प्रतिभूति अपील पंचाट (SAT) ने शुक्रवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज होल्डिंग्स, आरआईएल के चेयरमैन मुकेश अंबानी व अन्य के खिलाफ बाजार नियामक की तरफ से अप्रैल 2021 में जारी आदेश को निरस्त कर दिया।
सेबी ने कंपनी, आरआईएल चेयरमैन मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani), नीता अंबानी, रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी, टीना अंबानी और सात अन्य पर कुल 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना साल 2000 में अधिग्रहण के नियमों के कथित उल्लंघन पर लगाया गया था।
सेबी को चार हफ्ते के भीतर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लौटाने का आदेश
आदेश निरस्त करते हुए पंचाट ने सेबी को चार हफ्ते के भीतर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लौटाने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल ने कहा, हमने पाया है कि अपीलकर्ताओं ने एसएएसटी नियमन 2011 के नियम 11 (1) का उल्लंघन नहीं किया है। अपीलकर्ताओं पर जुर्माना बिना किकसी अधिकृत कानून के लगाया गया। ऐसे में सेबी का यह आदेश निरस्त किया जाता है।
मामला जनवरी 2000 का
यह मामला जनवरी 2000 में रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से 38 इकाइयों को 12 करोड़ इक्विटी शेयर जारी करने में अनियमितता से जुड़ा है।
सेबी ने अपने आदेश में आरोप लगाया था कि आरआईएल के प्रवर्तकों की तरफ से 6.83 फीसदी शेयरों का अधिग्रहण करना टेकओवर रेग्युलेशन के तहत तय 5 फीसदी की सीमा से ज्यादा था।
रिलायंस ने 1997 में एक शेयर पर एक शेयर बोनस का ऐलान किया था और हर वॉरंटधारक 75 रुपये प्रति शेयर के भुगतान पर रिलायंस के चार इक्विटी शेयर पाने के हकदार थे।
आरआईएल ने अप्रैल 2000 में जमा कराया था डिस्क्लोजर
आरआईएल ने अप्रैल 2000 में डिस्क्लोजर जमा कराया था। हालांकि सेबी ने शिकायत पर दो साल बाद जांच शुरू की और फरवरी 2011 में कारण बताओ नोटिस जारी किया।
सेबी के आदेश में पाया गया कि वॉरंट की खरीद से वॉरंटधारकों को मतदान का अधिकार नहीं मिलता और चूंकि वॉरंट को जनवरी 2000 में इक्विटी शेयरों में बदला गया, लिहाजा इससे खुली पेशकश लाने का मामला बनता है।
124 पन्ने के आदेश में पंचाट ने कहा है कि कारण बताओ नोटिस जारी करने में काफी देर हुई और अगर इसकी सीमा न भी हो तो भी अधिकारियों को तय समयसीमा में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए था।
मामले में कारण बताओ नोटिस कथित उल्लंघन के 11 साल बाद जारी किया गया, जबकि सहमति आवेदन पर फैसला लेने में नौ साल और लग गए। कुल मिलाकर यह आदेश 21 साल की देरी से आया।
अदालत ने कहा, हमने पाया कि देरी से अपीलकर्ता को गंभीर तौर पर पूर्वाग्रह हुआ है। न सिर्फ कार्यवाही में अनावश्यक देरी हुई बल्कि इसके निपटान में भी। ऐसे में यह आदेश इस आधार पर निरस्त करने योग्य है।
आरआईएल के वकील ने तर्क दिया था कि 25 करोड़ रुपये का जुर्माना सेबी अधिनियम की धारा के तहत लगाया गया था, जो सितंबर 2015 में अस्तित्व में आया और किसी तरह के उल्लंघन के मामले में साल 2000 तक मौजूद प्रावधान लागू किया गया।
अधिकतम जुर्माना 5 लाख रुपये होना चाहिए था: पंचाट
हालांकि सेबी ने कहा कि शेयरों का अधिग्रहण 21 साल पहले बिना किसी खुली पेशकश लाए किया गया था और प्रवर्तकों के पास ये शेयर बने रहे व उन्होंने मतदान के अधिकार का इस्तेमाल किया, लिहाजा मौजूदा नियम लागू किया जा सकता है। पंचाट ने यह भी कहा कि साल 2000 के मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक उल्लंधन के मामले में अधिकतम जुर्माना 5 लाख रुपये होना चाहिए था।