वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) में नियमों के उल्लंघन को लेकर बाजार नियामक सेबी की तरफ से हुई जांच ने ट्रस्टियों को सुर्खियों में ला दिया है। उनमें से कई अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए और अधिकार की मांग कर रहे हैं, जिनमें एआईएफ के व्यवहार पर नजर रखना और यूनिटधारकों के हितों का संरक्षण शामिल है।
एआईएफ ट्रस्टियों को एआईएफ के लिए अनुपालन से जुड़े कामकाज को भी अंजाम देना होता है और उन्हें निवेशकों के केवाईसी की जांच करनी होती है, साथ ही विदेशी निवेशकों से लाभार्थी स्वामित्व की विस्तृत जानकारी मांगनी होती है और इसे निवेशकों के साथ साझा करना होता है। हालांकि कई ट्रस्टियों ने कहा कि उन्हें इन्वेस्टमेंट मैनेजरों से समय पर डिस्क्लोजर नहीं मिलता है।
दर्जनों एआईएफ का प्रबंधन करने वाले एक ट्रस्टी का कहना है, ट्रस्टी के तौर पर हमारे अधिकार पारिभाषित नहीं हैं। हम बाजार नियामक से और अधिकार की मांग कर रहे हैं ताकि हम एआईएफ से और सूचनाएं मांग सकें, जो फंडों के उचित अनुपालन सुनिश्चित कराने की खातिर जरूरी हैं।
नियमों के उल्लंघन का संदेह होने पर ट्रस्टी उनके पोर्टल पर फाइनैंशियल इंटेलिजेंस यूनिट से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन इससे पहले उन्हें मैनेजरों से सूचना हासिल करना जरूरी होता है, पर वहां से सूचनाएं नहीं मिल पाती।
एक अन्य ट्रस्टी ने कहा, कई मैनेजर गोपनीयता करारों के चलते सूचनाएं साझा नहीं करते। वे इसे तब साझा करते हैं जब निवेश हो चुका होता है और तब तक काफी देर हो जाती है। तब आवश्यकता के समय भी हमें सूचना पाना मुश्किल हो जाता है।
कुछ ट्रस्टियों ने कहा, चूंकि यहां अधिकारों की कोई सीमा रेखा नहीं है, ऐसे में एआईएफ के भीतर नियमों के उल्लंघन या गलतियों की स्थिति में उन्हें किसी तरह का संरक्षण प्राप्त नहीं है। साथ ही वे दी गई सूचना के आधार पर ड्यू डिलिजेंस में खुद को अक्षम पाते हैं।
सेबी के अधिकारियों के मुताबिक, कई इकाइयां एआईएफ के जरिए इकाइयों व परिसंपत्तियों में निवेश को लेकर नियमों का उल्लंघन करते पाए गए, जहां अन्यथा उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं है। यह शेयरधारिता की सीमा या किसी कानूनी मसले के कारण हो सकता है।
ट्रस्टियों ने मिनट्स के स्तर पर ड्यू डिलिजेंस में चुनौतियों को रेखांकित किया है, जहां जटिल फैमिली ऑफिस या ट्रस्टी का ढांचा शामिल होता है। कुछ एआईएफ की भागीदारी वाली सिर्फ 2-3 इकाइयां होती हैं और उनका गठन विशिष्ट मकसद के साथ होता है।
ट्रस्टियों ने कहा, एक सीमा रेखा होनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि किस जगह किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा – ट्रस्टियों को या मैनेजरों को। निवेश को लेकर ड्यू डिलिजेंस के मामले में सिर्फ मैनेजर को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, वहीं अनुपालन से जुड़े मामलों पर ट्रस्टियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
अभी अधिकारों को लेकर कोई सीमा रेखा नहीं है और अगर कुछ गलत होता है तो कारण बताओ नोटिस में ट्रस्टियों को निश्चित तौर पर पक्षकार बनाया जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा, सैद्धांतिक तौर पर नियम सही तरीके से लिखे गए हैं, लेकिन व्यवहार में सही तरीके से लागू नहीं होता।
निशिथ देसाई एसोसिएट्स की पार्टनर नंदिनी पाठक ने कहा, ट्रस्टी के पास किसी एआईएफ का वैध स्वामित्व होता है और उसे किसी कानूनी नोटिस या कारण बताओ नोटिस से अलग नहीं किया जा सकता। एक ट्रस्टी मोटे तौरपर सूचनाओं व दस्तावेजों की प्रति पाने का अधिकार रखता है।
हालांकि व्यवहार में इन्वेस्टमेंट मैनेजर गोपनीयता की वजह से ऐसी सूचना अपने पास रख सकता है। ट्रस्टियों के कर्तव्य को लेकर सेबी समय-समय पर विशिष्ट स्पष्टीकरण सामने रखता रहा है।
अगर कोई इन्वेस्टमेंट मैनेजर सही तरीके से काम नहीं कर रहा है तो ट्रस्टी के पास सूचनाएं पाने, योगदान करने वाले यानी निवेशकों को लिखने का अधिकार है और इसके अलावा उसके पास इस्तीफा देने का भी अधिकार है।
इस साल सेबी ने नियमों के कथित उल्लंघन पर विस्तार कैपिटल एडवाइजर्स के ट्रस्टियों को छह महीने के भीतर फंड को समेटने का निर्देश दिया था। अब यह मामला प्रतिभूति अपील पंचाट (सैट) के पास है।
पाठक ने कहा, एआईएफ के संबंध में नियमों के मुताबिक फैसले लेने के लिए मैनेजरों के ऊपर प्राइवेट प्लेटमेंट मेमोरेंडम और फंड दस्तावेजों के हिसाब से चलने की जिम्मेदारी है। अगर कोई मसला सामने आता है तो ट्रस्टियों को यह बताने में सक्षम बनाया जाना चाहिए कि उन्होंने मैनेजरों से सूचना हासिल करने और अनुपालन सुनिश्चित करने की पर्याप्त कोशिशें की थी।