वैश्विक व्यापार और ट्रंप शुल्क के प्रभाव
बीते दो सप्ताह के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सभी देशों के साथ कारोबारी जंग छेड़ दी। सिंगापुर जैसा देश जिसने बहुत सावधानी के साथ अपने और अमेरिका के बीच के कारोबार को संतुलित किया था, उसके साथ घाटे की भरपाई करने के लिए 10 फीसदी का टैरिफ लगा दिया गया। इससे फर्क नहीं […]
वर्ष 2025 के लिए तीन तमन्नाएं
अगर उद्योग, आर्थिक नीति तथा राजनीति मददगार रहीं तो अगली चौथाई सदी भारत की हो सकती है। उद्योग जगत को नवाचार में निवेश करते हुए विनिर्माण पर ध्यान देना चाहिए। हमारी आर्थिक नीति को उत्पादकता में दीर्घकालिक वृद्धि पर तथा इसकी जड़ यानी ढांचागत बदलाव पर ध्यान देना चाहिए। हमारी राजनीतिक बहस भी विचारों के […]
अमेरिका का विकल्प साथ रखने की नीति
वैश्विक विनिर्माण में चीन का दबदबा है। फिलहाल वह वैश्विक उत्पादन में 32 फीसदी का हिस्सेदार है। अमेरिका, जापान, जर्मनी, भारत और दक्षिण कोरिया क्रमश: 16, 7, 5, 3 और 3 फीसदी के हिस्सेदार हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी है और अब तक वह दुनिया में विनिर्मित वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक भी […]
रतन टाटा और क्रिस्टोफर बेनिंगर…भारत के दो महान वास्तुकारों की विदाई
रतन टाटा और क्रिस्टोफर बेनिंगर के सौंदर्य बोध और उनकी दृष्टि ने भारत को पहले की तुलना में सुंदर जगह बनाया। बता रहे हैं नौशाद फोर्ब्स इस महीने दो महान भारतीयों रतन टाटा और क्रिस्टोफर बेनिंगर का निधन हो गया। क्रिस्टोफर बेनिंगर ने हार्वर्ड से वास्तुकला की डिग्री ली थी और वह देश के सबसे […]
भारतीय उद्योग जगत को R&D निवेश बढ़ाने की जरूरत: वैश्विक प्रतिस्पर्धा और नवाचार में सुधार के लिए जरूरी कदम
मैंने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय उद्योग जगत को शोध एवं विकास (आरऐंडडी) पर अधिक रकम खर्च करनी चाहिए। भारतीय उद्योग जगत अपने आंतरिक आरऐंडडी में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 0.3 प्रतिशत निवेश करता है, जबकि दुनिया भर में यह औसत 1.5 प्रतिशत है। आरऐंडडी में सबसे अधिक निवेश […]
नौकरियां और विकास: अच्छी और बुरी खबरें
हमारी आकांक्षा 2047 तक विकसित देश बनने की है। किसी विकसित या उच्च आय वाले देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी करीब 14,000 डॉलर होता है यानी 2,700 डॉलर के हमारे वर्तमान प्रति व्यक्ति जीडीपी के पांच गुने से भी अधिक। उस स्तर तक पहुंचने के लिए हमें अगली चौथाई सदी तक […]
प्रभावी प्रदर्शन के लिए जरूरी नहीं मजबूत केंद्रीकृत शासन
इस समाचार पत्र के अंग्रेजी संस्करण के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित आर जगन्नाथन के विचारोत्तेजक आलेख ‘डेमोक्रेसी, ऑटोक्रेसी, ऑर बोथ?’ ने कुछ अहम मुद्दों को उठाया। उनका यह कहना सही है कि विभिन्न देशों की तुलना करना आसान नहीं है क्योंकि कोई भी देश सभी तरह से दूसरे देश जैसा नहीं होता। इसके बाद वह […]
उच्च शिक्षा में संघर्ष या नई उम्मीदों का दौर?
भारत में उच्च शिक्षा का एक व्यापक तंत्र मौजूद है। करीब 4.2 करोड़ से अधिक नामांकन के साथ हमारे देश में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की संख्या, दुनिया के तीन-चौथाई देशों की आबादी से भी अधिक है। देश में हाल के वर्षों में भी हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज और प्रबंधन संस्थान स्थापित हुए हैं […]
Opinion: नारायण मूर्ति का कथन और उत्पादकता का प्रश्न
इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने सप्ताह में 70 घंटे काम करने के बारे में जो बयान दिया उसका अर्थ यही है कि उत्पादकता हमारी राष्ट्रीय बहस का केंद्रीय विषय होनी चाहिए। बता रहे हैं नौशाद फोर्ब्स हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में इन्फोसिस के संस्थापक एन नारायण मूर्ति ने सप्ताह में 70 […]
Opinion: किन शोधों के लिए मुहैया कराया जाए धन?
इस आलेख के प्रथम भाग में कहा गया था कि राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरएफ) एक महत्त्वपूर्ण पहल है। मैंने इस बात की विशेष रूप से चर्चा की थी कि हमें दो घोषित सिद्धांतों का पूर्णतः पालन करना चाहिए। पहला सिद्धांत यह कि उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध कार्यों के लिए विशेष रूप से धन मुहैया […]









