Apple ने अपने सभी पुराने स्मार्टफोन, मुख्य तौर पर आईफोन 13 और आईफोन 14 (जो एसेंबल किए हुए, निर्यातित हैं और घरेलू बाजार में बेचे जाते हैं) में यूएसबी चार्जिंग पोर्ट लगाने के संबंध में यूरोपीय यूनियन (ईयू) नियमों का पालन करने के लिए 12 से 18 महीने का समय दिए जाने का अनुरोध किया है। ऐपल का रुख सैमसंग से अलग है। सैमसंग ने ईयू नियमों पर तुरंत अमल पर जोर दिया है।
इस दक्षिण कोरियाई दिग्गज के सभी स्मार्टफोन ईयू नियमों के अनुपालन से जुड़े होते हैं। जहां सैमसंग ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, वहीं ऐपल के प्रवक्ता ने कहा है कि वह फिलहाल इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहेंगे।
भारतीय सेल्युलर एवं इलेक्ट्रॉनिक संगठन (आईसीईए) के मार्गदर्शन में कई मोबाइल निर्माता 1 जून, 2025 से ईयू नियमों पर अमल को इच्छुक हैं। यूरोपीय संघ में क्रियान्वयन के बाद उन्होंने इसमें 6 महीने की छूट दिए जाने को कहा है।
ऐपल अपने पुराने आईफोन मॉडलों में संबंधित बदलाव के लिए जून 2026 या दिसंबर 2026 तक का समय दिए जाने की मांग कर रही है। उसने इस साल आईफोन 15 पर इस नियम पर पहले से ही अमल किया है। ऐपल का मानना है कि बढ़े हुए समय के साथ इन फोन के लिए वैश्विक तौर पर और भारत में मांग काफी कम हो जाएगी या समाप्त हो जाएगी।
अलग अलग विचारों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, ‘इस मामले पर विचार हो रहा है। सभी विचारों पर चर्चा चल रही है। मंत्रालय द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है।’
सरकार ने स्मार्टफोन कंपनियों को नए पोर्ट पर क्रियान्वयन के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे देश में पैदा होने वाले ई-वेस्ट या यानी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के कबाड़ में कमी आ सकती है। इससे उपभोक्ताओं के लिए 27.1 करोड़ डॉलर की बचत होने का अनुमान है, क्योंकि वे समान चार्जर से अलग अलग कंपनियों के विभिन्न डिवाइस चार्ज कर सकेंगे।
ऐपल ने आईफोन 12 के बाद से अपने फोन के साथ चार्जर को शामिल करना बंद कर दिया है। इस मुद्दे पर मंत्रालय और उद्योग के बीच हुई बैठकों में शामिल अधिकारियों के अनुसार, ऐपल ने कहा है कि भारत में उसका 50 प्रतिशत से अधिक उत्पादन इन दो पुराने मॉडलों से जुड़ा हुआ है और शेष उत्पादन आईफोन 15 का है, जिसमें पहले से ही कॉमन यूएसी पोर्ट लगता है। 80 प्रतिशत से ज्यादा आईफोन बिक्री गैर-यूरोपीय देशों में होती है।
सूत्रों का कहना है कि ऐपल का दावा है कि नए नियमों पर अमल से पुराने फोन का उत्पादन काफी हद तक प्रभावित होगा, क्योंकि कंपनी के लिए समान मॉडल के दो फोन (एक निर्यात के लिए और दूसरा घरेलू बाजार के लिए) बनाना संभव नहीं होगा। इसके बाद कंपनी के पास अपना उत्पादन बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा और ऐसा हुआ तो इससे वित्त वर्ष 2026 में उसकी पीएलआई योजना का लक्ष्य डगमगा जाएगा।
ऐसे कदम का कंपनी की निर्यात प्रतिबद्धता पर भी प्रभाव पड़ सकता है। कंपनी ने कहा है कि भारत से उसकी कुल उत्पादन वैल्यू में वित्त वर्ष 2024 में निर्यात का 75 प्रतिशत योगदान हो सकता है।