अगर इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए 100 अरब डॉलर का राजस्व हासिल करना है तो भारतीय मूल उपकरण विनिर्माताओं (OEM) को नए इलेक्ट्रिक वाहनों के एंट्री लेवल और किफायती श्रेणी वाले मॉडल उतारने की रफ्तार तेज करनी होगी। बेन ऐंड कंपनी की रिपोर्ट में ये बातें कही गई है।
लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले छह-सात वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के वॉल्यूम में 10 गुने से ज्यादा की वृद्धि जरूरी होगी और इसका प्रसार मौजूदा 5 फीसदी से बढ़ाकर साल 2030 तक 40 फीसदी पर ले जाना होगा।
अभी ईवी की बिक्री प्रीमियम वाहनों तक सीमित है, मसलन स्कूटर की कीमत 1 से 1.25 लाख रुपये, कार 9 से 15 लाख रुपये और तिपहिया यात्री वाहन 3 लाख रुपये से ज्यादा। इससे ईवी का प्रसार और ज्यादा लोगों की तरफ से अपनाया जाना सीमित हो गया है।
इंडिया इलेक्ट्रिक व्हीकल रिपोर्ट 2023 के नाम से बेन की रिपोर्ट में कहा गया है, इलेक्ट्रिक कार की लागत मोटे तौर पर 50 फीसदी ज्यादा है और यह आईसीई मॉडल के मुकाबले 50-60 फीसदी कम रेंज व इंजन की 30 फीसदी कम ताकत की पेशकश करता है।
इससे पता चल सकता है कि आखिर उनका प्रसार 1.5 फीसदी क्यों है। रिपोर्ट के मुताबिक, टाटा टियागो इलेक्ट्रिक वाहन की कीमत 8.7 लाख रुपये है और उसकी रेंज 250 किलोमीटर है और उसके साथ 60 बीएचपी पावर है। टाटा टियागो आईसीई से इसकी तुलना करें तो उसकी लागत 5.6 लाख रुपये है लेकिन 600 किलोमीटर की रेंज व 85 बीएचपी पावर है।
इससे उबरने का क्या रास्ता है? रिपोर्ट में कहा गया है कि एंट्री लेवल इलेक्ट्रिक कार प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उतरना वक्त की जरूरत है, साथ ही बैटरी की कीमत में भी कमी होनी चाहिए। अफोर्डेबल मॉडल की दरकार दोपहिया बाजार पर भी लागू होती है, इलेक्ट्रिक स्कूटर व बाइक दोनों पर। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ऐसा होता है तो ईवी स्कूटर का प्रसार मौजूदा 10-15 फीसदी से 50 फीसदी के पार निकल सकता है।
प्रीमियम सेगमेंट में ईवी स्कूटर का प्रसार 40 फीसदी के पार निकल गया है, लेकिन आम व किफायती सेगमेंट बाजार का 75 फीसदी है, जो मोटे तौर पर अप्रयुक्त रहा है।
ओईएम को ऐसे उत्पाद बनाने होंगे, जो वर्चस्व वाले आईसीई मॉडलों मसलन होंडा ऐक्टिवा की जगह ले सके, जो करीब 90 हजार रुपये पर उपलब्ध है। यह हालांकि ओईएम के लिए चुनौती होगी, जो वाहन लागत को संतुलित बनाने के लिए जूझ रहे हैं।
इलेक्ट्रिक मोटरसाइकल का प्रसार महज एक फीसदी है, हालांकि कुल दोपहिया बाजार में उनकी हिस्सेदारी 60 फीसदी है। यहां भी समस्या यह हैकि ज्यादातर मॉडल 50 फीसदी ज्यादा महंगे हैं, टॉप स्पीड 25 फीसदी कम है और आईसीई मॉडलों से इनकी रेंज 80 फीसदी कम है।