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वाहन कंपनियां खोलेंगी कबाड़ केंद्र

Last Updated- December 12, 2022 | 6:52 AM IST

प्रमुख वाहन विनिर्माता कंपनी मारुति सुजूकी, टाटा समूह और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) में वाहन को कबाड़ में बदलने की इकाई स्थापित करने में दिलचस्पी दिखाई है।
सड़क मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का लक्ष्य मार्च 2023 तक देश भर में 50 वाहन कबाड़ केंद्र खोलने का है। सरकार की योजना सार्वजनिक-निजी साझेदारी के जरिये इन केंद्रों को खोलने की है, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी नहीं होगी लेकिन ऐसी इकाई खोलने की इच्छुक कंपनियों को पट्टे पर जमीन मुहैया करा सकती है। इस बारे में पूछे जाने पर तीनों कंपनियों ने टिप्पणी करने से मना कर दिया।
घटनाक्रम के जानकार लोगों का कहना है कि कंपनियां संयुक्त उद्यम के लिए बात कर रही हैं और साथ ही कबाड़ इकाई खोलने के लिए आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी गठजोड़ करने की संभावना तलाश रहीं हैं।
हालांकि मारुति सुजूकी का जापान के टोयोटा समूह के साथ भारत में वाहनों को तोड़कर उनका पुनर्चक्रण करने के लिए पहले से ही संयुक्त उपक्रम है। नोएडा में इसकी इकाई भी है। इसी तरह महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की स्टील प्रसंस्करण इकाई महिंद्रा एसीलो ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एमएसटीसी के साथ संयुक्त उपक्रम बनाया है जिसकी नोएडा और चेन्नई में इकाइयां हैं। उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि टाटा समूह अपनी इकाई टाटा स्टील के जरिये वाहन कबाड़ कारोबार में उतरेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘हम राज्यों, वाहन विनिर्माताओं सहित सभी हितधारकों से बात कर रहे हैं। कई प्रमुख वाहन कंपनियों ने ऐसी इकाई लगाने में दिलचस्पी दिखाई है।’
सरकार की योजना गुजरात के अलंग में एक बड़ी इकाई लगाने की है। अलंग में जहाजों को तोडऩे का बड़ा उद्योग है। अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकारों को निविदा प्रक्रिया का हिस्सा बनाए जाएगा क्योंकि कबाड़ केंद्र के लिए आवश्यक भूखंड स्थानीय सरकारों के पास है।
अनुमान के अनुसार अगर सरकार जमीन पट्टे पर उपलब्ध कराती है तो एक कबाड़ इकाई स्थापित करने की लागत करीब 18 करोड़ रुपये आएगी। लेकिन जमीन खरीदनी पड़ी तो इसकी लागत 33 करोड़ रुपये आ सकती है।
वाहन कबाड़ इकाई स्थापित करना सरकार की वाहन कबाड़ नीति का हिस्सा है। इस नीति के जरिये सरकार सड़कों से पुराने वाहनों को हटाकर नए वाहन लाना चाहती है। इससे प्रदूषण कम होगा, साथ ही वाहन कंपनियों की बिक्री भी बढ़ेगी। पुराने वाहन को कबाड़ में देकर नए वाहन खरीदने वालों को सरकार पथ कर, वस्तु एवं सेवा कर में रियायत देगी, साथ ही विनिर्माता भी करीब 5 फीसदी की छूट देंगे।
कबाड़ केंद्र वाहनों को कबाड़ में बदलेेंगे, उसके पुर्जे अलग करेंगे और दोबारा इस्तेमाल नहीं होने वाले पुर्जों का सुरक्षित तरीके से निस्तारण करेंगे। वाहन मालिकों को वह इस बारे में एक प्रमाण पत्र भी देंगे।
उच्च गुणवत्ता  वाले इस्पात स्कै्रप का पुनर्चक्रीकरण कर इन्हें दोबारा उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात में बदला जाएगा। इनका इस्तेमाल फिर उपकरण विनिर्माण, वाहन और अन्य कंपनियों में किया जाएगा।     
एक बड़ी यात्री वाहन निर्माता कंपनी में उत्पादन प्रमुख ने बताया कि वाहन कबाड़ कारोबार में कारों के सभी हिस्से अलग किए जाते हैं और बची धातुओं (ज्यादातर इस्पात और एल्युमीनियम) को छोटे-छोटे टुकड़ों में कर उन्हें गलाया जाता है और दोबारा इस्पात तैयार किया जाता है। इस इस्पात का इस्तेमाल नए वाहनों में किया जाता है जिससे कुल उत्पादन लागत कम हो जाती है। उन्होंने कहा, ‘पुराने इस्पात का दोबारा इस्तेमाल करने से कार निर्माता कंपनियों की लागत 20 से 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यह उन कंपनियों के लिए विशेष फायदेमंद हो सकता जो हरेक महीने 1 लाख से अधिक वाहनों का निर्माण करती हैं। इस कारोबार को अधिक आकर्षक बनाने के लिए वित्त मंत्रालय ने 2019 मे कॉर्पोरेट टैक्स प्रोत्साहनों की घोषणा की थी। यह दर कबाड़ केंद्रों की स्थापना पर लागू होती है।
मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव से जब भारत में कबाड़ कारोबार की संभावना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसे संयंत्र तैयार करने पर अधिक लागत आती है। उन्होंने कहा कि इस कारोबार में कमाई कबाड़ के रूप में आने वाले वाहनों की संख्या पर निर्भर करेगा। भार्गव ने कहा, ‘कंपनियों को अमेरिका और यूरोप से ऐसे संयंत्रों के लिए उपकरणों का आयात करना होगा। वाहन कबाड़ नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन से भी कबाड़ कारोबार टिकाऊ बन पाएगा।’

First Published - March 19, 2021 | 11:33 PM IST

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