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Red Fort: हमेशा सत्ता का केंद्र रहा है लाल किला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को लाल किले से 77वें स्वतंत्रता दिवस समारोहों में देश का नेतृत्व करेंगे

Last Updated- August 14, 2023 | 12:45 AM IST

कुछ दिन पहले जब दिल्ली बाढ़ में डूबी हुई थी तो यहां का ऐतिहासिक लाल किला मानो अतीत के झरोखे से झांक रहा था। बगल के सलीमगढ़ किले और लाल किले के बीच पुल के नीचे से बहते पानी की तस्वीरें 19वीं शताब्दी के मुगल काल के चित्रों की याद दिला रही थीं जब यमुना शिथिल पड़ रहे मुगल साम्राज्य की सत्ता के केंद्र लाल किले की लाल दीवारों को छूते हुए बह रही थी। मीडिया में इस संबंध में एक दिलचस्प पोस्ट आई थी, जिसमें कहा गया था ‘नदी अपना पुराना रास्ता कभी नहीं भूली।’

यमुना के उफनते पानी का एक बार फिर अपनी पुरानी जगह पहुंचना शहर के सबसे बड़े विशाल स्मारक के बारे में एक महत्त्वपूर्ण इशारा कर जाता है। दिल्ली जैसे बड़े शहर में लाल किले ने जितने करीब से इतिहास को देखा है शायद इतने करीब से किसी ने नहीं देखा। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए लाल किले को एक बार फिर से सजाया जा रहा है। लाल किले का 375 वर्षों का इतिहास अपने आप में कई घटनाक्रम को समेटे हुए है।

मुगल और अंग्रेजों के शासन काल में लाल किले पर कई बार चढ़ाई की कोशिशें हुई थीं। अफगान, मराठा और राजपूत योद्धाओं ने कई बार लाल किले को अपने अधीन करने का प्रयास किया था। उनके लिए लाल किले को अपने अधीन करना एक तरह से अपनी संप्रभुता स्थापित करने जैसा था।

ऐसा लगता है यह सिलसिला कभी बंद नहीं हुआ। दो साल पहले ही 2021 में भारतीय किसानों के आंदोलन के दौरान लोगों का एक समूह लाल किले में घुस आया और वहां सिख धर्म से संबंधित झंडा लहरा दिया। बाद में प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उन्होंने लोगों के विचार के प्रकटीकरण के लिए लाल किले के प्राचीर से झंडा फहराया था। लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि लाल किला पिछले कई वर्षों से शक्ति संप्रभुता और राष्ट्रीयता का प्रतीक रहा है। इस समय देश एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जब कुछ जगहों और अन्य प्राचीन स्थानों के नाम बदले जा रहे हैं।

मसलन, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है और मुगलसराय स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन रखा जा चुका है। इतना ही नहीं, एनसीईआरटी ने अपने पाठ्यक्रम में इतिहास के कई अध्याय हटा दिए हैं। इन सबके बीच लाल किला अब भी सत्ता का केंद्र है जहां से प्रधानमंत्री हर साल राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं।

लाल किले का निर्माण 1639 और 1648 के बीच हुआ

लाल किले का निर्माण 1639 और 1648 के बीच हुआ था। भारतीय राष्ट्र के साथ लाल किले का जुड़ाव वास्तव में 1857 में शुरू हुआ था। लाल किला मुगल शासक शाहजहां की नई राजधानी शाहजहानाबाद के केंद्र के रूप में बनाया गया था।

लेखिका और इतिहासकार स्वप्न लिडल कहती हैं, ‘1857 में देशभर से सैनिकों का एक बड़ा जमावड़ा दिल्ली में हुआ था। इसका सीधा कारण यह था कि दिल्ली उस दौरान और पहले शक्तिशाली शासकों की राजधानी रही थी।’ हालांकि शासक तब वास्तव में अधिकार विहीन हो गए थे मगर तब भी लाल किला एक ऐसी ऐसी शक्ति का केंद्र था जिसके इर्द-गिर्द कई लोग जमा हो सकते थे।

हालांकि, 1857 में लाल किले में एक नई सरकार के गठन का लक्ष्य एक नए साम्राज्य की स्थापना नहीं था। लिडल कहती हैं, ‘सैनिकों और नागरिकों ने एक ऐसी सरकार की स्थापना का प्रयास किया, जिसका उद्देश्य विभिन्न सिद्धांतों का आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्य करना था।’ इस तरह यह कहा जा सकता है कि लोकतांत्रिक सरकार की नींव लाल किले में रखी गई थी।

अंग्रेजों ने 1857 में सिपाही विद्रोह कुचल दिया था। उन्होंने ना केवल लाल किले की वास्तुकला के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया बल्कि इस पर कब्जा भी जमा लिया। मगर इसके बाद भी लोकतांत्रिक एवं स्वतंत्र भारत की विचारधारा के रूप में लाल किला खड़ा रहा।

जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को लाल किले के प्राचीर से नहीं फहराया था राष्ट्रीय ध्वज 

जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को लाल किले के प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया था, इसके बजाय स्वतंत्रता दिवस समारोह नई दिल्ली में इंडिया गेट के नजदीक प्रिंसेस पार्क में आयोजित हुआ। ठीक उसी समय संविधान सभा में मध्य रात्रि के सत्र के दौरान भारत की एक नई गाथा लिखने की शुरुआत हो चुकी थी।

मगर राष्ट्रीयता के एक प्रतीक के रूप में नेहरू ने अगले दिन यानी 16 अगस्त को लाल किले के लाहौरी गेट के प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराया और वहां से स्वतंत्रता दिवस पर अपना पहला भाषण दिया। यह सिलसिला पिछले 76 वर्षों से चला रहा है । आखिर एक दिन की देरी के बाद लाल किले पर समारोह आयोजित करने के पीछे क्या तर्क था इसका कोई निश्चित उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं है।

सन1857 में सिपाही विद्रोह कुचलने के बाद अंग्रेजों ने लाल किला पर कब्जा जमा लिया और इसे अपने सत्ता का केंद्र बना लिया। 1899 से 1905 तक भारत के वायसराय रहे लॉर्ड कर्जन ने लाल किले के कई हिस्सों की मरम्मत का आदेश दिया क्योंकि तब तक दिल्ली में अंग्रेजी हुकूमत का सैन्य ठिकाना बन गया था।

लाल किले में ना केवल अंग्रेजों ने युद्ध बंदियों को रखा बल्कि 1945 में आजाद हिंद फौज से जुड़े लोगों पर मुकदमा भी चलाया। इस लिहाज से लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन अपने राष्ट्र के गौरव को दोबारा स्थापित करना भी था।

इतिहासकार एवं फिल्म निर्माता उमा चक्रवर्ती का कहना है कि लाल किला रणनीतिक लिहाज से भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। इस कारण यह केंद्रीकृत प्रशासन का प्रतीक बन गया। पुरानी राजधानी शाहजहानाबाद, जामा मस्जिद और मीना बाजार लाल किले के किला होली गेट तक फैले हुए थे।

चांदनी चौक के मध्य में एक काउंसिल हॉल भी था जो अब दिल्ली टाउन हॉल के नाम से जाना जाता है। इस काउंसिल हॉल में ब्रिटिश इंडिया का इंपीरियल लेजिस्लेटिव कॉउंसिल हुआ करता था। पुरानी राजधानी के पश्चिमी हिस्से में लुटियन का इलाका तैयार हुआ, जो भारत में अंग्रेजी हुकूमत का एक तरह से हस्ताक्षर था। लाल किले से कुछ ही दूरी पर एक और पुराना किला फिरोज शाह कोटला था। इस तरह, सभी उद्देश्यों और इरादों से लाल किला कई पुरानी और नई राजधानियों के बीच एक केंद्रीय स्थान था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लाल किला सैनिक छावनी के रूप में इस्तेमाल होता रहा था। इसका एक बड़ा हिस्सा दिसंबर 2003 तक भारतीय सेना के अधीन था। दिसंबर 2003 में लाल किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मरम्मत कार्यों के लिए सौंप दिया गया।

चक्रवर्ती कहती हैं, ‘लाल किला एक स्वाभाविक पसंद था। मजबूत, एक बड़े क्षेत्र में फैले इस आकर्षक संरचना ने कई साम्राज्यों को आते और जाते हुए देखा था। लाल किले के इर्द-गिर्द बाजार, मस्जिद आवासीय परिसर और हॉल देखते कई मायनों में यह स्वयं में एक राजधानी था और अभी भी है।’

First Published - August 14, 2023 | 12:45 AM IST

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