विदेश में बड़े और साहसिक अधिग्रहण करने वाली भारतीय कंपनियों की विदेशी आय पिछले कुछ वर्षों में देसी कारोबार के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ी है। भारतीय अर्थव्यवस्था बेशक तेजी से आगे बढ़ रही हो मगर देसी कारोबार में वृद्धि की रफ्तार विदेशी कारोबार से अक्सर पिछड़ जाती है।
भारतीय कंपनियों के बड़े विदेशी अधिग्रहण सौदों की पड़ताल से पता चलता है कि विदेशी बाजार में उनकी पैठ देसी बाजार के मुकाबले 1.6 से 17.6 फीसदी अधिक तेजी से बढ़ी है। इस विश्लेषण में डेटा प्रदाता एलएसईजी डील्स इंटेलिजेंस की सूची से वर्ष 2000 के बाद से हुए शीर्ष 5 विदेशी अधिग्रहण सौदे शामिल किए गए हैं। जिन सौदों में कई निवेशक समूह शामिल थे, उन्हें शामिल नहीं किया गया। वाहन और फार्मास्युटिकल क्षेत्र के प्रमुख सौदे सूची में रखे गए हैं।
सूची में शामिल हरेक कंपनी ने बड़े विदेशी अधिग्रहण के बाद भारतीय बाजार के मुकाबले विदेशी बाजार में तेजी से वृद्धि की चाहे लाभ कमाने की क्षमता में कितनी भी चुनौती आई हो।
सोमवार को भारती एंटरप्राइजेज ने ब्रिटेन की प्रमुख दूरसंचार कंपनी बीटी में 24.5 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 4 अरब डॉलर के सौदे की घोषणा की। उसके बाद से ही ऐसे सौदे सुर्खियों में हैं।
साल 2000 के बाद से ऐसा लबसे बड़ा सौदा टाटा स्टील ने किया, जब उसने 12.7 अरब डॉलर में कोरस समूह का अधिग्रहण किया। वित्त वर्ष 2007-08 में यह सौदा होने के बाद से टाटा स्टील के भारतीय कारोबार का राजस्व सालाना 13.2 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा। मगर इसी दौरान उसके विदेशी कारोबार से प्राप्त आय में 14.8 फीसदी वृद्धि हुई। रेटिंग एजेंसी
इक्रा के अनुसार कंपनी के यूरोपीय कारोबार में वित्त वर्ष 2024 में परिचालन घाटा हुआ। इस कारण वित्त वर्ष 2023 में 8,000 करोड़ रुपये से अधिक का करोपरांत लाभ कमाने वाली टाटा स्टील को 4,910 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
भारती एयरटेल ने वित्त वर्ष 2011 में जईन अफ्रीका का अधिग्रहण किया था, जो 10.7 अरब डॉलर कीमत के साथ दूसरा सबसे बड़ा अधिग्रहण रहा। इस सौदे के बाद कंपनी की विदेशी आय में 24.7 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि हुई मगर भारतीय कारोबार में सालाना चक्रवृद्धि 7.1 फीसदी रफ्तार से ही हुई।
अफ्रीकी मुद्राओं और विशेष रूप से नाइजीरिया की नाइरा की कीमत घटने के कारण वित्त वर्ष 2024 में कंपनी का परिचालन लाभ सुस्त पड़ गया। सूची में तीसरे स्थान पर हिंडाल्को इंडस्ट्रीज है, जिसने वित्त वर्ष 2008 में 5.8 अरब डॉलर में अमेरिकी कंपनी नोवेलिस का अधिग्रहण किया था।
अधिग्रहण के बाद उसकी विदेशी आय 19.2 फीसदी दर से बढ़ी, जो देसी आय में वृद्धि के मुकाबले लगभग दोगुनी रफ्तार है। नोवेलिस ने वित्त वर्ष 2024 में 16 अरब डॉलर से अधिक आय दर्ज की, जो हिंडाल्को की कुल आय की करीब 60 फीसदी है। इन बड़े सौदों के बाद रुपया भी कमजोर हुआ है, जो विदेश में मौजूद कारोबारों के लिए अच्छी बात हो सकती है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के प्रमुख (खुदरा अनुसंधान) दीपक जसानी के अनुसार कई बड़े सौदे तो नई जगहों पर पहुंचने, प्रौद्योगिकी हासिल करने, मूल्यांकन कम होने और कारोबार चढ़ने की उम्मीद में किए गए।
बुटीक निवेश बैंक रिपलवेव इक्विटी एडवाइजर्स के पार्टनर मेहुल सावला ने कहा कि इस प्रकार के सौदे अक्सर तकनीक हासिल करने और नए बाजारों में दाखिल होने के इरादे से किए जाते हैं। आम तौर पर ये सौदे तब होते हैं, जब खरीदी जाने वाली कंपनी संकट के दौर में होती है।
अन्य प्रमुख सौदों में कृषि रसायन कंपनी यूपीएल ने 2019 में 4.2 अरब डॉलर में एरिस्टा लाइफसाइंसेज का अधिग्रहण किया। इसकी विदेशी आय में 17.7 फीसदी वृद्धि हुई मगर देसी कारोबार से आय केवल 8.8 फीसदी बढ़ी। विश्लेषण में वित्त वर्ष 2011 में सन फार्मास्यूटिकल्स द्वारा करीब 45 करोड़ डॉलर में टारो फार्मास्यूटिकल्स में नियंत्रण योग्य हिस्सेदारी की खरीद भी शामिल है। कंपनी की विदेशी आय वृद्धि की रफ्तार वित्त वर्ष 2024 में 21.8 फीसदी रही, जबकि भारतीय बाजार में आंकड़ा महज 16 फीसदी रहा।
टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से 2.3 अरब डॉलर में जगुआर लैंड-रोवर (जेएलआर) का अधिग्रहण किया। इससे कंपनी का कारोबार कई नए स्थानों तक पहुंच गया। इससे उसकी विदेशी आय में 13.8 फीसदी वृद्धि हुई मगर भारत में उसकी आय केवल 11.2 फीसदी बढ़ी।