facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

MP Elections: मध्यप्रदेश के आदिवासियों को रिझाने में जुटीं पार्टियां

इसी महीने प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और तमाम पार्टियों के नेता यहां के आदिवासियों को लुभाने और उनके वोट हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हैं।

Last Updated- November 14, 2023 | 11:30 PM IST
Rahul Gandhi

विंध्य के इलाकों में राजनीतिक वादों की बढ़ती गूंज के बीच प्रदेश का आदिवासी समुदाय राजनीति और पुनर्वास के बीच पूरी मजबूती के साथ विकास के दुष्परिणाम पर सवाल उठा रहा है। पन्ना से बता रहे हैं नितिन कुमार

अद्भुत मगर चुनौती भरे इलाके के लिए मशहूर मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र (जिसे विंध्याचल भी कहते हैं) राजनीतिक सरगर्मियों का अड्डा बन गया है। इसी महीने प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और तमाम पार्टियों के नेता यहां के आदिवासियों को लुभाने और उनके वोट हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हैं।

मगर राजनीतिक गतिविधियों के बीच कई इलाके ऐसे भी हैं, जहां नेता पहुंच ही नहीं पा रहे हैं क्योंकि सड़कें कच्ची हैं, बिजली गायब है और बाघों से मुठभेड़ होने का डर भी बना हुआ है। पन्ना बाघ अभयारण्य के प्रतिबंधित क्षेत्र से 20 किलोमीटर दायरे में बसा ढोढन गांव ऐसी ही जगह है।

ढोढन में रहने वाले मानक आदिवासी कहते हैं, ‘वे हमारी तरक्की की कसमें खाते हैं मगर सड़क नहीं होने के कारण अपनी गाड़ी में हमारे गांव तक नहीं आ पाते या बिजली गायब होने की वजह से रात को यहां रुक नहीं पाते। लगता है कि हमें खाना मिल जाता है, यही उनके लिए विकास है।’

ढोढन उन दो दर्जन गांवों में है, जिन्हें केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना के तहत पुनर्वास के लिए चुना गया है। ग्रामीण मानते हैं कि बुंदेलखंड के सूखे इलाके के लिए यह परियोजना बहुत अहम है मगर जबरदस्ती पुनर्वास कराने का सरकार का इरादा उन्हें चिंता में भी डाल रहा है।

इलाके में रहने वाले आदिवासी सवाल करते हैं, ‘प्रगति के नाम पर हमेशा हमारे अधिकारों और रोजी-रोटी की बलि ही क्यों चढ़े? सरकार हमें बेहतर मुआवजा और अधिकारों की गारंटी क्यों नहीं दे सकती?’

उचित मुआवजा नहीं मिलने की वजह से वे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाराज हैं। उन्हें अपनी जमीन के बदले 12.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजे का वादा किया गया है। मगर पुनर्वास के लिए सरकार से जमीन लेने पर उन्हें 6 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर देने होंगे। आदिवासी चाहते हैं कि बतौर मुआवजा उन्हें 35 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर मिलें।

इलाके के आदिवासी नेता महेश कुमार आदिवासी ने ऐलान किया है, ‘हालांकि सरकार ने चुनावों से पहले पुनर्वास रोक दिया है मगर हमने भी तय कर रखा है कि दोबारा होगा तो हमारी ही शर्तों पर होगा।’

भाजपा के स्थानीय नेता उचित मुआवजा देने का वादा कर रहे हैं मगर आदिवासियों को शंका है। इलाके के आदिवासी दया राम को स्थानीय नेताओं पर जरा सा भी भरोसा नहीं है। वह कहते हैं, ‘हम भाजपा को वोट देने की तभी सोचेंगे, जब पार्टी के बड़े नेता हमें आश्वस्त करेंगे क्योंकि असली ताकत उन्हीं के पास है।’

भाजपा ने मुआवजा बढ़ाने का वादा तो अभी तक नहीं किया है मगर पार्टी आदिवासी समुदाय का भरोसा जीतने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, लाडली बहन योजना जैसी योजनाओं पर दांव खेल रही है। यह बात अलग है कि राज्य भर से बातचीत में बिज़नेस स्टैंडर्ड को पता चला कि योजनाएं आधे-अधूरे ढंग से लागू होना भगवा पार्टी के लिए बड़ा रोड़ साबित हो सकता है।

ग्वालियर में बेला की बावड़ी की प्रेमा देवी उन आदिवासी महिलाओं में हैं, जिन्हें कई बार अर्जी डालने के बाद भी लाडली बहन योजना से धन नहीं मिल रहा है। भोपाल के आदिवासी इस बात से नाराज हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है।

भाजपा विकास के प्रयासों के साथ ही आदिवासी समुदाय को धार्मिक मामलों में भी शामिल कर रही है। प्रधानमंत्री ने प्रदेश के सिवनी जिले में आयोजित एक रैली में आदिवासियों से कहा, ‘हम आदिवासियों के अनुयायी और उपासक हैं, जिन्होंने भगवान राम को पुरुषोत्तम राम बनाया।’

भाजपा के प्रयास बताते हैं कि प्रदेश की राजनीति में आदिवासी आबादी की भूमिका कितनी अहम है। राज्य में 1.53 करोड़ आदिवासी हैं। मध्य प्रदेश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 21.1 फीसदी है और 47 विधानसभा सीटें उनके लिए आरक्षित हैं।

असल में उनका असर करीब 100 सीटों पर नजर आता है, जिसके कारण आदिवासियों का कद बहुत बड़ा हो जाता है। उनका काम जंगलों को बचाना भर नहीं है, वे यह भी तय करते हैं कि राज्य में मुख्यमंत्री कौन बनेगा।

पार्टी की कोशिशें इसलिए भी बढ़ गई हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसने आदिवासियों का समर्थन खो दिया था। 2013 के चुनाव में भाजपा ने इन 47 सीटों में से 37 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की थी। मगर 2018 के चुनाव में 31 सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं और भाजपा 16 सीटों पर सिमटकर रह गई।

कांग्रेस भी वोट बचाने के लिए 50 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी वाले जिलों में छठी अनुसूची लागू करने और अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996 लागू करने की योजना बना रही है। छठी अनुसूची में अपना कानून बनाने और लागू करने का अधिकार मिल जाता है। इसमें जल, जंगल, जमीन से जुड़े मसलों के साथ ही आदिवासियों की परंपराओं के अनुसार विवाह और विरासत से संबंधित मामले भी शामिल हैं।

मध्य प्रदेश के बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ, धार, डिंडोरी और मंडला जिलों में आदिवासियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। आदिवासियों को खनन और रेत पट्टों के आवंटन तय करने का अधिकार मिलेगा। पेसा अधिनियम आदिवासी क्षेत्रों को अपनी ग्राम सभा बुलाने और प्रशासनिक विकल्प चुनने का भी अधिकार देगा।

First Published - November 14, 2023 | 11:30 PM IST

संबंधित पोस्ट