सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) के जरिये पात्र संस्थागत प्लेसमेंट (क्यूआईपी) लाने की इजाजत मिल सकती है। आईएफएससी में सीधे सूचीबद्ध होने के मसले पर बनाए गए एक कार्यसमूह की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा अब्रिज्ड प्रॉस्पेक्टस (पूर्ण प्रॉस्पेक्टस में से मुख्य अंश लेकर बनाया गया दस्तावेज) के मार्फत ही हो सकेगा।
कार्य समूह में बाजार नियामक, आईएफएससी प्राधिकरण, मंत्रालय के अधिकारी, बैंकर और एक्सचेंज के अधिकारी शामिल हैं। समूह ने आईएफएससी में सीधे सूचीबद्धता के मसले पर अपनी रिपोर्ट पिछले हफ्ते पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आईएफएससी में अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज क्यूआईपी के जरिये भारतीय कंपनियों में विदेशी पूंजी की आवक करा सकते हैं। ये क्यूआईपी चुनिंदा बड़े संस्थागत निवेशकों को ही जारी किए जाएंगे। इसके लिए विदेशी मुद्रा में लेनदेन के फायदे, पात्र विदेशी निवेशकों को पैन और आईटीआर दाखिल करने से छूट आदि पर विचार किया जाएगा।’
कार्य समूह में शामिल एनएसई इंटरनैशनल एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) वी बालसुब्रमण्यन ने कहा, ‘हम भारतीय कंपनियों को अधिक विकल्प देकर व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जो कंपनियां सूचीबद्ध नहीं हैं, उनके पास सीधे आईएफएससी में आने का विकल्प होगा और सूचीबद्ध कंपनियों के पास इन एक्सचेंजों में क्यूआईपी या एफपीओ लाने का विकल्प होगा। वैश्विक निवेशक मूल्यांकन देखकर ही इन कंपनियों की कीमत लगाएंगे। इससे अधिक फर्मों को निर्गम लाने का मौका मिलेगा। एनएसई इंटरनैशनल एक्सचेंज में हम कंपनियों को सूचीबद्ध करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।’
कार्य समूह ने कर से जुड़े कुछ सुझाव भी दिए हैं ताकि सीधे सूचीबद्धता में शामिल होने में अप्रवासी संस्थाओं की दिलचस्पी बढ़ सके। रिपोर्ट में सिफारिश है कि लाभांश पर कर घटाकर 10 फीसदी किया जा सकता है। साथ ही पात्र विदेशी निवेशकों को पैन और रिटर्न दाखिल करने से सशर्त छूट देने की भी सिफारिश की गई है चाहे वे आईएफएससी एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों से लाभांश कमा रहे हों।
पिछले महीने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान आईएफएससी के चेयरपर्सन के राजारमण ने संकेत दिया था कि गुजरात की गिफ्ट सिटी में पहले आईएफएससी पर सीधे सूचीबद्धता अप्रैल, 2024 में शुरू हो जाएगी। कार्य समूह ने भारत में डिपॉजिटरियों और आईएफएससी में डिपॉजिटरियों के बीच सीधे जुड़ाव का मॉडल अपनाने का सुझाव दिया ताकि आईएफएससी डिपॉजिटरी सीधे नए इक्विटी शेयर जारी कर सके और मौजूदा शेयरों का ट्रांसफर भी हो सके।
समूह ने म्युचुअल फंड के लिए 7 अरब डॉलर की मौजूदा सीमा से ऊपर अलग से विदेशी सीमा रखने का सुझाव दिया है, जो आईएफएससी में सूचीबद्ध फर्मों में निवेश के लिए ही रखी जाए। रिपोर्ट कहती है, ‘शुरुआत में देसी म्युचुअल फंड उद्योग द्वारा संभाली जा रही कुल संपत्ति का 1 फीसदी आईएफएससी में निवेश के लिए रखा जा सकता है।’
रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियों को सेबी और आईएफएसीए के पास एक ही निर्गम दस्तावेज जमा करने की छूट दी जा सकती है। आरंभ में निर्गम जारी करने वाले को सेबी में पंजीकृत मर्चेंट बैंकरों के द्वारा दस्तावेज दाखिल कराने की अनुमति भी दी जा सकती है। लेकिन दोनों जगह शेयर सूचीबद्ध कराने की तारीख एक ही रखनी होगी।
न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता के मसले पर समूह की सिफारिश है कि दोनों स्थानों पर सूचीबद्ध कंपनी को दोनों बाजारों में अलग-अलग न्यूनतम मुक्त शेयरों की संख्या सुनिश्चित करनी होगी। सेबी का कायदा कहता है कि कंपनी में कम से कम 25 फीसदी शेयर जनता के पास होने चाहिए। इसके अलावा आईएफएससी में बायबैक केवल टेंडर ऑफर के जरिये ही लाया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएफएससी में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए पैन अनिवार्य होना चाहिए मगर अन्य विदेशी निवेशकों की अलग से स्पष्ट पहचान सुनिश्चत कर काम चलाया जा सकता है। रिपोर्ट कहती है, ‘अन्य पात्र विदेशी निवेशकों की बात करें तो आईएफएससी में ट्रेडिंग करने वाली संस्थाओं के लिए पैन अनिवार्य नहीं है, इसलिए वहां क्लाइंटों की स्पष्ट पहचान के लिए पर्याप्त प्रक्रियाएं होनी चाहिए।
आईएफएससीए हितधारकों के साथ मशविरा कर पहचान का कोई स्पष्ट चिह्न (जैसे कंपनियों के लिए लीगल एंटिटी आइडेंटिफायर होता है) तैयार कर सकता है।’ आईएफएससीए अब इस रिपोर्ट को मंजूरी के लिए अपने निदेशक मंडल के सामने रखेगा। अधिकारियों ने कहा कि निदेशक मंडल दोनों स्थानों पर सूचीबद्धता से जुड़े मसले दुरुस्त करेगा और स्पष्ट रूप से बताएगा कि सेबी, आईएफएससीए, भारतीय रिजर्व बैंक तथा वित्त मंत्रालय को क्या-क्या करना चाहिए।