संचार मंत्रालय ने कहा कि बड़ी संख्या में ट्रैफिक उत्पन्न करने वाले ओवर द टॉप (OTT) कंपनियों को दूरसंचार नेटवर्क ऑपरेटरों के साथ अपना राजस्व साझा करने के लिए निर्देश देने की कोई योजना नहीं है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ऐसी किसी भी आशंका को यह कहते हुए खारिज कर दिया, ‘हमारे पास इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है और न ही हम ऐसी किसी योजना पर काम कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इस मामले में नियामक (TRAI) के पास भी कोई नया संदर्भ नहीं है।’
मंत्रालय का यह कदम इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि दूरसंचार कंपनियां जुलाई से ही मुद्दे को हवा दे रही हैं। तब ट्राई ने ओटीटी पर नियामक तंत्र और ओटीटी सेवाओं के चयनात्मक प्रतिबंध पर एक परामर्श पत्र जारी किया था।
ट्राई जिस एक क्षेत्र पर राय मांग रहा है वह यह है कि क्या ओटीटी सेवा प्रदाताओं और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के बीच एक सहयोगी ढांचे की जरूरत है। इससे क्या नेट तटस्थता, उपभोक्ता पहुंच और पसंद पर इस ढांचे से क्या कोई चुनौती खड़ी हो सकती है। पत्र पर खुली चर्चा जल्द शुरू होने वाली है।
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के तत्त्वाधान में दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि ओटीटी कंपनियां भारी बैंडविथ सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं और असंगत रूप से उच्च ट्रैफिक उत्पन्न कर रहे हैं। इससे उन्हें मजबूरन अपने नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए अधिक निवेश करना पड़ रहा है।
ओटीटी कंपनियां ग्राहकों और विज्ञापनदाताओं दोनों से कमाई करती हैं जबकि टेलीकॉम कंपनियां नाममात्र राजस्व और एआरपीयू के साथ बैंडविड्थ की बढ़ती मांग से परेशान हैं जो इसे सुविधाजनक बनाने के लिए किए गए नेटवर्क निवेश को उचित नहीं ठहराते हैं। इसके अलावा, उन्होंने उपभोक्ताओं को प्रभावित किए बिना ऐसा किया है।
दूरसंचार कंपनियां चाहती हैं कि सरकार एक कानूनी ढांचा बनाए जो यह सुनिश्चित करे कि बड़ी ट्रैफिक जनरेटर मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों को उनके द्वारा प्रदान की गई सेवा के लिए उचित और अनुपातिक हिस्सेदारी का भुगतान करे ताकि उन्हें औरअधिक बेहतर तरीके से ट्रैफिक वितरण के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।