भारतीय कंपनी जगत को अपनी फर्में सूचीबद्ध कराने में अब आसानी हो सकती है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने कंपनियों को आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) दस्तावेज जमा कराने के बाद निर्गम के आकार में फेरबदल करने के लिए ज्यादा छूट देने की सिफारिश की है।
समिति ने कंपनी सूचीबद्ध होने के बाद 20 फीसदी न्यूनतम हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए प्रवर्तकों को ज्यादा रास्ते देने का सुझाव दिया है। समिति ने यह भी कहा है कि बैंकों में हड़ताल जैसी अप्रत्याशित स्थिति आने पर कंपनियों का आईपीओ केवल एक दिन के लिए बढ़ाया जाए जबकि अभी उसमें तीन दिन इजाफा करना ही पड़ता है।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य रह चुके एसके मोहंती की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति में वित्त मंत्रालय, कंपनी मामलों के मंत्रालय और स्टॉक एक्सचेंजों के सदस्य तथा कानूनी विशेषज्ञ शामिल हैं। इसका का गठन पिछले आम बजट की घोषणा के बाद किया गया था, जिसमें वित्तीय नियामकों को अनुपालन सरल बनाने और इसके बोझ को कम करने पर काम करने का निर्देश दिया गया था।
समिति ने सूचीबद्धता के साथ-साथ खुलासे के मोर्चे पर भी कुछ बदलाव के सुझाव दिए हैं। अभी कंपनियों को आईपीओ लाने के बाद प्रवर्तकों की न्यूनतम 20 फीसदी हिस्सेदारी रखनी ही होती है। इस तरह आम निवेशकों से पैसा जुटाने के बाद भी कंपनी में प्रवर्तक को कुछ हिस्सेदारी बनाए रखनी पड़ती है।
प्रस्ताव के मुताबिक निजी इक्विटी और अन्य गैर-व्यक्तिगत शेयरधारकों की हिस्सेदारी को प्रवर्तक की न्यूनतम हिस्सेदारी माना जा सकता है। मगर इसमें शेयरधारिता की अवधि और मात्रा की शर्तें लगेंगी। महत्त्वपूर्ण बात है कि वे प्रवर्तक बने बगैर भी ऐसा कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त डिपॉजिटरी रीसीट सहित परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को कम से कम एक साल तक बनाए रखा जाए तो उन्हें भी प्रवर्तक की न्यूनतम हिस्सेदारी में शामिल किया जा सकता है।
समिति ने सुझाव दिया कि ओपन फॉर सेल (OFS) के आकार में इजाफा अथवा कमी या तो निर्गम के आकार पर आधारित हो या शेयरों की संख्या पर। दोनों को इसका आधार नहीं बनाया जा सकता।
कंपनियों को अभी निर्गम में ज्यादा बदलाव करने के लिए नए सिरे से आईपीओ दस्तावेज जमा कराने होते हैं। खुलासे के मोर्चे पर समिति ने सुझाव दिया कि बाजार पूंजीकरण के लिहाज से कंपनी का दर्जा तय करने के लिए 6 महीने का औसत बाजार पूंजीकरण ही देखा जाए।
कंपनियों को बाजार पूंजीकरण से संबंधित प्रावधानों के अनुपालन के लिए तीन महीने की मोहलत देने का भी सुझाव है। समिति ने खाली पड़े प्रमुख पद भरने के लिए 3 महीने के बजाय 6 महीने का समय दिए जाने की सिफारिश भी की है।