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जेनेरिक दवा: नियामकीय सतर्कता की दरकार

यूएसएफडीए का कहना है कि जैविक उत्पाद गर्मी के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं और इनमें सूक्ष्मजीव से दूषित होने का खतरा भी होता है।

Last Updated- August 07, 2023 | 1:39 AM IST
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विज्ञान, चिकित्सा और कारोबार की दुनिया में सुर्खियों में आने वाले आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के इस दौर में स्वास्थ्य सेवा से जुड़ा एक और पहलू दवाओं के विकास से संबंधित तंत्र को व्यस्त रख रहा है।

यह बायोलॉजिक्स बनाम बायोसिमिलर की बहस है जो भारत में एक नया मोड़ ले रही है और इसको लेकर न केवल फार्मा कंपनियां बल्कि नागरिक समाज, मरीजों के समूह, समुदाय के साथ-साथ स्वास्थ्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखा है।

बायोलॉजिक्स जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर जीवित कोशिकाओं से बनाए जाते हैं और ये कुछ बीमारियों के इलाज में कारगर होती हैं। बायोसिमिलर वास्तव में बायोलॉजिक्स दवाएं ही हैं जो मूल बायोलॉजिक्स के जैसी हैं लेकिन पूरी तरह से समान नहीं हैं। बायोसिमिलर आमतौर पर सस्ती होती हैं।

बहस के मूल में एक बुनियादी आधार यह है कि दवाएं सस्ती होनी चाहिए ताकि बड़ी संख्या में लोगों को लाभ मिल सके। दवाओं को किफायती बनाने की आवश्यकता के विरोध में कोई तर्क नहीं है, लेकिन पत्र में सरकार से भारत में बायोसिमिलर दवाओं के परीक्षण और निर्माण से संबंधित दिशानिर्देशों में ढील देने का आग्रह किया गया है ताकि सस्ता इलाज सुनिश्चित किया जा सके।

इन समूहों ने बायोसिमिलर दिशानिर्देश, 2016 में संशोधन की मांग करते हुए कहा है कि अधिक मूल्य वाले प्रवर्तक उत्पादों को बढ़ावा देने वालों के प्रभाव से मुक्त समिति को नए मानदंडों पर काम करना चाहिए। अनुसंधान पर जोर देने वाली बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के दिग्गज लोगों और कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ ही ज्यादातर गुमनाम डॉक्टरों ने यह कहते हुए हमला किया है कि नियामक सख्ती के बिना दवाएं (बायोसिमिलर) बनाने का कोई मतलब नहीं है।

विरोधी पक्ष का मूल प्रश्न यह है कि सस्ती दवा का क्या उपयोग है अगर किसी दवा से इलाज ही कारगर न हो और इसका दुष्प्रभाव दिखाई देने लगे? यह कुछ हद तक पेटेंट दवा बनाम जेनेरिक दवाओं की बहस का दूसरा चरण है।

बायोसिमिलर को अक्सर बायोलॉजिक्स के नकल वाले संस्करणों के रूप में जाना जाता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसमें शामिल जटिलताओं के कारण बायोलॉजिक्स की दुनिया में चीजें अलग तरीके से काम करती हैं। यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) जैविक उत्पादों को एक श्रेणी के रूप में दर्शाता है, जिसमें टीका, रक्त और रक्त घटक, एलर्जी, शारीरिक कोशिकाएं, जीन थेरेपी, ऊतक और संयोजन वाली चिकित्सकीय प्रोटीन शामिल होती हैं। बायोलॉजिक्स दवाएं, शर्करा, प्रोटीन या न्यूक्लिक एसिड, या इन पदार्थों के जटिल संयोजन से बनी हो सकती हैं और ये कोशिकाएं तथा ऊतकों जैसी जीवित इकाइयां भी हो सकती हैं।

अधिकांश पारंपरिक दवाएं रासायनिक तरीके से संश्लेषित की जाती हैं और उनकी संरचना ज्ञात होती है, वहीं बायोलॉजिक्स जटिल मिश्रण होती हैं जिन्हें आसानी से नहीं पहचाना जा सकता है या उनकी विशेषताएं तय की जा सकती हैं।

यूएसएफडीए का कहना है कि जैविक उत्पाद गर्मी के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं और इनमें सूक्ष्मजीव से दूषित होने का खतरा भी होता है। ऐसे में दवा तैयार करने के शुरुआती चरणों के दौरान ही प्रारंभिक विनिर्माण चरणों में ही कीटाणु को रोकने वाले तरीके का उपाय करना आवश्यक होगा जो अधिकांश पारंपरिक दवाओं के उलट भी है।
बायोलॉजिक्स दवाएं विभिन्न प्रकार की बीमारियों और स्थितियों के इलाज के लिए सबसे प्रभावी साधन हो सकती हैं जिनके

पास इलाज का कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं है। बायोसिमिलर से इलाज करने वालों में कैंसर, गुर्दे की बीमारियों और मधुमेह के मरीज शामिल हैं।

अमेरिका के स्वास्थ्य नियामक का कहना है कि बायोसिमिलर एक बायोलॉजिक्स के समान ही है जो एफडीए द्वारा अनुमोदित बायोलॉजिक्स या संदर्भ उत्पाद के लिहाज से सुरक्षा, शुद्धता और ताकत के मामले में इलाज के लिहाज से इसमें कोई खास अंतर नहीं है। एफडीए ने बायोसिमिलर को मंजूरी दी जिसकी प्रक्रिया ‘संक्षिप्त’ है। इसका मतलब है कि बायोसिमिलर निर्माताओं को कई महंगी और जटिल क्लीनिकल परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है जिसके परिणामस्वरूप दवाएं कम महंगी हैं।

हालांकि, दवा निर्माताओं द्वारा पेश किए गए सभी सबूतों के आधार पर मंजूरी देने के लिए बायोसिमिलर का आकलन किया जाता है। इसके अलावा, एफडीए का कहना है कि यह प्रत्येक प्रस्तावित बायोसिमिलर दवाओं का एक-एक कर आकलन करता है और दवा निर्माताओं को जैवसमानता दिखाने के लिए आवश्यक परीक्षण के दायरे और इसकी सीमा से जुड़ी सलाह देता है।

यह प्राकृतिक और जीवित स्रोतों से बना है ऐसे में बायोलॉजिक्स दवाओं की पूरी तरह से नकल नहीं की जा सकती है और यह प्रदर्शित करने के लिए कि बायोलॉजिक्स ही बायोसिमिलर के समान है, इसकी जानकारी हासिल करना जेनेरिक दवाओं के लिए जरूरी जानकारी की तुलना में बेहद व्यापक हो सकता है। यही कारण है कि बायोसिमिलर के क्लीनिकल परीक्षण तंत्र को विश्वस्तरीय बनाने की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2016 में बायोसिमिलर पर दिशानिर्देश जारी किए, जिसमें सुरक्षा और इसके प्रभाव पर जोर दिया गया। सीडीएससीओ ने विस्तृत जांच और विनिर्माण मानदंडों को सूचीबद्ध करते हुए कहा था, ‘एक समान बायोलॉजिक्स उत्पाद वह है जो तुलनात्मक रूप से एक अनुमोदित संदर्भ जैविक उत्पाद की गुणवत्ता, सुरक्षा और असर के समान है।’

नागरिक समाज, मरीजों के समूह और स्वास्थ्य संगठनों के प्रतिनिधियों के पत्र में इस बात का जिक्र है कि कुछ वैश्विक निकायों ने बायोसिमिलर दवाओं से जुड़े नियमों में ढील दी है। लेकिन फार्मा क्षेत्र के अंदरूनी सूत्र दिनेश ठाकुर ने एक लेख में बताया है कि छोटे अणु वाली जेनेरिक दवाओं के विपरीत दुनिया भर में बायोसिमिलर पर नियामक की सख्त नजर होती है।

वर्ष 2017 में, मेडिकल जर्नल, लांसेट ने कहा था कि बायोसिमिलर दवाओं का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और उनके पास किफायती इलाज का विकल्प देने की क्षमता है। उद्योग का अनुमान है कि भारत में बायोसिमिलर का बाजार सालाना 25 प्रतिशत से अधिक बढ़कर वर्ष 2030 तक 2 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगा, जो वर्तमान में 35 करोड़ डॉलर है।

First Published - August 7, 2023 | 1:39 AM IST

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