उसे कभी भी मिटाया नहीं जा सकता है। कोविड की दूसरी लहर की भयावहता, अस्पताल के बेड और ऑक्सीजन पाने के लिए संघर्ष करते लोग, निर्वाचित प्रतिनिधियों को मदद के लिए गुहार लगाने की कोशिश का व्यर्थ होना क्योंकि इनमें से सभी ने संपर्क की सभी लाइनें बंद कर दीं थीं क्योंकि वे खुद भी इन्हीं समस्याओं से जूझ रहे थे, ऐसे में एक सवाल का जवाब सभी लोग चाहते थे कि आखिर इसके लिए ‘कौन जिम्मेदार है?’
चुनाव वाले राज्यों में कई जगहों पर जनप्रतिनिधियों को इन सवालों के जवाब देने पड़ सकते हैं क्योंकि अब महामारी की एक और लहर भी दस्तक दे रही है। जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनकी 545 लोकसभा सीट में से करीब 102 सीट कुल संसद प्रतिनिधियों का 19 फीसदी हिस्सा है। विधानसभा चुनाव के परिणामों को आम चुनाव के संदर्भ में नहीं देखा जा सकता है, हालांकि ये निश्चित रूप से सरकार के संतुष्टि का सूचकांक हैं।
सरकार ने संस्थागत मदद देने पर कोई रोक नहीं लगाई जहां भी यह विशेष रूप से कम आमदनी वाले समूहों की मदद कर सकती थी। ऐसे में निश्चित रूप से लोग नकद खर्च, मुफ्त भोजन और इलाज से जुड़ी सहायता को याद करेंगे जो उन तक पहुंची होगी। इसीलिए अगर बीता साल स्वास्थ्य संकट का साल था तो आने वाला साल सरकार के लिए साख की कसौटी पर खरा उतरने वाला होगा।
सरकार के स्तर पर प्रबंधन में बड़ा बदलाव जुलाई में मंत्रिपरिषद में भारी फेरबदल के साथ देखा गया था। इस बदलाव के दौरान कुछ शीर्ष स्तर के मंत्रियों को एक तरह से पद छोडऩे के सीधे संकेत दे दिए गए और नए तथा युवा प्रतिभाओं को इसमें शामिल किया गया। रविशंकर प्रसाद (कानून, इलेक्ट्रॉनिकी एवं संचार) और प्रकाश जावडेकर (शिक्षा एवं पर्यावरण) जैसे वरिष्ठ मंत्रियों को मंत्रिमंडल छोडऩे के लिए कहा गया। अन्य मंत्रियों का प्रभार कम किया गया। 2019 में दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री ने पहली बार मंत्रिमंडल में इस तरह का व्यापक फेरबदल किया था। पिछले साल चीन के साथ सीमा पर संघर्ष की स्थिति बन गई थी और इसका ही विस्तार आगे भी दिखा जब किसी नतीजे पर पहुंचने की स्थिति बनती नहीं दिखी। हालांकि चीन-भारत की सीमा पर एक असहज सी शांति बनी हुई है और भारत व्यापक स्तर के गतिशक्ति इन्फ्रा-डेवलपमेंट प्रोग्राम के रूप में सीमा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है जिससे आने वाले वर्ष में वृद्धि में तेजी आएगी।
अमेरिका में नए राष्ट्रपति जो बाइडन के पदभार ग्रहण करने के बाद वर्ष 2021 में भारत ने अमेरिका के साथ अपने मतभेद कम करने की कोशिश की। हालांकि मानवाधिकारों और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार होता है इस मुद्दे को लेकर चुनौतियां बनी रहीं। ऐसा नहीं है कि सरकार की आलोचना नहीं हो रही है बल्कि संसद में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के रिश्ते इन सालों के दरमियान बेहद निचले स्तर पर पहुंच गए। सत्तारूढ़ दल को छोड़कर अन्य दलों के गहरे मतभेद सामने उभर कर आ गए। कांग्रेस की पंजाब इकाई में फूट के कारण अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ दी और उनकी जगह चरणजीत चन्नी मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस में निर्णायक नेतृत्व को लेकर असंतुष्टि वाली सुगबुगाहट जोर-शोर से बढ़ी जिसके कारण पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सांगठनिक चुनाव के लिए एक कार्यक्रम की घोषणा की जिस पर 2022 के मध्य से अमल किया जाएगा।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी नजर बड़े लक्ष्य पर रखते हुए पार्टी का दायरा अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ाने का सपना देखना शुरू कर दिया है।
वर्ष 2023 की शुरुआत में राज्य चुनावों का एक महत्त्वपूर्ण दौर देखने को मिलेगा मिसाल के तौर पर गुजरात विधानसभा चुनाव में। इनके लिए तैयारी वर्ष 2022 में शुरू होगी। अगर उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में नतीजे, केंद्र की संतुष्टि के अनुरूप मिलेंगे तो इसका मतलब यह हो सकता है कि कम आमदनी वाले समूहों की आमदनी बढ़ाने और खाद्य सहायता देने सहित अन्य नीतियां काम कर रही हैं। ऐसे में सभी सरकारें इस तरह का समर्थन जारी रखने पर अधिक जोर दे सकती हैं और ऐसे में संरचनात्मक सुधार स्थगित रह सकता है।
अगले साल यह निर्धारित हो पाएगा कि वास्तव में संरचनात्मक सुधार कितना मायने रखता है। अगर कृषि कानूनों पर पीछे हटने के संकेत को ही देखा जाए तो सभी मुद्दों पर बातचीत हो सकती है जैसा कि 2002 में ही प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को श्रम सुधारों को रोकने के लिए व्यापक दबाव का सामना करना पड़ा जिसका शुरुआत में उन्होंने भी विरोध किया। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या वह विनिवेश और नौकरियों के नुकसान के भय और संदेह की पृष्ठभूमि में इन सुधारों को आगे बढ़ाएंगे तो उनका जवाब स्पष्ट था ‘नहीं’। लेकिन तब वाजपेयी जटिल गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन अब नरेंद्र मोदी के सामने ऐसी कोई मजबूरियां नहीं हैं।

First Published - December 29, 2021 | 11:28 PM IST

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