भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का प्रतिशत विश्व के तमाम देशों की तुलना में बहुत कम है। इस बीच हिस्सेदारों में बहस चल रही है कि भारत में फेम-2 सब्सिडी जारी रखी जानी चाहिए, या इसे वापस लिया जाना चाहिए। भारत में सरकार के ईवी के अपने घोषित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई गंभीर कदम उठाए जाने की जरूरत है।
इक्रा के एक अध्ययन के मुताबिक मार्च 2024 में खत्म हो रही 10,000 करोड़ रुपये की फेम-2 सब्सिडी योजना के बावजूद कैलेंडर वर्ष 2022 में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या महज 1.5 प्रतिशत है। इसकी आंशिक वजह सब्सिडी योजना में मौजूद समस्या और विद्युतीकरण का तेजी से गति पकड़ना है। वित्त वर्ष 23 में भारत में ईवी की संख्या करीब 4 प्रतिशत थी।
इसके विपरीत चीन में ईवी का प्रतिशत कैलेंडर वर्ष 2017 के 2 प्रतिशत से बढ़कर कैलेंडर वर्ष 2022 में 29 प्रतिशत हो गया है। जबकि चीन में इस पर मिलने वाली सब्सिडी 2019 में घटकर आधे से कम रह गई। इसके कारण 2020 में ईवी की वृद्धि घटी और चीन में इसकी बिक्री कम हो गई।
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वहीं उसके बाद 2021 और 2022 में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी और अब ईवी की कुल वैश्विक बिक्री में चीन की हिस्सेदारी करीब 58 प्रतिशत हो गई है। ब्रिटेन इस समय ईवी पर सब्सिडी वापस लेने पर विचार कर रहा है। इस अवधि के दौरान ब्रिटेन में ईवी की संख्या 2 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गई है। यूरोपीय संघ ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है और इस दौरान संख्या 2 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गई है। ईवी की वैश्विक बिक्री में ईयू की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है।
हालांकि अमेरिका इस मामले में पीछे है और भारत की तरह ही वह असंतुलन कम करने के लिए आक्रामक रूप से सब्सिडी पर जोर दे रहा है। 2017 में अमेरिका में ईवी की संख्या 1 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई है। अगर आप इलेक्ट्रिक कार खरीदते हैं तो सरकार 7500 डॉलर फेडरल क्रेडिट की पेशकश कर रही है, जिसका समायोजन व्यक्ति द्वारा दिए जाने वाले सालाना कर में किया जा रहा है। अमेरिका ने ईवी पर क्रेडिट लाइन 10 साल बढ़ाकर 2032 तक कर दिया है।
पहली फेम सब्सिडी 2015 में शुरू की गई थी, जिसका बजट 895 करोड़ रुपये था। इससे 2,50,000 से ज्यादा वाहनों को समर्थन मिला, जो इतना कम था कि कोई असर नहीं डाल पाया।
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चीन ने 2030 तक 40 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन का लक्ष्य रखा है और जिस तेजी से वहां काम चल रहा है, यह लक्ष्य समय से पहले पूरा होने की संभावना है। यूरोप में 55 प्रतिशत का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है, जबकि अमेरिका में 50 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
क्या ऐसे में भारत सब्सिडी वापस लेने का जोखिम ले सकता है? चीन के उदाहरण से पता चलता है कि सब्सिडी में तेज कमी करने से कुछ साल तक उद्योग पर बुरा असर पड़ सकता है। और कुछ कारोबारी कारोबार घटाने और बंदी के लिए बाध्य हो सकते हैं।
ओला इलेक्ट्रिक के संस्थापक भवीश अग्रवाल जैसे तमाम वाहन निर्माताओं का कहा है कि वे फेम-2 पूरी तरह बंद किए जाने को लेकर तैयार हैं और उत्पादन लागत घटाने पर काम कर रहे हैं। वहीं कुछ विनिर्माता कुछ और वर्षों तक सब्सिडी चाहते हैं, भले ही वह कम हो। उनका कहना है कि ईवी की संख्या कम से कम 10 प्रतिशत होने तक सब्सिडी दी जानी चाहिए। वहीं कुछ का कहना है कि सिर्फ सार्वजनिक परिवहन जैसे बसों और तिपहिया वाहनों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।