बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने ई-मेल पर बातचीत में सुरजीत दास गुप्ता से कहा कि फेम-2 सब्सिडी दोषपूर्ण रणनीति है। संपादित अंश:
बजाज में अपने 30 से ज्यादा वर्षों में मैंने इंजन तकनीक को साधारण 2-स्ट्रोक के एकल सिलेंडर कार्बोरेटेड एयर कूल्ड दौर से परिष्कृत 4-स्ट्रोक फ्यूल-इंजेक्टेड, कई वाल्व, कई स्पार्क, कई सिलेंडर, लिक्विड-कूल्ड इंजनों की ओर बदलाव देखा है। साथ ही मैंने उत्सर्जन नियम में गैर-मौजूदगी से बीएस 6 तक जाते हुए भी देखा, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ यूरो 5 के बराबर है।
क्या इसके लिए कोई सरकारी सब्सिडी थी? एक रुपया भी नहीं। विश्व स्तरीय वैश्विक ब्रांड बनने की चाह से प्रेरित अच्छी विनिर्माण रणनीति के आधार पर ऐसा हुआ।
यह एक दोषपूर्ण दृष्टिकोण है क्योंकि यह अंततः चिरस्थायी नहीं है और समय से पहले फेम-2 कम करने की हालिया घोषणा यह बात साबित कर देती है। यह दोषपूर्ण दृष्टिकोण है क्योंकि यह वास्तविकता को छिपा देती है, आत्मसंतोष पैदा करती है, नवाचार को हतोत्साहित करती है और भ्रष्टाचार को प्रेरित करती है। विनिर्माताओं के खिलाफ आरोपों की हालिया घोषणाएं भी यह बात साबित करती हैं।
यह दोषपूर्ण दृष्टिकोण इसलिए भी है क्योंकि यह उन अमीरों को सब्सिडी प्रदान करता है, जो महंगे ईवी खरीदते हैं लेकिन कोविड-प्रभावित उस आम आदमी को नहीं, जो शुरुआती स्तर के तेल-गैस इंजन वाले किसी वाहन का खर्च नहीं उठा सकते हैं और इसलिए यह न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि नैतिक रूप से भी संदिग्ध है।
इस दोषपूर्ण दृष्टिकोण को इस तर्क के आधार पर उचित ठहराना कि अन्य सरकारें भी ऐसा करती हैं, हमें हैंस क्रिश्चियन एंडरसन की कहानी द एम्परर्स न्यू क्लॉथ्स की याद दिलाएगा।
बिना कल्पनाशीलता वाली सरकारें विनिर्माताओं पर पैसा व्यय करती हैं क्योंकि यह सबसे आसान काम है। किसी प्रबुद्ध सरकार ने ईवी के लिए विशेष लेन, चार्जिंग स्टेशन, स्वैपिंग सुविधा, बैटरी निपटान जैसा सही बुनियादी ढांचा बनाने की दिशा में चुनिंदा शीर्ष शहरों में हजारों करोड़ रुपये का भारी निवेश किया होगा।
इससे ग्राहकों को ईवी की ओर बढ़ने का विश्वास मिलता और विनिर्माताओं के पास ग्राहकों का अनुसरण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता।