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कलपुर्जा कंपनियों का भी हो गया बंटाधार

Last Updated- December 08, 2022 | 2:48 AM IST

वाहन कंपनियों पर पड़ रही महंगाई और मंदी की मार का असर अब इस उद्योग से जुड़ील बाकी सहयोगी कंपनियों के कारोबार पर भी दिखाई देने लगा है।


ऑटोमेटिव कंपनियों के लिए कलपुर्जे बनाने वाली पुणे की कंपनी उमा प्रेसिजन के बैंक ने बिना किसी  कारण के कंपनी की कार्यशील पूंजी सीमा घटा दी है। कंपनी ने हाल ही में लगभग 23 करोड़ रुपये का निवेश कर दो नए संयंत्र लगाए थे। लेकिन अभी तक इन संयंत्रों में कोई काम नहीं शुरू हुआ है।

कंपनी की दो बड़ी ग्राहक टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने उत्पादन घटा दिया है। बजाज ऑटो ने भी उत्पादन घटा दिया है, जिससे इसकी सहायक इकाइयां भी काफी परेशान हैं।

उमा प्रेसिजन के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक राजेन्द्र कांकरिया ने कहा, ‘मुझे बताए बगैर बैंक ने मेरी ऋण लेने की सीमा कम कर दी है। मेरे पास ऋण चुकाने के लिए रकम नहीं है। इस कोढ़ में खाज का काम कर रही है बैंकों की ऋण जल्दी चुकाने की मांग। कंपनी अपनी मासिक किस्त समय पर चुका रही है। लेकिन फिर भी बैंकों को जल्द से जल्द सारा ऋण वापस चाहिए। टाटा मोटर्स और एमऐंडएम जैसे ग्राहकों की तरफ से ना तो मांग आ रही है और ना ही भुगतान।’

बिक्री में हो रही गिरावट से बचने के लिए ऑटो कंपनियों ने तो उत्पादन घटा दिया है। लेकिन इस वजह से कलपुर्जे बनाने वाली छोटी और मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए अपना अस्तित्व बचाए रखना भी मुश्किल हो गया है। इन कंपनियों के पास पूंजी की भारी किल्लत हो गई है।

उद्योग के आंकड़ो के मुताबिक कलपुर्जे बनाने वाली कम से कम 25 इकाइयां तो पुणे में ही बंद हो गई हैं। ग्राहक कंपनियों की तरफ से भुगतान में हो रही देरी के कारण ही देश भर में लगभग 50 फाउंड्री इकाइयां बंद हो जाने का अनुमान है। जबकि इसी सूची में और 100 इकाइयों के शामिल हो जाने की भी आशंका है।

ऑटो कंपोनेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (एक्मा) के कार्यकारी निदेशक विष्णु माथुर ने बताया, ‘ऑटो उद्योग के जानकारों के मुताबिक अभी तक उद्योग की विकास दर बेहद ही मामूली रही है। हम मंदी की चपेट में जाने की कगार पर हैं। छोटे और मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए यह सबसे बुरा समय है। इस वक्त कार्यशील पूंजी जुटाना मुश्किल हो गया है, क्योंकि बैंक ऋण देने में देरी कर रहे हैं।’

पिछले 5-6 साल से ऑटोमेटिव उद्योग 22 फीसदी की दर से विकास कर रहा था। लेकिन चालू वित्त वर्ष के लिए यह आंकड़ा कम होकर 6 फीसदी तक हो सकता है। एकतरफ जहां वाहन निर्माता कंपनियां अभी ऑर्डर देने से कतरा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ पहले से दिए गए ऑर्डरों का भुगतान भी नहीं किया जा रहा है।

पुणे के पास फाउंड्री इकाई का परिचालन करने वाली तेजस इंटरनेशनल के प्रबंध निदेशक अतुल श्रीखंडे  ने बताया, ‘हम अपनी उत्पादन क्षमता का कुल आधा ही उत्पादन कर रहे हैं। ग्राहक कंपनियां आमतौर पर 45 दिनों में ही भुगतान कर देती थी। लेकिन अब कंपनियां भुगतान करने में 90-100 दिनों की देरी कर रही हैं।

हमें कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले भी डिफॉल्ट से बचने के लिए नकद भुगतान की मांग कर रहे हैं। तरलता की कमी हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं क्योंकि बैंकों के साथ फिलहाल हमारे संबंध काफी अच्छे है। लेकिन देखना ये है कि यह कब तक रहता है।’

एक्मा के अध्यक्ष जे एस चोपड़ा ने वाहन निर्माता कंपनियों से कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों क ो इस बुरे हालात से निकलने में मदद करने के लिए जल्द भुगतान करने का भी आग्रह किया है।

First Published - November 10, 2008 | 10:23 PM IST

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