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आम चुनाव से सुस्त नहीं पड़ेगी सौदों की रफ्तार

देश के अनुकूल वृहद आर्थिक परिदृश्य के आधार पर भारत के इक्विटी पूंजी बाजार (ईसीएम), ऋण पूंजी बाजार (डीसीएम) और विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) के लिए दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है।

Last Updated- April 21, 2024 | 11:37 PM IST
Private equity investment fall by 65% to $1.81 bn in quarter ending Sept

बीएनपी पारिबा इंडिया में कॉरपोरेट कवरेज ऐंड एडवायजरी के प्रमुख गणेशन मुरुगैयन का कहना है कि देश के अनुकूल वृहद आर्थिक परिदृश्य के आधार पर भारत के इक्विटी पूंजी बाजार (ईसीएम), ऋण पूंजी बाजार (डीसीएम) और विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) के लिए दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है।

उन्होंने समी मोडक को दिए ईमेल साक्षात्कार में बताया कि निजी इक्विटी (पीई) फर्मों के बड़े बिकवाली सौदों से घरेलू बाजार की मजबूती का पता चलता है। मुख्य अंश:

पिछले 12 महीने शेयर बिक्री के लिए फायदे का सौदा साबित हुए हैं। आपके अनुसार इन सौदों की मजबूती का कारण क्या है?

इस समय भारत अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। राजनीतिक स्थायित्व, नीतिगत निरंतरता, मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद और स्थिर मुद्रा आय वृद्धि के लिहाज से उपयोगी हैं। इसके अलावा फंडों के निरंतर निवेश से (एएफपीआई और म्युचुअल फंड) बाजार को फायदा हो रहा है। हालांकि इन सकारात्मक कारकों के बावजूद पिछले वर्षों में की गई बिकवाली की वजह से एफपीआई का मौजूदा समय में भारतीय बाजार में कम स्वामित्व है। जैसे ही इसमें सुधार आएगा,इससे घरेलू प्रवाह में होने वाली गिरावट के खिलाफ सहारा मिलेगा। साथ ही, वैश्विक तौर पर ब्याज दरों में गिरावट की उम्मीदों से भी इक्विटी में निवेश और मजबूत होगा।

अगले 12 महीनों के लिए इक्विटी और ऋण पूंजी बाजारों के लिए परिदृश्य कैसा है?

भूराजनीतिक अनिश्चितताएं बढ़ने के बीच सतर्कता के साथ उम्मीदें हैं। हमारा खासकर चुनाव के बाद इक्विटी बाजार को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण है। कई बड़े आईपीओ के प्रस्ताव और नई सूचीबद्धताओं की संभावनाएं हैं जिससे सक्रियता का आभास होता है। ऋण पूंजी बाजार में भी संभावित सुधारों का संकेत मिल रहा है। हमारा मानना है कि यह सकारात्मक बदलाव चुनाव के बाद बरकरार रहेगा, जिससे देश के लिए नीतियों की निरंतरता और महत्वपूर्ण दिशा का संकेत मिलता है। यह निरंतरता निवेशकों का भरोसा बनाए रखने और बाजार धारणा मजबूत बनाए रखने के लिहाज से अच्छी

विलय-अधिग्रहण और ऋण जुटाने के लिहाज से साल कैसा रहा? किस तरह का रुझान है?

विलय-अधिग्रहण गतिविधियां सुस्त रहीं। वर्ष 2023 में यह पिछले वर्षों के मुकाबले 25-30 प्रतिशत घट गईं। हालांकि जैसे ही हम 2024 में पहुंचे गतिविधियों में अच्छा सुधार दिखा। ध्यान देने की बात यह है कि घरेलू विलय-
अधिग्रहण सौदों में तेजी आ रही है। पीई मजबूत खिलाड़ी की तरह उभरे हैं। इस साल कई परिसंपत्तियों का मालिकाना हक इस साल बदल सकता है।

अनुमानों के अनुसार भारत में विलय-अधिग्रहण गतिविधियां करीब 75 अरब डॉलर पर पहुंचने की संभावना है जो पिछले साल के 60 अरब डॉलर की तुलना में बड़ी वृद्धि है। यूक्रेन युद्ध और उसके बाद आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान के मद्देनजर इलाकों ने अपने लागत ढांचे में बड़ा बदलाव महसूस किया है।

खासकर, ईंधन जैसे कच्चे माल की लागत में इजाफा हुआ है। साथ ही परिचालन दूसरी जगह ले जाने से कंपनियों का खर्च बढ़ा है, जिससे कुछ उद्योग खास भौगोलिक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे। इन्हीं कारणों से अधिग्रहण के मौके बनते हैं।

क्या कोई ऐसी बाधाएँ भी हैं जिनको लेकर सतर्क रहना चाहिए? क्या चुनाव नतीजे आने तक गतिविधियां धीमी रहेंगी?

मौजूदा भूराजनीतिक हालात को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। यदि संकट के कारण तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका भारत की मुद्रास्फीति पर असर पड़ सकता है। जहां तक वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य का सवाल है, 60 से ज्यादा देशों में दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी इस साल चुनावों में हिस्सा लेगी।

कुछ देशों में चुनाव परिणाम वित्तीय निवेश प्रवाह और आपूर्ति-श्रृंखला परिदृश्य को प्रभावित कर सकते हैं। ऐतिहासिक तौर पर चुनाव से कुछ वर्ष पहले गतिविधियां सुस्त पड़ती रही हैं। लेकिन हमने ऐसे भी उदाहरण देखे हैं जब सौदे होने की रफ्तार रही। भारत में हमें चुनावों की वजह से गतिविधियों में ज्यादा सुस्ती की आशंका नहीं है।

एफपीआई की भागीदारी कैसी रही है?

यदि आप 10-15 वर्षों के दीर्घावधि रुझान को देखें तो पता चलेगा कि उभरते बाजारों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश रहा जहां ज्यादातर वर्षों में (कुछ को छोड़कर) मजबूत एफपीआई निवेश आया। मजबूत वृहद आर्थिक बुनियादी आधार, राजनीतिक स्थायित्व और मौद्रिक सख्ती समाप्त होने की उम्मीद से भारत पर दांव और ज्यादा आकर्षक हो गया है। एफपीआई ने पिछले वर्षों में बिकवाली के बाद अपना निवेश मजबूत बनाया है। हमारा मानना है कि उभरते बाजारों में भारत पसंदीदा बना रहेगा।

पीई के लिहाज से रुझान कैसे हैं? क्या मजबूत सेकंडरी बाजार की गतिविधियों से पीई तंत्र मजबूत होगा?

भारत में पीई ने पिछले पांच साल में करीब 40 अरब डॉलर का औसत सालाना निवेश दर्ज किया है। हमने 2021 में अपने उच्च्तम स्तर से निवेश की मात्रा में गिरावट देखी है, लेकिन यह डील-मेकिंग यानी सौदों की रफ्तार में वैश्विक महामारी के बाद हुए सामान्यीकरण के अनुरूप ही है।

First Published - April 21, 2024 | 11:37 PM IST

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